विंध्यवासिनी मंदिर (Vindhyavasini Temple)

विंध्यवासिनी मंदिर (Vindhyavasini Temple) एक धार्मिक जगह है और पृथ्वी पर सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। यहां तक कि दुर्गा सप्तशती में भी इस धार्मिक जगह का उल्लेख बड़ी श्रद्धा के साथ किया गया है। इसमें ऐसा कहा गया है कि जिस रात भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था उसी रात यशोदा के गर्भ से देवी दुर्गा का जन्म हुआ था।
जब कंस ने उनको पत्थर से मारने की कोशिश की तो, वे चमत्कारिक रूप से दुर्गा के रूप में बदल गई। इस तरह देवी ने विंध्याचल को अपना निवास स्थान बना लिया। मंदिर में मां काली की मूर्ति स्थापित है, जिनकी पूजा मां काजला के रूप में की जाती है।
विंध्याचल शक्तिपीठ मंदिर में जो आता है, मां उसकी हर मनोकामना पूर्ण करती हैं। मंदिर मिर्जापुर शहर से 8 किमी दूर स्थित है।

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विंध्याचल पर्वत पे स्थिति आदि शक्ति मां विंध्यावासिनी का मंदिर (Vindhyavasini Temple) :

विंध्याचल (विंध्य + अचल) शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘विंध्य’ नाम का पर्वत (अचल) और ‘विन्ध्यवासिनी’ का शाब्दिक अर्थ ”विंध्य पर्वत में निवास करने या रहने वाली देवी” है।
विंध्याचल मंदिर की विशेषता इस तथ्य से भी है कि यह दुनिया का एकमात्र स्थान है, जहाँ देवी की पूजा हिंदू धर्म के ‘वाम मार्ग’ पद्धति के साथ-साथ दक्षिण मार्ग पद्धति के रूप में भी की जाती है।

विंध्याचल स्थान और मां विंध्यवासिनी का उल्लेख भारत के कई प्राचीन शास्त्रों में बहुतायत से किया गया है। उनमें से कुछ प्रमुख हैं: महाभारत, वामन पुराण, मार्कंडेय पुराण, मत्स्य पुराण, देवी भागवत, हरिवंश पुराण, स्कंद पुराण, राजा तरंगिनी, बृहत् कथा, कादंबरी और कई तंत्र शास्त्र।

विंध्याचल विंध्यवासिनी मंदिर (Vindhyavasini Temple) से जुड़ा इतिहास और पौराणिक कथा :

देवी दुर्गा और दानव राजा महिषासुर का अत्यंत प्रसिद्ध युद्ध जिसके अत्यंत गहन आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और साथ ही समकालीन अर्थ है, विंध्याचल में ही हुआ माना जाता है।
यही कारण है कि देवी विंध्यवासिनी का एक और नाम ‘‘महिषासुर मर्दिनी’‘ (दानव महिष का वध करने वाली) भी है| अगली बार दुर्गा पूजा महोत्सव में या कहीं और, आप दानव महिषासुर की वध करते हुए मां दुर्गा की छवि देखें तो आपको याद रहे कि यह महान युद्ध विंध्याचल में हुआ था और विंध्याचल, विन्ध्यवासिनी मंदिर (Vindhyavasini Temple) समाज के विनाशकारी ताकतों पर इस महान महिला शक्ति की विजय की याद दिलाता है।

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भगवान राम ने अपने 14 वर्ष के बनवास की अवधि में पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ विंध्याचल और आसपास के क्षेत्रों में आए थे और भावी जीवन में सफलता के लिए मां विंध्यवासिनी मंदिर (Vindhyavasini Temple) की गुप्त साधना भी की थी। सीता कुंड, सीता रसोई, राम गया घाट, रामेश्वर मंदिर इस दिव्य जगह पर मानवता के इस महान नायक की यात्रा के प्रमाण हैं। प्राचीन समय में, विंध्याचल मंदिर ‘शक्ति’ संप्रदाय’ एवं हिंदू धर्म के अन्य संप्रदायों के मंदिरों और धार्मिक केंद्रों से घिरा हुआ था जिस कारण से इसकी ऊर्जा और महत्ता अत्यधिक थी, हालांकि, कट्टरपंथी मुस्लिम सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में, इनमें से कई को नष्ट कर दिया गया था।

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मां विंध्यवासिनी (Vindhyavasini Temple) की उत्पत्ति कैसे हुई?

मार्कंडेय पुराण में इस बात का वर्णन मिलता है कि विंध्यवासिनी ने यशोदा और नन्द के घर जन्म लिया था। इस बात की जानकारी देवी दुर्गा ने अपने जन्म से पहले ही सभी देवी-देवताओं को दी थी।
देवी विंध्यवासिनी ने ठीक उसी दिन जन्म लिया जिस दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। आकाश से हुई भविष्यवाणी ने कंस की मृत्यु देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के हाथों तय की थी इससे भयभीत कंस ने अपनी ही बहन की संतानों को मारने के लिए उतारू हो गया।
कंस बस उस आठवीं संतान के जन्म के इन्तजार में राह तक रहा था, पर भगवान की माया ने सारा खेल ही पलट दिया। श्री कृष्ण को कंस के चंगुल से बचाने के लिए माया ने यशोदा और नन्द के घर जन्म लेने वाली पुत्री विंध्यावासिनी देवी को देवकी की गोद में डाल दिया। वहीँ कृष्ण ने यशोदा और नंद के घर में जन्म लिया।

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देवकी की आठवीं संतान की खबर सुनते ही कंस कारागार पहुंचा क्योंकि इस संतान की मृत्यु कंस की मौत पर पूर्ण विराम लगा सकती थी। जब कंस को यह बात पता चली कि पुत्र ने नहीं पुत्री ने जन्म लिया है तो कंस को थोड़ा आश्चर्य हुआ पर उसे लगा कि है तो आठवीं संतान ही फिर चाहे वह पुत्र हो पुत्री। फिर जैसे ही कंस ने उस कन्या को मारने का प्रयास किया वह कन्या दुर्गा का विकराल रूप धारण कर कंस के सामने आ खड़ी हुई। इस तरह से कंस को गुमराह करने के लिए विंध्याचल देवी ने देवकी और वासुदेव के घर जन्म लिया।

विंध्याचल मंदिर (Vindhyavasini Temple) के दर्शन और आरती का समय :

विंध्याचल मंदिर साल में 365 दिन भक्तों के लिए खुला रहता है | तकनीकी रूप से विंध्याचल मंदिर दिन के दौरान बंद नहीं होता है क्योंकि मध्य रात्रि 12 बजे के बाद भी मंदिर भक्तों के लिए झाँकी दर्शन के लिए खुला रहता है।

विंध्याचल मंदिर (Vindhyavasini Temple) में की जाने वाली चार मुख्य आरतियाँ कुछ यह प्रकार से हैं :

मंगला आरतीसुबह 4 बजे
भोग आरतीदोपहर 1 बजे
संध्या आरतीरात 9 बजे
रात्रि सायं आरतीमध्य रात्रि 12 बजे
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विंध्याचल पर्वत क्षेत्र संपूर्ण ब्रम्हांड में सबसे पवित्र स्थानो में से एक है, मां विंध्यवासिनी मंदिर के इलावा यहां या अन्य भी ऐतिहासिक और दैवीय स्थान है जैसे-

अष्टभुजा मंदिर :

अष्टभुजा मंदिर विंध्यवासिनी मंदिर से 3 किमी की दूरी पर मौजूद है। ये धार्मिक स्थल पहाड़ी की चोटी पर बसा हुआ है। इस मंदिर की पीठासीन देवता अष्टभुजा देवी हैं, जो मां दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं।
इस मंदिर के दर्शन करने के साथ-साथ सीता कुंड, गेरुआ और मोतिया नामक तीन पवित्र तालाबों को भी देख सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उस समय के राजा अपने दुश्मनों को खत्म करने के लिए देवी दुर्गा की पूजा किया करते थे।

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काली कोह मंदिर :

काली कोह मंदिर विंध्यवासिनी मंदिर से 2-3 किमी दूर स्थित इस गुफा-मंदिर में देवी महाकाली का वास है। यह पहाड़ी के आधार पर स्थित है जहां अष्टभुजा मंदिर है।

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सीता कुंड :

स्थानीय नागरिकों का मानना है कि देवी सीता ने अपने पति राम के साथ वनवास की अवधि के दौरान विंध्याचल के एक तालाब में स्नान किया था। यह तालाब बाद में सीता कुंड बन गया, यहां भी आप भक्तों की अच्छी भीड़ देखने को मिलती है।

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भगवान रामेश्वर महादेव मंदिर :

राम गया घाट पर स्थित यह धार्मिक जगह विंध्यवासिनी मंदिर (Vindhyavasini Temple) से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है। ऐसा कहा जाता है कि अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ के कहने पर, भगवान राम ने अपने मृत पिता की याद में इस स्थान पर एक शिवलिंग की स्थापना की थी। रामेश्वर शिवलिंग का सौंदर्य शब्दों में बता पाना मुश्किल है और यह पवित्र मंदिर विंध्य क्षेत्र में कोई भी पूजा या रुद्राभिषेक करने के लिए आदर्श स्थान है |

विंध्याचल शक्तिपीठ में माता का कौन सा अंग गिरा था?

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पौराणिक मान्यताएं कहती है कि शक्तिपीठ वह स्थान है जहाँ सती के अंग गिरे थे लेकिन विंध्याचल में माँ विंध्याचल के शरीर का कोई अंग नहीं गिरा था। यहाँ देवी सशरीर के साथ निवास करती हैं क्योंकि उन्होंने यह स्थान अपने रहने के लिए चुना था।

विंध्याचल पार करने वाले पहले ऋषि कौन थे?

सप्तऋषियों में से एक अगस्त्य ( Agastya ) ऋषि ही सर्वप्रथम विंध्याचल पर्वत ( Vindhyachal Mountain ) को पार कर दक्षिण दिशा की ओर आर्य संस्कृति का प्रचार करने गए थे।
पौराणिक कथाओ में इस बात का ज़िक्र है कि अगस्त्य ने ही विंध्य पर्वत के मध्य में से दक्षिण भारत जाने का मार्ग निकाला था। कहा तो यह भी जाता है कि विंध्याचल पर्वत ने ऋषि के चरणों में झुकते हुए प्रणाम किया था।

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विंध्याचल पर्वत को प्रणाम करते हुए देख ऋषि अगस्त्य ने पर्वत को आशीर्वाद दिया कि जब तक वे दक्षिण क्षेत्र से लौटकर वापस नहीं आते तब तक वह ऐसे ही सिर झुकाकर खड़ा रहे।
यही कारण है की यह पर्वत आज तक सिर झुकाकर खड़ा है और अगस्त्य ऋषि का इन्तजार कर रहा है।

विंध्याचल विंध्यवासिनी मंदिर (Vindhyavasini Temple) कैसे पहुंचें?

हवाई मार्ग से:

वाराणसी में पास का हवाई टर्मिनल लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा है, जो विंध्याचल से 51 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप हवाई मार्ग से भी विंध्यवासिनी मंदिर तक आ सकते है।

Vindhyavasini Temple
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रेल द्वारा :

विंध्याचल का अपना रेलवे स्टेशन है। आप रेलवे द्वारा विंध्यवासिनी मंदिर (Vindhyavasini Temple) तक आराम से आ सकते है और स्टेशन से आप मंदिर तक जाने के लिए आप टैक्सी , या ऑटो बुक कर सकते है

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सड़क मार्ग से:

विंध्याचल तक राज्य द्वारा प्राइवेट बसों, टैक्सियों और लोकल कारों से पहुंचा जा सकता है।

Harsh Pandey
Harsh Pandeyhttps://www.kashiarchan.in
Namaskar! The writer is the managing director of the Kashi Archan Foundation, An organization which helps devotees to perform puja and sewa in all the temples of Varanasi

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