तुलसीदास (Tulsidaas) कौन थे?
पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास परन्तु आम बोल चाल की भाषा में सिर्फ हम सभी तुसलीदास (Tulsidaas) के नाम से जानते है, गोस्वामी तुलसीदास (Tulsidaas) धर्म सुधारक, संत और कवि के रूप में जाटव जाते है तुलसीदास (Tulsidaas) का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ और साथ के साथ तुलसीदास (Tulsidaas) जी को वाल्मीकि अवतार माना जाता है तुसलीदास (Tulsidaas) जी ने संस्कृत में भव्य रामायण की रचना की थी, संस्कृत रामायण के इलावा तुलसीदास जी ने अन्य कई रचना अपनी जीवनकाल में की थी जिसमे सबसे लोकप्रिय रचना “रामचरित्रमानस” है
गोस्वामी तुलसीदास (Tulsidaas) को हमेशा वाल्मीकि (संस्कृत में रामायण के मूल संगीतकार और हनुमान चालीसा) के अवतार के रूप में सराहा गया, गंगा किनारे बसी शिव नगरी वाराणसी में तुलसीदास (Tulsidaas) जी में अपना पूरा जीवन बिताया और अपनी अंतिम सांसे भी वाराणसी में ही ली और उन्ही की याद में वाराणसी में अनेको घाटों में से एक घाट का नाम में तुलसीदास जी के नाम पर रखा गया जिसे आज हम और आप तुलसी घाट के नाम से भी जानते है
तुलसीदास ( Tulsidaas ) का संछिप्त परिचय:

- पूरा नाम: गोस्वामी तुलसीदास
- जन्म: 13 अगस्त 1532 राजपुर, उत्तर प्रदेश
- पिता: आत्माराम दुबे
- माता: हुलशी देवी
- पत्नी: रत्नावली
- कार्यछेत्र: कवि , समाजसुधारक
- कर्मभूमि: बनारस
- गुरु: आचार्य रामानंद
- धर्म: हिन्दू
- काल: भक्तिकाल
- विद्या: कविता, दोहा, चौपाई
- विषय: सगुण भक्ति
- भाषा: संस्कृत, हिंदी, अवधी
- प्रमुख रचनाये: रामचरित मानष, दोहावली,कवितावली, विनयपत्रिका गीतावली, हनुमान चालीसा
- मृत्यु: 31 जुलाई 1623 को 91 वर्ष में
जन्म और मृत्यु के बारे में मतभेद
तुलसीदास जी के जन्म और मृत्यु के बारे में लोगो के अलग अलग मतभहेद है , अलग अलग विद्वानों के अनुसार तुलसीदास (Tulsidaas) जी का जन्म क्रमश: 1497 ईस्वी , 1599 ईस्वी, 1532 ईस्वी में श्रावण माश की शुक्ल पच्छ की सप्तमी तिथि को हुआ था। हलाकि उनकी मृत्यु के बारे में सभी के एक ही मत है उनकी मृत्यु 31 जुलाई 1623 में काशी में हुआ
तुलसीदास के लिखा हुआ ग्रन्थ रामचरियत मानष जो भगवन राम को समर्पित है, उत्तर भारत में बहुत ही प्रेम और श्रद्धा भाव से पढ़ा जाता है, इसके साथ ही विनय पत्रिका और हनुमान चालीसा भी तुलसीदास जी के प्रमुख ग्रन्थ है
तुलसीदास (Tulsidaas) जी का जीवनपरिचय:

तुलसीदास (Tulsidaas) जी का जन्म संवत १५८९ को उत्तर प्रदेश ( वर्तमान के बाँदा ) में हुआ था, पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलशी देवी था, इनका विवाह रत्नावली के साथ हुआ था, कहा जाता है कि तुलसीदास जी अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे किन्तु किसी कारणवस् पत्नी की फटकार के कारण तुलसीदास जी के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया और इनका जीवन परिवर्तित हो गया ।तुलसीदास जी के गुरु का नाम नरहरिदास था जिन्होंने इनको दिच्छा दिया था, तुलसीदास जी का अधिकांश जीवन चित्रकूट, अयोध्या, और काशी में ही बीता
तुलसीदास (Tulsidaas) जी के बारे में कुछ रोचक बाते:
गोस्वामी तुलसीदास जी को संसार संत शिरोमणि के नाम से भी जानती है, जन्म के बाद प्रायः शिशु रोया करते है परन्तु माना यह जाता है की तुलसीदास जी जन्म के बाद पहला शब्द राम बोला, जन्म के दूसरे दिन माता के देहांत के बाद तुलसीदास जी के पिता ने तुलसीदास जी को चुनिया नाम की एक दाशी को सौप दिया और स्वम विरक्त हो गए
दाशी ने 5 सालो तक तुलसीदास जी का लालन पालन किया उसके बाद वो भी नहीं रही, बालक तुलसीदास अनाथो का जीवन जीने को विवश हो गए, तुलसीदास जी का बचपन बहुत ही कस्तो से भरा रहा।
माता पिता और दाशी की मृत्यु के बाद तुलसीदास भिक्छा मांग कर अपना जीवन व्यतीत करने लगे, इसी बेच तुलसीदास का संपर्क राम भग्त के साधुओ से हुआ और इनको ज्ञानार्जन का अनुपम अवसर मिला, तुलसीदास जी इसी प्रकार भ्रमण करते रहे और इसी से उनका समाज के तात्कालिक स्थिति से सीधा संपर्क हुआ, उन्होंने समाज सुधारक का भी काम किया। इस दीर्घ कालीन अध्ययन और भ्रमण का परिणाम ही तुलसीदास जी की अमूल्य कृतियां है
तुलसीदास (Tulsidaas) जी द्वारा रचित ग्रंथो की संख्या 39 बताई जाती है जिनमे रामचरित मानष, दोहावली, कवितावली, विनयपत्रिका गीतावली, हनुमान चालीसा, जानकी मंगल, बरवै अधिक लोकप्रिय है
कौन थे तुलसीदास (Tulsidas) जी के गुरु ?

गोस्वामी तुलसीदास (Tulsidaas) जी श्री संप्रदाय के आचार्य रामानंद के परम्परागत शिस्य थे, इन्होने समय को देखते हुए लोक भाषा में रामायण लिखा, गोस्वामी जी पंथ संप्रदाय चलने के विरोधी थे, उन्होंने स्वराज्य के सिद्धांत, रामराज्य का आदर्श, शत्रुओ से बचने के उपाय, सभी राजनैतिक बातो को उस ज़माने में भी खुले शब्दो में व्याख्या की परन्तु लोगो ने उस समय उनकी बातो को न समझा और इस कारण रामचरित मानष का राजनैतिक उद्देश्या नहीं सिद्धा हो पाया तब गोस्वामी जी ने झुंझला कर कहा –
रामायण अनुहरत सिख, जग भई भारत रीती ।
गोस्वामी तुलसीदास (Tulsidaas)
तुलसी काठहि के सुनै, कलि कुचली पर प्रीति ।।
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ
- गीतावली: 1559 वर्ष
- दोहावली: 1569 वर्ष, भाषा: ब्रजभाषा
- कृष्ण गीतावली: 1571 वर्ष, भाषा: ब्रजभाषा
- रामचरितमानस: 1574 वर्ष, भाषा: अवधी
- रामलला नहछू: 1582 वर्ष, भाषा: अवधी
- विनयपत्रिका: 1582 वर्ष, भाषा: ब्रजभाषा
- पार्वती मंगल: 1582 ई., शिव-पार्वती के विवाह-संबंधी, भाषा: अवधी
- जानकी मंगल: 1582 वर्ष, सीता-राम के विवाह-संबंधी
- कृष्णगीतावली: 1607 वर्ष, भाषा: ब्रजभाषा
- रामाज्ञा प्रश्न: 1612 वर्ष, ज्योतिष-संबंधी सगुनौती आदि, भाषा: ब्रज व अवधी)
- बरवै रामायण: 1612 वर्ष, रामकथा-संबंधी 69 बरवै
- वैराग्य संदीपनी: 1612 वर्ष, भाषा: अवधी)
- कवितावली: 1612 वर्ष
- हनुमानबाहुक: 1612 वर्ष, अंतिम रचना
प्रखर बुद्धि के स्वामी तुलसीदास (Tulsidaas):

भगवान शंकरजी की प्रेरणा से रामशैल पर रहने वाले श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्री नरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) ने प्रखर बुद्धि बालक (तुलसीदास) को ढूंढ़ निकाला और उनका नाम “रामबोला” रखा श्री नरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) उसे अयोध्या ले गये और वहाँ संवत 1561 माघ शुक्ल पंचमी शुक्रवार को उसका यज्ञोपवीत-संस्कार कराया। बिना सिखाये ही बालक रामबोला (तुलसीदास) ने गायत्री-मन्त्र का उच्चारण किया, जिसे देखकर सब लोग चकित हो गये। इसके बाद नरहरि स्वामी ने वैष्णवों के पाँच संस्कार करके रामबोला (तुलसीदास) को राममन्त्र की दीक्षा दी और अयोध्या ही में रहकर उन्हें विद्याध्ययन कराने लगे। बालक रामबोला (तुलसीदास) की बुद्धि बड़ी प्रखर थी। एक बार गुरुमुख से जो सुन लेते थे, उन्हें वह कंठस्थ हो जाता था। वहाँ से कुछ दिन बाद गुरु-शिष्य दोनों शूकरक्षेत्र (सोरों) पहुँचे। वहाँ श्री नरहरि जी ने तुलसीदास को रामचरित सुनाया। कुछ दिन बाद वह काशी चले आये। काशी में शेषसनातन जी के पास रहकर तुलसीदास ने पन्द्रह वर्ष तक वेद-वेदांग का अध्ययन किया। इधर उनकी लोकवासना कुछ जाग्रत् हो उठी और अपने विद्यागुरु से आज्ञा लेकर वे अपनी जन्मभूमि को लौट आये। वहाँ आकर उन्होंने देखा कि उनका परिवार सब नष्ट हो चुका है। और तब से वहीं रहकर लोगों को भगवान राम की कथा सुनाने लगे |
तुलसीदास (Tulsidaas) जी को हनुमान जी के दर्शन कैसे हुए ?

तुलसीदास (Tulsidaas) जी को हनुमान जी के दर्शन कैसे मिले यह भी एक रोचक कथा है। कहा जाता है कि प्रतिदिन प्रातःकाल जब शौच के लिये गंगापार जाते थे तो वापसी के समय लोटे में बचे हुए पानी को एक पेड़ के जड़ में डाल दिया करते थे। उस पेड़ में एक प्रेत का निवास था। रोज पानी मिलने की वजह से उसे संतुष्टि मिली वह तुलसीदास जी पर प्रसन्न हो गया और उनके सामने प्रकट होकर उसने वरदान मांगने के लिया कहा। तुलसीदास जी ने भगवान श्रीरामचंद्र के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की। इस पर प्रेत ने कहा कि मैं भगवान । श्रीरामचंद्र के दर्शन तो नहीं करवा सकता पर इतना अवश्य बता सकता है कि फलाने मंदिर में नित्य सायंकाल में भगवान श्रीरामचंद्र की कथा होती है और वहाँ कथा सुनने के लिये हनुमान जी कोढ़ी के वेश में आते हैं। कथा सुनने के लिये सबसे पहले वे ही आते हैं और सबके चले जाने के बाद अंत में ही वे जाते हैं। वे ही आपको भगवान श्रीरामचंद्र के दर्शन करा सकते हैं अतः वहाँ जाकर उन्हीं से प्रार्थना कीजिये। तुलसीदास जी ने वहाँ जाकर अवसर पाते ही हनुमान जी के पैर पकड़ लिये और उन्हें प्रसन्न कर लिया। हनुमान जी ने कहा कि चित्रकूट चले जाओ वहीं तुम्हे भगवान श्रीरामचंद्र के दर्शन होंगे।
इस प्रकार दिया भगवन राम ने तुलसीदास जी को दर्शन

मान्यता है कि भगवान राम के अनन्य भक्त होने के कारण ही तुलसीदास (Tulsidaas) जी के रूप में इन्हें राम दर्शन का सौभाग्य मिला।
लेकिन तुलसी दास जी को भगवान राम की भक्ति की प्रेरणा अपनी पत्नी रत्नावली से प्राप्त हुई थी। राम की भक्ति में तुलसीदास ऐसे डूबे की दुनिया जहान की सुध न रही। तुलसी दास भगवान की भक्ति में लीन होकर लोगों को राम कथा सुनाया करते थे। एक बार काशी में रामकथा सुनाते समय इनकी भेंट एक प्रेत से हुई।
प्रेत ने इन्हें हनुमान जी से मिलने का उपाय बताया। तुलसीदास जी हनुमान जी को ढूंढते हुए उनके पास पहुंच गए और प्रार्थना करने लगे कि राम के दर्शन करवा दें।
हनुमान जी ने तुलसी दास जी को बहलाने की बहुत कोशिश की लेकिन जब तुलसीदास नहीं माने तो हनुमान जी ने कहा कि राम के दर्शन चित्रकूट में होंगे। तुलसीदास जी ने चित्रकूट के रामघाट पर अपना डेरा जमा लिया।
एक दिन मार्ग में उन्हें दो सुंदर युवक घोड़े पर बैठे नज़र आए, इन्हें देखकर तुलसीदास जी सुधबुध खो बैठे। जब युवक इनके सामने से चले गए तब हनुमान जी प्रकट हुए और बताया कि यह राम और लक्ष्मण जी थे।
तुलसीदास जी पछताने लगे कि वह अपने प्रभु को पहचान नहीं पाए। तुलसीदास जी को दुःखी देखकर हनुमान जी ने सांत्वना दिया कि कल सुबह आपको फिर राम लक्ष्मण के दर्शन होंगे।
प्रातः काल स्नान ध्यान करने के बाद तुलसी दास जी जब घाट पर लोगों को चंदन लगा रहे थे तभी बालक के रूप में भगवान राम इनके पास आए और कहने लगे कि “बाबा हमें चंदन नहीं दोगे”।
हनुमान जी को लगा कि तुलसीदास जी इस बार भी भूल न कर बैठें इसलिए तोते का रूप धारण कर गाने लगे ‘चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर। तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत
रघुबीर।’
तुलसीदास (Tulsidaas) जी बालक बने राम को निहारते-निहारते सुध-बुध खो बैठे और भगवान राम ने स्वयं तुलसीदास ही का हाथ पकड़कर तिलक लगा लिया और खुद तुलसीदास जी के माथे पर तिलक लगाकर अन्तर्धान हो गए।
महाकाव्य रामचरित मानष की रचना
तुलसीदास (Tulsidaas) जी ने 1631 चैत मार्श की रामनवमी को अयोध्या में रामचरित मानष लिखना शुरू किया उन्होंने 1633 में माघ शीर्ष महीने में राम सीता विवाह पंचमी ( विवाह दिवश ) पर दो साल सात महीने और 26 दिन में रामचरित मानष का लेखन पूरा किया था |
तुलसीदास (Tulsidaas) जी की मृत्यु
1623 में श्रावण मार्श ( जुलाई , अगस्त ) के महीने में बनारस के अस्सी घाट पर गंगा नदी के तट पर उनकी मृत्यु हो गयी |