पूर्णिमा (Purnima) क्या है ?

पूर्णिमा (Purnima) प्रत्येक माह में एक बार और वर्ष में बारह बार आती है । हिन्दू पंचांग के अनुसार जिस तिथि को चन्द्रमा पूर्ण रूप से आकाश में हमे दिखाई दे पूर्णिमा (Purnima) का दिवस होता है।चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार इसे पौर्णिमि ,पूरनमासी एवं पूर्णिमा कहते हैं। मान्यता है की पूर्णिमा (Purnima) बहुतायत, सुख-शांति एवं समृद्धि का प्रतीक है। पूर्णिमा (Purnima) का व्रत कुंवारी कन्यायों एवं विवाहित महिलाओं समेत पुरुष भी रख सकते है। वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा (Purnima) का अपना अलग ही महत्व है लेकिन कुछ पूर्णिमा (Purnima) महत्वपूर्ण मानी गयी है जिसका विवरण संक्षेप में इस प्रकार है।
महत्वपूर्ण पूर्णिमा (Purnima) व उनका महत्व

पौष पूर्णिमा (Paush Purnima) : यह दिसंबर जनवरी माह में पड़ती है इस दिन श्रद्धालु प्रयागराज के संगम में स्नान कर खुद को और अपने परिवार को पाप मुक्त करते है।
माघी पूर्णिमा (Maaghi Purnima): यह जनवरी व फरवरी माह में पड़ती है इसी दौरान कुम्भ मेला पड़ता है जो की 12 वर्ष बाद आयोजित होता है लेकिन श्रद्धालु प्रत्येक वर्ष माघी पूर्णिमा के दिन कुम्भ स्नान करते है।
बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima): यह पूर्णिमा अप्रैल और मई माह में पड़ती है।। जिसे गौतम बुद्धा के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। जो की एक आध्यात्मिक गुरु थे और जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी।
वट पूर्णिमा (Vat Purnima): यह बहुत ही शुभ हिन्दू तिथि है जिसे ज्येष्ठ पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लम्बी उम्र एवं सुखी विवाहित जीवन की कामना के लिए किया जाता है।
आषाढ़ पूर्णिमा (Ashaarh Purnima): आषाढ़ महीने की यह पूर्णिमा गुरुओं को समर्पित है। इस दिन रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है।
शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima): इसे कोजागरी व रास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। ज्योतिष के अनुसार पुरे वर्ष में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। मान्यता है की इस दिन चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है।
चैत्र पूर्णिमा (Chaitra Purnima) : इस पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है चैत्र पूर्णिमा के दिन ही प्रेम पूर्णिमा पति व्रत मनाया जाता है।
श्रावण पूर्णिमा (Shraawan Purnima): इस पूर्णिमा के दिन ही रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है जो की भाई बहन के प्रेम का प्रतीक है।
बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) क्या होती है

यह वैशाख माह में पूर्णिमा (Purnima)के दिन पड़ता है। बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) को बुद्धा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। भगवन बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे और उन्हें भगवान् विष्णु का 9वां अवतार भी कहा जाता है। भगवान् बुद्ध के जीवन में तीन महत्वपूर्ण घटनाएं उनका जन्म ,ज्ञान की प्राप्ति और उनको निर्वाण एक दिन पूर्णिमा के दिन प्राप्त हुआ। बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima)को बुद्ध जयंती और वैशाख के रूप में भी जाना जाता है ।
बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) कब और क्यों मनाई जाती है ?

वैशाख माह की पूर्णिमा को बुद्ध जयन्ती के रूप में मनाया जाता है। प्रायः यह अप्रैल और मई माह में पड़ती है।
वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान् बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में हुआ थ। बुद्धत्वा की प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध से प्रसिद्ध हुए। इसलिए इस दिन ही बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) कैसे मनाई जाती है ?

बुद्ध जयंति का उत्सव बोधगया में मनाया जाता है। बौद्ध लोग बोधगया को गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बंधित सबसे महत्पूर्ण तीर्थ स्थल मानते हैं। बोधगया वह तीर्थ स्थल जो भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति को चिन्हित करती है। बोधगया बिहार के एक जिले में छोटे से शहर में पड़ता है। दुनियाभर के बहुत से लोग भगवान् बुद्ध के सम्मान में उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए इकट्ठा होते हैं। मंदिर और क्षेत्रों को सजाने के अलावा बुद्ध झंडों को भी सजाते हैं और अपने घरों को रंगीन लाइटों मोमबत्तियों व दीयों से प्रकाशित करते हैं। सुबह की प्रार्थना के बाद भिक्षुओं का रंगारंग जुलूस , बड़े प्रसाद के साथ पूजा ,मिठाई और नमकीन का वितरण होता है। अन्य स्थानों में प्रार्थना ,बुद्ध उपदेश और गौर रोक-टोक मठों, धार्मिक हालों एवं घरों में गूंजते है। इस दिन बौद्ध स्नान कर केवल सफ़ेद वस्त्र धारण करते हैं और बुद्ध की मूर्ति के सामने धुप द्वीप जलाकर उनकी पूजा करते हैं और उपदेश का स्मरण करते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के दिन क्या न करें?

बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के दिन किसी भी स्थिति में घर व बाहर कलह न करें। किसी को भी अपशब्द न कहें। झूठ नहीं बोना चाहिए। और न ही झूठ सुनना चाहिए। नेक काम करने चाहिए एना दान करना चाहिए और साधु महात्माओं की सांगत करनी चाहिए।
शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) क्या है ?

आश्विन मास की पूर्णिमा जिसे शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) या कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है की इस दिन माता लक्ष्मी बैकुंठ धाम से पृथ्वी पर आती हैं और घर घर जाकर कृपा बरसाती हैं। इसी के साथ चन्द्रमा अपनी 16 कलाओं में होती है और पृथ्वी पर अमृत वर्षा करती हैं। सुख-सौभाग्य की प्राप्ति के लिए शरद पूर्णिमा को बहुत ख़ास माना गया है।
शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के दिन क्या करें और क्या न करें

जिस तरह माँ लक्ष्मी इस दिन प्रसन्न रहती हैं ठीक उसी तरह वे जल्द ही रुष्ट भी हो सकती है। शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) को बहुत खास माना गया गया है तो वही कुछ बातों की ख़ास मनाही है जिसे यदि व्यक्ति गलती से नहीं कर ले तो माँ रुष्ट हो जाती हैं । शरद पूर्णिमा के दिन पैसों का लेन-देन बिलकुल नहीं करना चाहिए। इस दिन उधार दिए गए पैसे या लिए गए पैसे से धन हानि होने के प्रबल योग बनते हैं। और व्यक्ति को जीवन में आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। धार्मिक दृष्टि के अनुसार शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) को बहुत ही शुभ दिन माना गया है लिहाजा इस दिन ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के दिन काले कपडे हरगिज नहीं पहनना चाहिए। इसके इलावा शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के दिन मुख्य दरवाजा बंद करके नहीं सोना चाहिए। क्योंकि मान्यता है की इस दिन घर घर जाकर माता लक्ष्मी आगमन करती है। और साथ ही शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के दिन घर में अँधेरा नहीं रखना चाहिए।
पूर्णिमा (Purnima) की पूजा विधि

प्रातः काल ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर स्नान कर जित्येन्द्र भाव से उपवास करने का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात तांबे या मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुयी माँ लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए और विधि पूर्वक पूजा करना चाहिए। तदन्तर सायंकाल में चंद्रोदय होने पर सोने,चांदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलना चाहिए। फिर घी मिश्रित खीर बनाकर और बर्तन में रखकर चन्द्रमा की चांदनी में रखना चाहिए। एक प्रहर बीतने पर माँ लक्ष्मी का यह प्रसाद दीन-हीन , गरीब-दुखी व परिवार अथवा आस पास के लोगों में वितरित कर देना चाहिए और मंगलमयी गीत के साथ रात्रि जागरण करना चाहिए । सुबह स्नान व पूजा करके माँ लक्ष्मी की प्रतिमा किसी गरीब को दान करना चाहिए अथवा किसी पवित्र स्थान पर रख देना चाहिए। पूजा करते समय इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करें
वसत-बाँधव विभों शीता:शो सवस्ति न कुरु:।
गगनार्णव:माणिक्य चान्द्र दाक्षायणी:पते।
पूर्णिमा (Purnima) के दिन ख़ास पूजा

पूर्णिमा (Purnima) के दिन सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में स्नान आदि करके मां लक्ष्मी एवं सत्यनारायण भगवान् की कथा का संकल्प अवश्य लें। और यथा समय मां लक्ष्मी एवं सत्यनारायण की कथा सपत्नीक व सपरिवार सुनें। और आस पास के सभी लोगों को निमंत्रित करें और प्रसाद के रूप में पंजीरी व चरणामृत और फल यथा शक्ति अवश्य चढ़ाएं।
मां लक्ष्मी एवं सत्यनारायण की आरती करके हवन करें और पुरे आवास में फैलने दे। ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराएं और गरीबों व जरूरतमंदों को अन्नदान व अन्य दान करें।
पूर्णिमा (Purnima) के दिन स्नान

प्रायः पूर्णिमा (Purnima) के दिन किसी धार्मिक नदी में ही स्नान करना चाहिए। माघी और पौषी पूर्णिमा के दिन कुम्भ व संगम में स्नान का प्रावधान है। लेकिन सामान्य पूर्णिमा के दिन भी किसी पवित्र नदी में ही स्नान करना चाहिए।
पूर्णिमा (Purnima) पूजा का महत्व

जब भक्तगण रात्रि जागरण अथवा पूजा कर रहे होते हैं तो मान लक्ष्मी अपने वहां पर विचरण करती हैं और सोचती है की जो कोई व् व्यक्ति मेरी पूजा आराधना कर रहा होगा उसे संसार का सारा सुख प्रदान हो ऐसा आशीर्वाद दूंगी और परलोक में भी उसकी मुक्ति का प्रावधान करूंगी। अतः रात्रि जागरण अथवा माँ लक्ष्मी की पूजा करने से माता का आशीर्वाद ,सुख समृद्धि व धन की प्राप्ति होती है। शत्रुओं से भय समाप्त हो जाता है और जीवन सत्मार्ग पर अग्रसित होता है।
पूर्णिमा (Purnima) की कहानी

एक साहूकार की दो बेटियां थीं। साहूकार की दोनों ही बेटियां पूर्णिमा (Purnima) का व्रत रखती थीं। बड़ी बेटी तो अपना व्रत पूरी श्रद्धा के साथ रखती थी और पूर्ण भी करती थी वहीँ छोटी बेटी व्रत तो रखती थी लेकिन व्रत पूरा नहीं करती थी। बड़ी बहन के समझने पर भी वह कहती की जो कर रही हूँ वही बहुत है। जब दोनों बेटियां बड़ी हुईं और उनका विवाह हुआ तो बड़ी बेटी को तो संताने हैं वही छोटी बेटी को संतान तो होती थी लेकिन जीवित नहीं रहती थीं। पंडितों और विद्वानों को दिखने पर यह जानकारी मिली की पूर्णिमा का व्रत अधूरा छोड़ने की वजह से संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है। एक बार फिर छोटी बेटी को गर्भ धारण हुआ और संतान की उत्पत्ति हुयी परन्तु वह भी जीवित नहीं रह सका। बच्चे को एक कपडे में लपेट कर एक काठ के पीढ़े पर रखकर छोटी बहन बड़ी बहन को बुलाने उनके घर गयी और ले आयी। और वही पीढ़ा बैठने को दे दिया बड़ी बहन की चुनरी छूटे ही बच्चा रोने लगा। इतने पर बड़ी बहन ने कहा की तू मुझ पर आरोप लगाना चाहती थी मुझे धर्म भ्रष्ट करना चाहती थी। तब छोटी बहन ने सारी बात बताई। और तब से विधि विधान से पूजा करने लगी और राज्य की रानी होने के नाते पूरे शहर में पूर्णिमा (Purnima) व्रत रखने का ढिंढोरा पिटवा दिया।
पूर्णिमा (Purnima) व्रत का उद्यापन

पूर्णिमा (Purnima) का व्रत पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ रखने के बाद उद्यापन करना भी अनिवार्य माना गया है। पूर्णिमा (Purnima) के दिन धरम यात्रा करनी चाहिए और तीर्थ स्थलों पर जाकर पूजा करनी चाहिए। इस दिन गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए। स्नान के बाद चंद्रदेव की पूजा करनी चाहिए। गरीबों, ब्राह्मणों व भूखों को भोजन कराना चाहिए। अन्नदान और अन्य तरह का दान अवश्य करना चाहिए। यथाशक्ति पूजा करने के बाद उद्यापन पूजा करके पूर्णिमा उद्यापन करना चाहिए।
पूर्णिमा (Purnima) पूजन सामग्री

दूध, दही, घी, शक्कर, गंगाजल, रोली, मौली, चन्दन, ताम्बूल,पुंगीफल,धुप, फूल ( सफ़ेद कनेर ), यज्ञोपवीत, श्वेत वस्त्र, लाल वस्त्र, आक, बिल्व-पत्र, फूलमाला,धतूरा, बांस की टोकरी, आम के पत्ते, चावल, तिल, जाऊ, नारियल, (पानी वाला), दीपक, ऋतुफल, अक्षत, नैवैद्य,कलश, पंचरंग, चन्दन, आटा, रेट, समिधा, कुश, आचार्य के लिए वस्त्र, शिव-पारवती की स्वर्णिम मूर्ति(अथवा पार्थिव प्रतिमा), दूब, आसन आदि।