प्रदोष काल (Pradosh Kaal) क्या है?

प्रदोष काल (Pradosh Kaal) भगवान शिव की पूजा और उपासना का सबसे शुभ दिन माना जाता है यह हर महीने में दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कहा जाता है।इस तिथि पर भगवान् शिव की संध्या काल में पूजा करने का अधिक महत्व माना जाता है
प्रदोष व्रत में भगवान् शिव की पूजा के साथ प्रदोष मंत्र क उच्चारण करना भी अत्यंत फलदायी माना जाता है। प्रदोष व्रत में प्रत्येक दिन का अपना अलग अलग महत्व होता है, जैसे यदि प्रदोष व्रत शनिवार के दिन पड़ता है तो इस दिन व्रत भगवान् शिव की पूजा और प्रदोष काल (Pradosh Kaal)व्रत रखने से पुत्र की प्राप्ति होती है।
मान्यताओ के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति सभी प्रकार की पूजा पाठ और व्रत करने से भी किसी प्रकार का लाभ या सुख शांति नहीं मिल पा रही है तो उसे प्रत्येक माह पड़ने वाले प्रदोष तिथि को व्रत करना चाहिए और भगवान शिव की पूजा उपासना करनी चाहिए।

प्रदोष काल (Pradosh Kaal) में भगवान शिव की पूजा आराधना करने की विधि
प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है, प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत उदय तिथि के अनुसार व्रत रखा जाता है। आइये जानते है भगवान शिव की पूजा विधि और पूजन सामग्री
प्रदोष (Pradosh Kaal) व्रत पूजा सामग्री
- चंदन
- अक्षत
- फूल
- धतूरा
- गुलाल
- अबीर
- बिल्वपत्र
- जनेऊ
- कलावा
- दीपक
- कपूर
- अगरबत्ती
- फल

प्रदोष (Pradosh Kaal) व्रत पूजा विधि
- प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत में सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो लें।
- स्नान करने के बाद साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
- घर के मंदिर को साफ सुथरा कर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
- अगर संभव है तो व्रत अवश्य करें।
- भगवान शिव का गंगा जल से अभिषेक करें।
- पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए
- भगवान शिव को पुष्प अर्पित करें।
- इस दिन भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें।
- किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान शिव को सात्विक भोग लगाएं
- भगवान शिव की आरती करें।
- प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत के दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करने से भगवान शिव मनोकामना की पूर्ति अवश्य करते है।

आइये जानते है पूरे वर्ष कब है प्रदोष (Pradosh Kaal) व्रत 2023 की दिन और तिथि
त्यौहार का नाम | दिन | तारीख |
प्रदोष व्रत | बुधवार | 4 जनवरी 2023 |
प्रदोष व्रत | गुरुवार | 19 जनवरी 2023 |
प्रदोष व्रत | गुरुवार | 2 फरवरी 2023 |
प्रदोष व्रत | शनिवार | 18 फरवरी 2023 |
प्रदोष व्रत | शनिवार | 4 मार्च 2023 |
प्रदोष व्रत | रविवार | 19 मार्च 2023 |
प्रदोष व्रत | सोमवार | 3 अप्रैल 2023 |
प्रदोष व्रत | सोमवार | 17 अप्रैल 2023 |
प्रदोष व्रत | बुधवार | 3 मई 2023 |
प्रदोष व्रत | बुधवार | 17 मई 2023 |
प्रदोष व्रत | गुरुवार | 1 जून 2023 |
प्रदोष व्रत | गुरुवार | 15 जून 2023 |
प्रदोष व्रत | शनिवार | 1 जुलाई 2023 |
प्रदोष व्रत | शनिवार | 15 जुलाई 2023 |
प्रदोष व्रत | रविवार | 30 जुलाई 2023 |
प्रदोष व्रत | रविवार | 13 अगस्त 2023 |
प्रदोष व्रत | सोमवार | 28 अगस्त 2023 |
प्रदोष व्रत | मंगलवार | 12 सितंबर 2023 |
प्रदोष व्रत | बुधवार | 27 सितंबर 2023 |
प्रदोष व्रत | गुरुवार | 12 अक्टूबर 2023 |
प्रदोष व्रत | गुरुवार | 26 अक्टूबर 2023 |
प्रदोष व्रत | शुक्रवार | 10 नवंबर 2023 |
प्रदोष व्रत | शनिवार | 25 नवंबर 2023 |
प्रदोष व्रत | रविवार | 10 दिसंबर 2023 |
प्रदोष व्रत | रविवार | 4 दिसंबर 2023 |
समापन | – | – |
प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत से जुडी पौराणिक कथा

प्राचीन काल की बात है एक अत्यंत गरीब ब्राम्हण हुआ करता था। ब्राम्हण की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख माँगा करती थी और शाम को वापस घर लौटती थी।
एक दिन भिक्छा मंगाते हुए ब्राम्हण की विधवा पत्नी की मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, उस राजकुमार के पिता की मृत्यु हो चुकी थी जिस कारण वह स्थान स्थान पर भटकने लगा था। उस राजकुमार की ऐसी स्थिति ब्राम्हण की विधवा पत्नी से देखी नहीं गयी वह राजकुमार को अपने साथ अपने घर लेकर आ गयी और उसके साथ पुत्रवत व्योहार करने लगी।
एक दिन ब्राम्हण की पत्नी अपने दोनों पुत्रो के साथ शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गयी वह जाकर उसने शांडिल्य ऋषि से शिव जी के प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत की कथा सुनी और घर जाकर वह प्रदोष व्रत करने लगी।
एक समय की बात है दोनों बालक बन में टहल रहे थे, कुछ देर बाद पुजारी का पुत्र घर लौट गया परन्तु विदर्भ देश का राजकुमार वन में ही रह गया। वन में उस साय कुछ गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते देख उनसे बातचीत करने लगा, उसमे से एक कन्या का नाम अंशुमति था। बातचीत करने के कारण उस दिन राजकुमार को घर लौटने में देर हो गयी।
अगले दिन राजकुमार फिर उसी स्थान पर पहुंच गया जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। उस राजकुमार को देखते ही अंशुमति के माता पिता ने उसे पहचान लिया, उन्होंने राजकुमार से पूछा – आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है।
अंशुमति के माता पिता को वह राजकुमार पसंद आ गया और उन्होंने राजकुमार से अपनी पुत्री अंशुमति से विवाह की बात का प्रस्ताव रखा।
राजकुमार ने भी अंशुमति के माता पिता के प्रस्ताव को मान लिया और उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ।

थोड़े समय बाद राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला कर दिया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की। जिसके बाद वह अपनी पत्नी से साथ राज्य करने लगा।
अब राजकुमार ने ब्राम्हण की पत्नी और पुत्र को भी अपने साथ ले आया और आदरपूर्वक रखने लगा।
पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
एक दिन राजकुमार की पत्नी अंशुमति ने इन सभी बातो के पीछे का कारण पूछा तब राजकुमार ने अंशुमति को अपने जीवन की सम्पूर्ण कहानी अंशुमति को बताया और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया।
उसी दिन से प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत की प्रतिष्ठा और महत्वा और भी ज्यादा बढ़ गया और मान्यता अनुसार लोग व्रत और पूजा पाठ करने लगे
कई स्थानों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।

प्रदोष काल व्रत करने के लाभ
प्रदोष व्रत हिन्दू धर्म के मुख्य व्रतों में से एक है , जिसका बहुत अधिक महत्व है प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है।
१- प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
२- हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत रखने से दो गायों का दान करने के समान पुण्य मिलता है।
३- जो भी व्यक्ति प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत करके शिवजी की पूजा करता है उसके ऊपर भगवान् शिव की कृपा हमेशा बनी रहेगी
४- प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोछ की प्राप्ति होती है।
५- अगर आप लम्बी उम्र पाना चाहते हैं तो रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को ज़रूर करें ऐसा करने से आपको लंबी उम्र और अच्छी सेहत मिलेगी।
६- निरोगी काय प्राप्त करने से लिए सोमवार के दिन त्रयोदशी तिथि पर आने वाले प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत को करना उत्तम होता है।
७-प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत को करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
८- शुक्रवार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में हमेशा सुख शांति बनी रहती है।
अगर आप अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत करते हैं तो व्रत से मिलने वाले फल और भी ज्यादा हो जाते है।

प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत में हर दिन का है अपना महत्व और लाभ
१- रविवार को पड़ने वाले प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
२- सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
३- मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
४- बुधवार के दिन प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
५- गुरुवार के दिन प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है।
६- शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शांति के लिए किया जाता है।
७- संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत करना चाहिए।

पांच प्रदोषों का है विशेष महत्त्व
- रवि प्रदोष- रविवार के दिन होने वाले प्रदोष को रवि-प्रदोष कहा जाता है। रवि-प्रदोष व्रत दीर्घायु व आरोग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है। रवि-प्रदोष व्रत करने से साधक को आरोग्यता व अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
- सोम प्रदोष- सोमवार के दिन होने वाले प्रदोष को सोम-प्रदोष कहा जाता है। सोम-प्रदोष व्रत किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए किया जाता है। सोम-प्रदोष व्रत करने से साधक की अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।
- भौम प्रदोष- मंगलवार के दिन होने वाले प्रदोष को भौम-प्रदोष कहा जाता है। भौम-प्रदोष व्रत ऋण मुक्ति के लिए किया जाता है। भौम-प्रदोष व्रत करने से साधक ऋण एवं आर्थिक संकटों से मुक्ति प्राप्त करता है।
- गुरु प्रदोष- गुरुवार के दिन होने वाले प्रदोष को गुरु-प्रदोष कहा जाता है। गुरु प्रदोष व्रत विशेषकर स्त्रियों के लिए होता है। गुरु प्रदोष व्रत दांपत्य सुख, पति सुख व सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है।
- शनि प्रदोष- शनिवार के दिन होने वाले प्रदोष को शनि-प्रदोष कहा जाता है। शनि प्रदोष व्रत संतान प्राप्ति एवं संतान की उन्नति व कल्याण के लिए किया जाता है। शनि-प्रदोष व्रत करने से साधक को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
कैसे करे प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत का उद्ध्यापन

प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए।
उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है, पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है।
ऊँ उमा सहित शिवाय नम: मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है।
हवन में आहुति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है।
हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है और शांति का पाठ किया जाता है।
अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।