प्रदोष काल (Pradosh Kaal) हर महीने में दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कहा जाता है। इस तिथि पर भगवान् शिव की संध्या काल में पूजा करने का अधिक महत्व माना जाता है |

प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत में भगवान् शिव की पूजा के साथ प्रदोष मंत्र क उच्चारण करना भी अत्यंत फलदायी माना जाता है। प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत में प्रत्येक दिन का अपना अलग अलग महत्व होता है|
मान्यताओ के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति सभी प्रकार की पूजा पाठ और व्रत करने से भी किसी प्रकार का लाभ या सुख शांति नहीं मिल पा रही है तो उसे प्रत्येक माह पड़ने वाले प्रदोष तिथि प्रदोष काल (Pradosh Kaal) को व्रत करना चाहिए और भगवान शिव की पूजा उपासना करनी चाहिए।
सप्ताह के सातो दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत का अपना अपना महत्व है और सातो दिन की अलग अलग कथाये भी है। आज हम प्रदोष व्रत में होने वाले सातो दिन प्रदोष काल (Pradosh Kaal) की कथाओ के बारे में जानेगे और साथ ही हम प्रदोष व्रत में भगवान् शिव की पूजा की विधि भी जानेगे।
सोम प्रदोष- सोमवार के दिन होने वाले प्रदोष को सोम-प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कहा जाता है। सोम-प्रदोष व्रत किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए किया जाता है। सोम-प्रदोष व्रत करने से साधक की अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।

सोम प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत कथा
प्राचीन काल की बात है एक अत्यंत गरीब ब्राम्हण हुआ करता था। ब्राम्हण की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख माँगा करती थी और शाम को वापस घर लौटती थी।
एक दिन भिक्छा मंगाते हुए ब्राम्हण की विधवा पत्नी की मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, उस राजकुमार के पिता की मृत्यु हो चुकी थी जिस कारण वह स्थान स्थान पर भटकने लगा था। उस राजकुमार की ऐसी स्थिति ब्राम्हण की विधवा पत्नी से देखी नहीं गयी वह राजकुमार को अपने साथ अपने घर लेकर आ गयी और उसके साथ पुत्रवत व्योहार करने लगी।

एक दिन ब्राम्हण की पत्नी अपने दोनों पुत्रो के साथ शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गयी वह जाकर उसने शांडिल्य ऋषि से शिव जी के प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) की कथा सुनी और घर जाकर वह प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) करने लगी।
एक समय की बात है दोनों बालक बन में टहल रहे थे , कुछ देर बाद पुजारी का पुत्र घर लौट गया परन्तु विदर्भ देश का राजकुमार वन में ही रह गया। वन में उस साय कुछ गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते देख उनसे बातचीत करने लगा , उसमे से एक कन्या का नाम अंशुमति था। बातचीत करने के कारण उस दिन राजकुमार को घर लौटने में देर हो गयी।
अगले दिन राजकुमार फिर उसी स्थान पर पहुंच गया जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। उस राजकुमार को देखते ही अंशुमति के माता पिता ने उसे पहचान लिया, उन्होंने राजकुमार से पूछा – आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है।
अंशुमति के माता पिता को वह राजकुमार पसंद आ गया और उन्होंने राजकुमार से अपनी पुत्री अंशुमति से विवाह की बात का प्रस्ताव रखा।
राजकुमार ने भी अंशुमति के माता पिता के प्रस्ताव को मान लिया और उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ।
थोड़े समय बाद राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला कर दिया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की। जिसके बाद वह अपनी पत्नी से साथ राज्य करने लगा।
अब राजकुमार ने ब्राम्हण की पत्नी और पुत्र को भी अपने साथ ले आया और आदरपूर्वक रखने लगा।
पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

एक दिन राजकुमार की पत्नी अंशुमति ने इन सभी बातो के पीछे का कारण पूछा तब राजकुमार ने अंशुमति को अपने जीवन की सम्पूर्ण कहानी अंशुमति को बताया और साथ ही प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया।
उसी दिन से प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) की प्रतिष्ठा और महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया और मान्यता अनुसार लोग व्रत और पूजापाठ करने लगे
कई स्थानों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
भौम प्रदोष- मंगलवार के दिन होने वाले प्रदोष को भौम-प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कहा जाता है। भौम-प्रदोष व्रत ऋण यानि कर्ज से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। भौम-प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) करने से साधक ऋण एवं आर्थिक संकटों से मुक्ति प्राप्त करता है।
भौम प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कथा
एक समय की बात है एक नगर में एक बहुत बूढी महिला निवास करती थी।
उसका एक पुत्र भी था जिसका नाम मंगलिया था। बूढी महिला भगवान् हनुमान जी पर गहरी आस्था रखती थी वह प्रत्येक दिन नियमानुसार भगवान हनुमान का पूजा पाठ करती और हर बार मंगलवार को व्रत भी किया करती थी। इस प्रकार नियमानुसार व्रत करते हए वृद्धा को अनेको दिन बीत गए।
एक समय भगवान् हनुमान उस बूढी महिला की परीछा लेनी चाही , भगवान् हनुमान साधु का रूप धारण करके उस महिला के घर गए और जोर जोर से पुकारने लगे- है यहाँ कोई हनुमान भक्त जो हमारी इच्छा को पूरी करे ?

साधु की यह बात सुनकर बूढी औरत अपने घर से बहार आयी और बोली – साधु महाराज कहे क्या आज्ञा है।
साधु रुपी हनुमान ने कहा – मै अत्यंत भूखा, हू मै भोजन करना चाहता हू। जमीन लीप कर मुझे भोजन कराओ।
यह सुनकर बूढी महिला बड़ी दुविधा में पड़ गयी, और हाथ जोड़कर बोली- हे महाराज
जमीन लीपने और मिट्टी खोदने के अलावा कोई और आज्ञा करे मै अवश्य ही उसे पूरा करुँगी।
यह सुनकर साधू रुपी भगवान हनुमान क्रोधित होकर बोले – हे औरत तू अपने पुत्र को बुला मै उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा उसके बाद ही मै भोजन ग्रहण करूँगा। यह सुन बूढी औरत सन्न रह गयी किन्तु उसने वचन लिया था इसलिए उसने अपने पुत्र मंगलिया को बुलाकर साधू के सामने सुपुर्द कर दिया ।
साधु रुपी हनुमान जी ने बूढी महिला से ही उसके पुत्र के पीठ पर आग जलने को कहा बूढी औरत बहुत ही दुखी मन से अपने पुत्र के पीठ पर आग जलाकर बहुत ही दुखी मन से अपने घर के अंदर चली गयी।

इधर जब साधु ने भोजन तैयार कर लिया तो उसने बूढी औरत को आवाज लगाई और कहा – अपने पुत्र मंगलिया को बुलाओ वह भी साथ में भोजन कर ले।
यह बात सुनकर बूढी महिला और दुखी हुई और रोते हुए बोली – महाराज अब हमें और दुःख न पहुचाइए । परन्तु साधु के बार बार कहने पर बूढी महिला ने जैसे ही मंगलिया को आवाज लगाया वह दौड़ता हुआ आ गया। यह देख बूढी औरत बहुत प्रसन्न हुई और अस्चर्य चकित होकर साधु के चरणों में गिर पड़ी।
साधु रुपी हनुमान अपने वास्तविक रूप में आकर बूढी औरत को दर्शन दिए। हनुमान जी को अपने घर में देख बूढी औरत का जीवन सफल हो गया।
कहते है – मंगल प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) से शंकर और पार्वती जी इसी तरह भक्तों को साक्षात् दर्शन दे कृतार्थ करते हैं ।”
बुध प्रदोष- बुधवार के दिन होने वाले प्रदोष को बुध-प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कहा जाता है। बुध प्रदोष के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से रोग-शोक से मुक्ति मिलती है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
बुध प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कथा
बहुत समय पहले की बात है एक व्यक्ति का विवाह हुआ, विवाह के बाद वह अपनी पत्नी को लेने अपने ससुराल पंहुचा और अपनी सास से अपनी पत्नी की विदाई की बात कही।
उस दिन बुधवार था। उस व्यक्ति के सास ससुर और घर के सभी सदस्यों ने उसे समझाया की बुधवार के दिन अपनी पत्नी को विदा करके ले जाना शुभ नहीं होता है। परन्तु उस व्यक्ति ने किसी की भी बात नहीं मानी। अंततः विवश होकर लड़की के माता पिता ने अपनी पुत्री को भरी मन से उसके पति के साथ विदा किया।

पति अपने पत्नी को लेकर बैलगाड़ी से अपने घर की तरफ चल पड़ा। नगर से बहार जाते ही पत्नी को तेज प्यास लग गयी, उसका पति हाथ में लोटा लेकर नगर से पानी लेने चल पड़ा। जब वह वापस लौटा तो उसने देखा उसकी पत्नी किसी के लाये हुए लोटे से पानी पीकर उससे हस्ती हुए बातें कर रही थी। वह व्यक्ति भी उस महिला के पति के समान शक्ल वाला था।
यह सब देख महिला का पति क्रोधित हो उठा और उन दोनों में लड़ाई छिड़ गयी। धीरे धीरे बात काफी बढ़ गयी, नगर के काफी सारे लोग भी इकठ्ठा हो गए और सिपाही भी आ गए।
तब सभी ने महिला से पूछा तुम बताओ इनमे से तुम्हारा पति कौन है, महिला बहुत दुविधा में थी वह कुछ भी नहीं बोल रही थी। यह सब देख महिला के पति को बहुत दुखी हुआ, वह मन ही मन बहुत पछताने लगा और भगवान शिव को याद कर बोलै – हे भगवान् मैंने आज बुधवार को अपनी पत्नी को विदा काराकर जो अपराध किया है उसके लिए मुझे क्षमा करो और हमें इस मुसीबत से बचा लो। मै भविष्य में ऐसी गलती दोबारा कभी नहीं करूँगा।

भगवान् शिव उसकी इस बात से द्रवित होकर उसे क्षमा कर दिए जिसके बाद वह दूसरा व्यक्ति अंतरध्यान हो गया।
इसके बाद वह अपनी पत्नी के साथ सही सलामत अपनर नगर को चला गया।
भगवान् शिव की कृपा से वो दोनों पति पत्नी बहुत प्रभावित हुए और इसके बाद से दोनों पति पत्नि नियमपूर्वक बुधवार के दिन प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) को करने लेगे।
गुरु प्रदोष- गुरुवार के दिन होने वाले प्रदोष को गुरु-प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कहा जाता है। गुरु प्रदोष व्रत विशेषकर स्त्रियों के लिए होता है। गुरु प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) दांपत्य सुख, पति सुख व सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है। गुरुवार प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) रखने से भक्तों को अपने पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है
गुरु प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कथा
एक समय की बात है एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में भयंकर युद्ध होने लगा , देवताओ ने दैत्य की सेना को परास्त कर नस्ट कर दिया। यह सब देख दैत्य वृत्रासुर अत्यन्त क्रोधित हो उठा और वह स्वय ही युद्ध के लिए आ पंहुचा।
वृत्रासुर ने अपनी आसुरी माया द्वारा विकराल रूप धारण कर लिया जिससे सभी देवतागण अत्यंत भयभीत हो गए और सभी गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुंच गए।
सभी देवतागण ने गुरुदेव बृहस्पति सारी बात बताई तो गुरुदेव बृहस्पति ने कहा – पहले मै तुम्हे वृत्रासुर का परिचय देता हू।

वृत्रासुर बहुत ही तपस्वी और कर्मनिष्ठा है उसने कई वर्षो तक गन्धमादन पर्वत पर तपस्या कर भगवान् शिव को प्रसन्न किया। पूर्व समय में वृत्रासुर चित्ररथ नाम का राजा था, एक बार वह अपने विमान से भ्रमण करते हुए कैलाश पर पहुंच गया, जहा उसने भगवान् शिव के साथ माता पारवती जी को उनके वाम अंग में विराजमान देखकर उनका उपहास करते हुए बोला- हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं। किन्तु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।
चित्ररथ के ऐसे शव्द सुनकर भगवान् शंकर ने हसते हुए कहा- हे राजन मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है, मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है उसके पश्चात भी तुम मेरा जान साधारण की भाटी मजाक उड़ाते हो।यह सुन माता पार्वती अत्यंत क्रोधित हो उठी। माता ने क्रोध में आकर बोला- अरे मुर्ख तूने सर्बव्यापी महादेव का ही नहीं अपितु उनके साथ मेरा भी उपहास किया है
मै तुझे ऐसा दंड दूंगी की तू दोबारा किसी भी सन्यासी का उपहास करने का दुःसाहस नहीं करेगा। इतना कहकर माता पार्वती ने उसे शाप दे दिया।
माता पार्वती के शाप के कारण वह दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर गया। पार्वती माता के शाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना।

गुरुदेव बृहस्पति ने कहा – वृत्रासुर बालक अवस्था से ही भगवान् शिव का भक्त रहा है। अतः हे इन्द्र तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।
देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) किया और गुरु प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) के प्रताप से इन्द्र ने शीघ्र ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त किया जिससे वृत्रासुर का अंत हुआ और देवलोक मे शांति छा गई।
बोलो उमापति शंकर भगवान की जय।
शुक्र प्रदोष- शुक्रवार को पड़ने वाले व्रत को शुक्र प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत कहते हैं। इस दिन किए जाने वाले प्रदोष व्रत से सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वरदान मिलता है। प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) की पूजा शाम के समय प्रदोषकाल में की जाती है।
शुक्र प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कथा
एक समय की बात है एक नगर में 3 मित्र रहते थे जिसमे से एक राजकुमार था दूसरा ब्राम्हण परिवार से था और तीसरा एक धनिक सेठ का पुत्र था। राजकुमार और ब्राम्हण का विवाह हो चूका था किन्तु सेठ के पुत्र का विवाह तो हो गया था लेकिन गौना बाकी था।
एक दिन तीनो मित्र बैठ कर स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे तभी ब्राम्हण कुमार ने कहा नारी हीं धार भूतो का डेरा होता है। यह सुनकर सेठ का पुत्र तुरंत ही अपनी पत्नी का गौना लेन का निश्चय किया। जब सेठ के पुत्र ने अपने माता पिता को यह बात बताई तो उन्होंने कहा अभी शुक्र देवता दुबे हुए है ऐसे में घर की बहु बेटियों को घर से विदा करवा कर लाना शुभ नहीं माना जाता है, लेकिन सेठ के पुत्र ने किसी की बात नहीं मानी और वह अपनी पत्नी को लेने ससुराल पहुंच गया।

ससुराल में पत्नी की विदाई की बात कहने पर ससुराल वालो ने भी उसे मानाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं माना। तब उसके पत्नी के माता पिता विवश होकर अपनी बेटी की विदाई उसके साथ कर दिया। विदाई के बाद जैसे ही दोनों पति पत्नी शहर से बहार निकले ही थे की उनकी बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल लड़खड़ाकर गिर गए और बैल की टांग टूट गयी। दोनों पति पत्नी को भो चोट लग गयी, फिर भी वह दोनों चलते रहे।
थोड़ी दूरी पर जाने के बाद उन दोनों का पाला डाकुओ से पड़ गया, डाकू उनका सारा धन भी लूटकर चले गए जैसे-तैसे दोनों पति पत्नी अपने घर पहुंचे।
घर पहुंचने के थोड़े समय बाद ही सेठ के पुत्र को सांप ने डस लिया। सेठ ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया की उसका पुत्र मात्र 3 दिन तक ही जीवित रहेगा उसके बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी।
जब सेठ के पुत्र के ब्राम्हण मित्र को यह बात पता चली तो वह उस सेठ के पुत्र से मिलने उसके घर आया और उसके माता पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दिया और कहा की इसे पत्नी सहित दोबारा इसके ससुराल भेज दो।
सेठ के पुत्र ने धनिक की बात मानी और अपनी पत्नी के साथ अपने ससुराल पहुंच गया। और उसके माता पिता ने शुक्र प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) भी करना शुरू कर दिया।

उसकी हालत ठीक होती गई यानी शुक्र प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए।
कहते है की शुक्र प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) के दिन कथा कहे या सुने तथा कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11 या 21 या 108 बार ‘ॐ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा’ मंत्र से आहुति दें। आहुति के बाद शिव जी की आरती करे और प्रशाद वितरित करे।
उसके बाद भोजन करें। कहा जाता है कि शुक्रवार को प्रदोष व्रत सौभाग्य और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि भर देता है। यही कारण है कि आज के प्रदोष व्रत का काफी खास माना जा रहा है। शुक्रवार के दिन पड़ने वाले इस प्रदोष व्रत से सुख-समृद्धि मिलती है।
शनि प्रदोष- शनिवार के दिन होने वाले प्रदोष को शनि-प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कहा जाता है। शनि प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) संतान प्राप्ति एवं संतान की उन्नति व कल्याण के लिए किया जाता है। शनि-प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) करने से साधक को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
शनि प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) व्रत कथा
एक अत्यंत प्राचीन कथा के अनुसार प्राचीन कल में एक सेठ रहता था। सेठ जी सभी प्रकार के धन दौलत से परिपूर्ण थे लेकिन संतान न होने के कारन बहुत दुखी रहा करते थे।
बहुत समय के बाद सोच विचार करके सेठ जी अपना सारा कारोबार अपने नौकरो को सौप कर सेठानी के साथ साथ तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े।

शहर से बहार निकलते ही सेठ को एक साधु दिखाई दिए जो दिन मुद्रा में बैठे हुए थे। सेठ जी ने सोचा पहले साधु जी का आशीर्वाद लेकर तब आगे की यात्रा आरम्भ करते है।
यह सोच दोनों पति पत्नी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखे खोली तो देखा की दोनों पति पत्नी काफी समय से आशीर्वाद लेने के लिए उनके सम्मुख बैठे हुए है।
साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा।
साधू ने दोनों पति पत्नी को शनि प्रदोष की कथा और पूजा विधि बताई और भगवान् शंकर की वंदना करने को कहा –
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार।
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।।
हे नीलकंठ सुर नमस्कार।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार।।
हे उमाकांत सुधि नमस्कार।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार।।
ईशान ईश प्रभु नमस्कार।
विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।
दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ।

रवि प्रदोष- रविवार के दिन होने वाले प्रदोष को रवि-प्रदोष प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कहा जाता है। जो भी मनुष्य रवि प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) को करता है, वह सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।
रवि प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) कथा
एक गांव में अति गरीब ब्राम्हण रहता था उसकी पत्नी प्रदोष व्रत प्रदोष काल (Pradosh Kaal) करती थी उसके एक पुत्र भी था।
एक समय की बात है एक दिन उसका पुत्र गंगा में स्नान करने गया, दुर्भाग्य वश उसको चोरो ने घेर लिया और उससे पूछने लगा की तुम्हारे माता पिता ने अपना गुप्त धन कहा रखा है हमें बतलाओ वार्ना हम तुम्हे मार देंगे।
बालक ने विनती करते हए कहा भाइयो हम बहोत गरीब है हमारे पास धन कहा से होगा। चोरो ने गरीब के हाथ में पोटली देखी तो कहा इस पोटली में क्या है ऐसे मुझे दो। तब गरीब ने निसंकोच भावना से कहा भाई इसमें मेरी माता ने रोटी बांध कर दी है।

यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया।
गरीब बालक चलता हुआ एक नगर में पंहुचा नगर के पास ही एक बरगद का पेड़ था। बालक चलकर थक चुका था वह उस बरगद की छाया में सो गया उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गए। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया।
ब्राम्हण का लड़का जब घर नहीं लौटा तो उसकी माँ को अपने बेटे की चिंता हुई, दूसरे ही दिन प्रदोष व्रत था ब्राम्हण की पत्नी ने व्रत रखा और भगवान् शंकर से मन ही मन अपने पुत्र के लिए प्रार्थना करने लगी।
भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा तुम्हारा सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा। प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया गया। बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई।
ब्राम्हण के पुत्र की सारी बाटे सुनकर राजा ने आने सिपाहियों को बुलाया और उसे सकुशल बालक को घर पहुंचने को कहा और उसके माता पिता को दरबार में बुलाया।
राजा के दरबार में बुलाये जाने की खबर सुनकर उसके माता पिता भयभीत हो उठे, तब राजा ने कहा आपको डरने की जरूरत नहीं है आपका बालक निर्दोष है
राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें। इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा। शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।

अत: जो भी मनुष्य रवि प्रदोष व्रत को करता है, वह सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।