मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) एक ऐसे प्रतिभाशाली वयक्तित्वा के धनि व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी साहित्य की काया ही पलट दी हर दिन हिंदी को नयी पहचान दिलाने वाले महान साहित्यकार, कहानीकार और संपादक मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी की माता का नाम आनंदी देवी और पिता जी का नाम अजायबराय था, मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी लमही में ही एक डाक मुंशी थे। मुंशी प्रेमचंद्र के पिता जी का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का शुरुवाती जीवन बहुत कठिनाइयों से बीता था।

रामविलास शर्मा लिखते है – मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के माता पिता बचपन में ही गुजर गए। जब मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी 7 साल के थे तभी उनकी माता जी का निधन हो गया था , उनकी माता जी के निधन के बाद पिता जी ने दूसरी शादी कर ली, सौतेली माता होने के कारण मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी को परिवार में भी अधिक प्रेम नहीं मिला। कुछ ही साल बाद उनके पिता जी का भी देहांत हो गया, तब मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी महज 16 वर्ष के थे। बचपन में ही माता पिता का साया उठ जाने के बाद का बचपन बेहद दुखगमय स्थितियों से बीता।

मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी जब महज 15 साल के थे तभी उनका विवाह हो गया था, मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी का विवाह जिनसे हुआ था वो उम्र में मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी से बड़ी थी उनकी जबान भी बहुत अधिक कठोर थी वो अधिकतर मुंशी प्रेमचंद जी को व्यंग बोलती रहती थी, उम्र में बड़े होने के बाद भी उनके पास न तो संस्कार थे न ही परिवार चलाने का तरीका। मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी की पत्नी उनकी विपरीत परिस्थितियों को भी नहीं समझती थी, मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी के जीवन में गरीबी होने के कारण उनकी पत्नी और उनमे लगातार वाद विवाद भी रहा करता था

मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने स्वय ही लिखा: वह उम्र में हमसे बड़ी थी। जब मै उनका चेहरा देखा तो मेरा खून सूख गया चेहरे के साथ साथ वो जबान से भी मीठी न थी।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने अपनी शादी के विषय में भी लिखा: पिताजी ने जीवन के अन्तिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया मेरी शादी बिना सोंचे समझे कर डाली, हालांकि मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी के पिताजी को भी बाद में इसका एहसास हुआ और काफी अफसोस किया।

पत्नी के व्यवहार से मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी के परिवार में लगातार कटुरता बनी रही और इन्ही सब कटुरताओ के कारण 1905 में मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी की पत्नी घर छोड़ कर अपने मायके चली गयी और फिर कभी वो वापस नहीं आयी।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी की आर्थिक परिस्थितियों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनको पैसो की तंगी के चलते अपना कोट भी बेचना पड़ा, यही नहीं एक समय ऐसा आया की पैसो के लिए उनको अपनी किताबे तक बेचनी पड़ गयी ।
नाम | मुंशी प्रेमचंद्र |
उप नाम | धनपतराय |
जन्म और जन्म स्थान | 31 जुलाई सन् 1880 बनारस (काशी) के समीप लमही में |
पिता का नाम | अजायब राय |
माता का नाम | आनंदी देवी |
भाषा | हिन्दी व उर्दू |
शिक्षा | एम० ए० |
पत्नी | शीवरानी देवी |
बच्चे | तीन बच्चे, श्रीपतराय, अमृतराय, कमला देवी |
मुख्य रचना | गोदान, गबन |
कार्यक्षेत्र | अध्यापक, लेख, पत्रकार |
मृत्यु | 8 अक्टूबर 1936 |
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी की शिक्षा:
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी की आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। मुंशी प्रेमचंद जी की शिक्षा सात वर्ष की उम्र में ही शुरू हो गयी थी, मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी के गांव लमही में ही एक मदरसा था जहा प्रेमचंद्र जी अपनी शुरुवाती शिक्षा के लिए जाया करते थे। मदरसे से ही मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने हिंदी के साथ साथ उर्दू और अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने अपनी मेहनत से अपनी पढाई जारी रखा । महज 13 साल की उम्र में ही मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने तिलिस्म -ऐ- होशरुबा पढ़ लिया और उर्दू के महान रचनाकार रतन नाथ मिर्जा, हादी रुशवा, और मौलाना शरर के उपन्यासो से भी परिचय प्राप्त कर लिया।

1897 में एक लम्बी बीमार की वजह से मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी के पिताजी का देहांत हो गया था इतनी विपरीत परिस्थितियों के वावजूद भी मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने मैट्रिक में दूसरी श्रेणी में परीछा पास की।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी को क्वीन कालेज में एड्मिसन लेना था ताकि उनकी फीस में कुछ माफ़ी मिल सके लेकिन उनको क्वीन कालेज में प्रवेश न मिल सका क्योकि वहा प्रथम श्रेणी में उत्त्रीण बच्चो को ही फीस में माफ़ी मिलती थी और मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी के पास पूरी फीस भरने के पैसे नहीं थे। क्वीन कालेज में प्रवेश न मिलने के बाद भी मुंशी प्रेमचंद जी ने हार नहीं मानी उन्होंने सेन्ट्रल हिन्दू कालेज में भी प्रवेश लेना चाहा परन्तु वहा पर उनकी गणित कमजोर होने के कारण प्रवेश नहीं मिला।

जैसे तैसे उन्होंने अपना प्रवेश इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ले कर कालेज की परीछा उत्तीर्ण कर ली लेकिन पैसो की तंगी के कारण उनको अपनी पढाई बीच में ही छोड़नी पड़ी।
मुंशी प्रेमचंद जी बहुत ही संघर्ष करने वाले व्यक्ति थे, मुंशी प्रेमचंद जी अपनी पढाई के लिए अपने गांव से चलकर बनारस पैदल नंगे पैर जाया करते थे। मुंशी प्रेमचंद जी आगे चलकर वकील बनना चाहते थे किन्तु पैसो की तंगी ने उन्हें तोड़कर रख दिया।
स्कूल आने जाने की झंझट से बचने और समय बचने के लिए मुंशी प्रेमचंद जी ने एक वकील साहब के वहा कमरा लेकर पढाई करने लगे और साथ ही साथ ट्यूशन पढ़ाने लगे। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के उनको 5 रूपए मिलते थे जिनमे से 3 रुपये घर भेजकर 2 रूपए में अपना गुजारा किया करते थे।
मुंशी प्रेमचंद जी हार मानने वालो में से नहीं थे उन्होंने सन् 1919 में फिर से अध्यन करके BA की डिग्री हासिल किया, 1919 में BA की डिग्री प्राप्त करने के बाद मुंशी प्रेमचंद्र जी शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त हो गए।
असहयोग आंदोलन के चलते महात्मा गांधी के आवाहन पर मुंशी प्रेमचंद्र जी ने 23 जून 1921 में अपनी सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया, इसके बाद मुंशी प्रेमचंद्र जी ने लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया।

मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी का विवाह :
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी का पहला विवाह बचपन में 15 वर्ष की उम्र में ही हो गया था लेकिन पत्नी बहुत विपरीत व्यवहार की होने के कारण मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी की गरीबी में न रह सकी उनकी वाणी भी बहुत कठोर थी इन सबसे मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी के परिवार में रोज विवाद रहा करता था। एक दिन किसी बात विवाद के कारण उनकी पत्नी अपने मायके चली गयी और फिर दोबारा कभी वापस नहीं आयी।

जीवन की कठिन परिस्थितियों से अपने जीवन का निर्वाह करते हुए मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने जैसे तैसे अपनी पढ़ाई को पूरा किया विवाह विच्छेद के बाद भी काफी दिनों तक मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी अपनी पत्नी को खर्चे भेजते रहे परन्तु बाद में 1905 के अंत में मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने शीवरानी देवी से शादी कर ली। शीवरानी देवी एक बाल विधवा थी|
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी विधवा विवाह के पछधर थे और इन्ही कारणों से मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने सामाज के विरूद्ध जाकर शीवरानी देवी जी से विवाह किया, विधवा विवाह का सहयोग करने के लिए मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी को सराहना भी मिलती रही है।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी के तीन बच्चे थे जिनमे से दो पुत्र थे जिनका नाम श्रीपतराय व अमृतराय था तथा एक पुत्री जिसका नाम कमला देवी था ।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का साहित्यिक जीवन:
1901 से मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के साहित्यिक जीवन की शुरुवात हो चुकी थी, शुरुवाती दौर में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी नवाब राय के नाम से उर्दू लिखते थे, मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने अपनी पहली रचना अपने मामा के प्रेम में लिखी जिसमे उनके मामा की पिटाई के बारे में जिक्र किया था किन्तु मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की वो पहली रचना अप्रकाशित ही रही।
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का पहला प्रकाशित लेखन उर्दू उपन्यास ”असरारे मआबिद” है जो धारावाहिक के रूप में भी प्रकाशित हुआ। असरारे मआबिद का हिंदी रूपांतरण “देवस्थान का रहस्य” नाम से हुआ।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का दूसरा नाटक ”हमखुर्मा व हमसवाब” जिसका हिंदी रूपांतरण ”प्रेमा’‘ के रूप 1907 में हुआ।
1908 में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की पहली कहानी ”सोजे वतन” प्रकाशित हुई।
देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत इस संग्रह को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं और इसके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा।
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का यह नाम दयानारायन निगम जी ने रखा। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का ”प्रेमचंद्र” नाम से उनकी कहानी बड़े घर की बेटी जमाना पत्रिका दिसंबर 1910 के अंत में प्रकाशित हुई।

1915 में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की प्रसिद्ध हिंदी पत्रिका ”सरस्वती’‘ दिसंबर के अंत में उनकी कहानी ”सौत” नाम से प्रकाशित हुई।
1918 में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का पहला हिंदी उपन्यास ”सेवा सदन’‘ प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास की अत्यधिक लोकप्रियता से मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी को उर्दू से हिंदी का कथाकार बना दिया , मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की सभी रचनाये हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओ में प्रकाशित होती रही।
1921 के अंत में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने ”मर्यादा” नामक पत्रिका के संपादन किया, इसके बाद मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने लगातार 6 वर्षो तक हिंदी पत्रिका ”माधुरी’‘ के संपादन किया।
1922 में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने बेदखली की समस्या पर आधारित ”प्रेमाश्रय” उपन्यास प्रकाशित किया।
1925 में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने ”रंगभूमि” नामक वृहद् उपन्यास लिखा, इस उपन्यास के लिए मुंशी प्रेमचंद्र जी को मंगला प्रसाद पारितोषिक भी मिला।
1927 के दौरान मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने महादेवी वर्मा द्वारा सम्पादित हिंदी मासिक पत्रिका चाँद के लिए ‘‘निर्मल” के रूप में धारावाहिक उपन्यास की रचना की।
1928 में मुंशी प्रेमचंद्र जी ने ”गबन” प्रकाशित किया।
1930 में वनारस से अपनी मासिक पत्रिका ”हंस” का प्रकाशन शुरू किया।
1932 में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने हिंदी साप्ताहिक पत्र ”जागरण” का प्रकाशन आरम्भ किया। तथा 1932 में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की कर्मभूमि प्रकाशित हुई
1934 में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने एक फिल्म की कहानी भी लिखी जिस फिल्म का नाम ”मजदूर” था।

1936 में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की गोदान नामक रचना प्रकाशित हुई। 1936 में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की, और उन्होंने मोहन दयाराम भवनानी की अजंता सिनेटोन कंपनी में कथा-लेखक की नौकरी भी की।
सन 1920 से 1936 तक मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने लगभग 10 से अधिक कहानी प्रतिवर्ष लिखा। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने लगभग 300 कहानिया डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखे। यही नहीं मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के निधन के बाद उनकी कहानिया ”मानसरोवर” नाम से आठ खंडो में प्रकाशित हुई, कहानी और उपन्यास के अतिरिक्त वैचारिक निबंध, संपादकीय, पत्र के रूप में भी उनका विपुल लेखन उपलब्ध है

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के उपन्यास :
सेवासदन, रंगभूमि, निर्मला, प्रेमाश्रम, गबन, गोदान कर्मभूमि, आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की कहानिया :
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की कहानियो में अधिकतर निम्न और माध्यम वर्ग के लोगो का ही चित्रण है, डॉ॰ कमलकिशोर गोयनका ने मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की सभी कहानियो को रचनावली के नाम से प्रकाशित करवाया है। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में 300 से अधिक कहानिया और 18 से अधिक उपन्यासों की रचना की है। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की इन्ही क्षमताओं के कारण इन्हे ”कलम का जादूगर” भी कहा जाता है।
मुंशी प्रेमचंद्र जी की कुछ कहानियो की सूची नीचे दी गई है –
क्रिकेट मैच | कवच | कातिल | कोई दुःख न हो तो बकरी खरीद ला |
कौशल | त्रिया चरित्र | आखिरी मंजिल | एक्ट्रेस |
खुदी | टंगे वाले का बड़ | आत्म संगीत | कफ्तान साहब |
गैरत की कटार | त्रिशूल | आत्माराम | कर्मो का फल |
गुल्ली डंडा | दंड | दो बैलो की कथा | पुत्र प्रेम |
घमंड का पुतला | दुर्गा का मंदिर | आल्हा | पैपुजी |
ज्योति | अंधेर | इज्जत का खून | प्रतिशोध |
जेल | अनाथ लड़की | इस्तीफा | प्रेमसूत्र |
जुलूस | अपनी करनी | ईदगाह | पर्वत यात्रा |
झांकी | अमृत | ईस्वरीय न्याय | प्रायश्चित |
ठाकुर का कुँआ | अलग्योझा | उद्धार | परीक्षा |
तेतर | आखिरी तोहफा | एक आंच की कसर | पूस की रात |
बैंक का दिवाला | देवी | नसीहतों का दफ्तर | स्वर्ग की देवी |
बेटो वाली विधवा | देवी एक और कहानी | नाग पूजा | राजहठ |
बड़े घर की बेटी | दूसरी शादी | नादान दोस्त | राष्ट्र का सेवक |
बड़ेबाबू | दो सखियाँ | निर्वासन | लैला |
बड़े भाई साहब | धिक्कार | पांच परमेश्वर | वफ़ा का खजर |
बंद दरवाजा | धिक्कार और एक कहानी | पत्नी से पति | वासना की कड़ियाँ |
बाँका जमींदार | नेउर | मुबारक बीमारी | विजय |
बोहनी | नेकी | ममता | विश्वास |
मैकू | नबी का निति व्योहार | माँ | शंखनाद |
मंत्र | नैराश्य | माँ का ह्रदय | शूद्र |
मंदिर और मस्जिद | नैराश्य लीला | मिलाप | शराब की दूकान |
मनावन | नशा | मोटेराम जी शास्त्री | शांति |
शादी की वजह | समस्या | कफ़न | गृहदाह |
स्त्री और पुरुष | सैलानी बन्दर | मुक्ति | सवा शेर गेहू |
स्वांग | स्वामिनी | सौत | नमक का दरोगा |
सभ्यता का रहस्य | सिर्फ एक आवाज | होली की छुट्टी | दूध का दान |
समर यात्रा | सुहाग का शव्द | नमक का दरोगा | उपदेश |

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की कहानी संग्रह:
1917 में सप्तसरोज के पहले संस्करण की भूमिका लिखी गयी, सप्तसरोज में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की सात कहानिया संकलित है।
उदहारण :बड़े घर की बेटी, सौत, सज्जनता का दंड, पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा, उपदेश, परीक्षा आदि।
नवनिधि : नवनिधि में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की नौ कहानियो का संग्रह है।
जैसे : राज हरदौल , रानी सारन्धा, पाप का अग्निकुण्ड, मर्यादा की वेदी, धोखा, अमावस्या की रात्रि, जुगुनू की चमक, ममता, पछतावा आदि।
प्रेमपूर्णिमा
प्रेम-पचीसी
प्रेम-प्रतिमा
प्रेम-द्वादशी
समरयात्रा: समरयात्रा के अंतर्गत मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand)जी की 11 राजनीतिक कहानियों का संकलन किया गया है।
जैसे :कानूनी कुमार, जेल, लांछन, ठाकुर का कुआँ, पत्नी से पति, शराब की दुकान, जुलूस, मैकू, होली का उपहार, अनुभव, आहुति, समर-यात्रा आदि।
मानसरोवर : भाग एक व दो और ‘कफन’।मुंशी प्रेमचंद्र जी मृत्यु के बाद उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ शीर्षक से 8 भागों में प्रकाशित हुई।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के प्रमुख नाटक:
संग्राम
कर्बला
प्रेम की वेदी |
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के निबंध :
मुंशी प्रेमचंद्र जी के कुछ प्रमुख निबंध निम्नलिखित है –
पुराना जमाना नया जमाना
स्वराज के फायदे
कहानी कला
कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार
हिन्दी-उर्दू की एकता
महाजनी सभ्यता
उपन्यास
जीवन में साहित्य का स्थान।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का सम्पादन :
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी एक बड़े ही अच्छे सम्पादक भी थे। उन्होंने ”जागरण” नमक समाचार पत्र का संपादन किया। इसके साथ ही साथ मुंशी प्रेमचंद्र जी ने ”हंस” नमक मासिक पत्रिका का भी सम्पादन किया। मुंशी प्रेमचंद्र जी ने सरस्वती प्रेस भी चलाया था , मुंशी प्रेमचंद्र जी उर्दू पत्रिका ”जमाना” में नबाब राय के नाम से लिखते थे |

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के अनुवाद :
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने कई अनुवाद भी किये मुंशी प्रेमचंद्र जी एक सफल अनुवादक भी थे। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने अनेक भाषाओ में भी कई लेख पढ़े और उनसे प्रभावित हुए और उनमे से कई कृतियों का अनुवाद भी किया।
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने ”टॉलस्टॉय की कहानियाँ’‘ ”गाल्सवर्दी के तीन नाटकों का हड़ताल ”चाँदी की डिबिया” का ”न्याय” नाम से अनुवाद किया।
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का रतन नाथ के उर्दू उपन्यास फ़सान – ए- आजाद का हिंदी में अनुवाद ”आजाद कथा’‘ भी मशहूर हुई।
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) पर लिखे गए कुछ ग्रन्थ:
कलम का मजदूर | मदन गोपाल | 1964 ई. |
प्रेमचंद घर में | शिवरानी देवी | 1944 ई. |
प्रेमचंद | राम रत्न भटनागर | 1948 ई. |
कलम का सिपाही | अमृत राय | 1962 ई. |
प्रेमचंद जी की उपन्यास-कला | जनार्दन प्रसाद झा ’द्विज’ | 1933 ई. |
प्रेमचंद एक अध्ययन | रामरत्न भटनागर | 1944 ई. |
कलाकार प्रेमचंद | राम रत्न भटनागर | 1951 ई. |
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की विचारधारा :
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी मानवतावादी भी थे और मार्क्सवादी भी थे , मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी प्रगतिवादी विचारधारा के भी थे। प्रेमाश्रय के दौर से ही मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी प्रगतिवादी विचार धारा की तरफ आकर्षित थे। मुंशी प्रेमचंद्र जी ने 1936 प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन को सभापति के रूप में संबोधन किया था मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का यही भाषण प्रगतिशील आंदोलन के घोषणा पत्र का आधार बना। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी सेवासदन के दौर में वे यथार्थवादी समस्याओं को चित्रित तो कर रहे थे लेकिन उसका एक आदर्श समाधान भी निकाल रहे थे। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी अपनी विचारधारा को आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहा है, साथ ही साथ प्रेमचंद स्वाधीनता संग्राम के सबसे बड़े कथाकार हैं और ऐसी अर्थ में उनको राष्ट्रवादी भी कहा जाता है, इस अर्थ में प्रेमचंद निश्चित रूप से हिंदी के पहले प्रगतिशील लेखक कहे जा सकते हैं।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की विशेषताए:
हिन्दी साहित्य को आधुनिक रूप प्रदान करने वाले मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी सरल सहज हिन्दी को ऐसा साहित्य प्रदान किया जिसे हम कभी भूल नहीं सकते है कठिन परिस्थियों का सामना करते हुए हिन्दी जैसे, खुबसूरत विषय मे अपनी एक अमिट छाप छोड़ने वाले मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी हिन्दी के लेखक ही नही बल्कि, एक महान साहित्यकार, नाटककार, उपन्यासकार जैसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की BBC हिंदी में प्रकाशित विनोद वर्मा के साथ हुए साक्षात्कार रचना दृष्टि की प्रासंगिकता में मन्नू भंडारी जी मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी के विषय में बताती हैं कि साहित्य के प्रति और साहित्य के हर दृष्टि के प्रति यानी चाहे राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक सभी को उन्होंने जिस तरह अपनी रचनाओं में समेटा और खास करके एक एक आम आदमी को, एक एक किसान को, आम दलित वर्ग के लोगों को वह अपने आप में एक उदाहरण थे, साहित्य में दलितों के लिए विचार – विमर्श की शुरुआत शायद प्रेमचंद की रचनाओं से हुई थी।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के अनमोल वचन :

- खाने और सोने का नाम जीवन नही है । जीवन नाम है सदेव आगे बढ़ते रहने की लगन का ||
- विपति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नही खुला |
- धन खोकर यदि हम अपनी आत्मा को पा सके तो कोई महंगा सौदा नही है |
- सिर्फ उसी को अपनी सम्पति समझो जिसे, तुमने मेहनत से कमाया है |
- अन्याय का सहयोग देना, अन्याय करने समान है |
- आत्मसम्मान की रक्षा करना हमारा सबसे पहला धर्म हैं |
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी की विरासत :

जिस समय में मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने लेखन के लिए अपनी कलम उठाई उस समय उनके पास ऐसी कोई विरासत नहीं थी वो भी बिलकुल सामान्य थे बल्कि उनके जीवन में बहुत सारी कठिनाईयां भी थी लेकिन मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने हार नहीं मानी उन्होंने अपनी कला को शिखर पर पहुंचने के लिए अनेको प्रयोग किये।
प्रेमचंद एक क्रांतिकारी रचनाकार थे, उन्होंने न केवल देशभक्ति बल्कि समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों को देखा और उनको कहानी के माध्यम से पहली बार लोगों के समक्ष रखा
एक समय ऐसा आया जब मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने गोदान की रचना की जिसे आज के समय में भी बहुत क्लासिक माना जाता है। मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी ने अपने आप को स्वय ही गढ़ा और अपने आप को आकार प्रदान किया जब भारत का स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था तब उन्होंने कथा साहित्य द्वारा हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं को जो अभिव्यक्ति दी उसने सियासी सरगर्मी को, जोश को और आंदोलन को सभी को उभारा और उसे ताक़तवर बनाया और इससे उनका लेखन भी ताक़तवर होता गया । मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी इस अर्थ में अत्यंत प्रगतिशील लेखक कहे जा सकते है मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी का भाषण प्रगतिशील आंदोलन के घोषणा पत्र का आधार बना। प्रेमचंद ने हिन्दी में कहानी की एक परंपरा को जन्म दिया और एक पूरी पीढ़ी उनके कदमों पर आगे बढ़ी।
रेणु, नागार्जुन औऱ इनके बाद श्रीनाथ सिंह ने ग्रामीण परिवेश की कहानियाँ लिखी हैं, वो एक तरह से प्रेमचंद की परंपरा के तारतम्य में आती हैं। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने उस समय के समाज की जो भी समस्याएँ थीं उन सभी को चित्रित करने की शुरुआत कर दी थी। उसमें दलित भी आते हैं, नारी भी आती हैं। ये सभी विषय आगे चलकर हिन्दी साहित्य के बड़े विमर्श बने।
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी हिन्दी सिनेमा के सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्यकारों में से है। सत्यजित राय जी ने मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की दो कहानियों पर यादगार फ़िल्में भी बनाईं। जिनका नाम है शतरंज के खिलाड़ी और सद्गति।
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के निधन के कुछ साल बाद सुब्रमण्यम ने सेवासदन उपन्यास पर फ़िल्म बनाई जिसमें सुब्बालक्ष्मी ने मुख्य भूमिका निभाई थी।
मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित ओका ऊरी कथा नाम से एक तेलुगू फ़िल्म बनाई जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
गोदान और गबन उपन्यास पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं ।
मुंशी प्रेमचंद्र जी के उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक निर्मला भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के पुरस्कार व सम्मान :
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के सम्मान में उनकी जन्मशती के अवसर पर भारतीय डाक विभाग की ओर से 1 जुलाई 1980 को 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया ।
गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहाँ प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। इस स्कूल में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है । यही पर मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी एक वक्षप्रतिमा भी है।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) की 125वीं सालगिरह पर सरकार की ओर से घोषणा की गई कि वाराणसी से लगे इस गाँव में प्रेमचंद के नाम पर एक स्मारक तथा शोध एवं अध्ययन संस्थान बनाया जाएगा।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी की सभी पुस्तकों के अंग्रेज़ी व उर्दू रूपांतर तो हुए ही हैं, चीनी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कहानियाँ लोकप्रिय हुई हैं।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी के बेटे अमृत राय ने कलम का सिपाही नाम से पिता की जीवनी लिखी है।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) की पत्नी शिवरानी देवी ने “प्रेमचंद घर में” नाम से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया है, जिससे लोग अनजान थे।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी की समालोचना :
हिंदी जगत के महान लेखक जब हिंदी जगत में लेखक के रूप में आये तब उन्होंने अपनी शुरुवात उर्दू संस्करण से किया। और बाद में वो हिंदी के महान लेखक बन गए। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने हिंदी को अपना ख़ास मुहाबरा और खुलापन दिया। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी कहानी और उपन्यास दोनो में युगान्तरकारी परिवर्तन किए, मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी से पहले हिंदी साहित्य राजा-रानी के किस्सों, रहस्य-रोमांच में उलझा हुआ था। प्रेमचंद ने साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारा। उन्होंने जीवन और कालखंड की सच्चाई को पन्ने पर उतारा। वे सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, ज़मींदारी, कर्ज़खोरी, ग़रीबी, उपनिवेशवाद पर आजीवन लिखते रहे। मुंशी प्रेमचन्द (Munshi Premchand) की ज़्यादातर रचनाएँ उनकी ही ग़रीबी और दैन्यता की कहानी कहती है।
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी सरल, सहज और आम बोल-चाल की भाषा का उपयोग किया और अपने प्रगतिशील विचारों को दृढ़ता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया। सन 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी ने कहा कि लेखक स्वभाव से प्रगतिशील होता है और जो ऐसा नहीं है वह लेखक नहीं है। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक हैं। उन्होंने हिन्दी कहानी में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद की एक नई परंपरा शुरू की।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी का निधन :
मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी अपने जीवन के अंतिम समय में बहुत ही गंभीर बीमारी से ग्रषित हो गए, बीमारी के चलते हुए 8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद्र जी देहांत हो गया। मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी उस समय ‘मंगलसूत्र’ नामक उपन्यास की रचना कर रहे थे जो की पूरा ना कर सके फिर बाद में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) जी के बेटे अमृत ने उनके इस उपन्यास को पूरा किया।