जानिये मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) की विशेषता, महत्त्व और काला अष्टमी व्रत से जुड़ी संपूर्ण जानकारी

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) क्या होती है?

प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष के अष्टमी को मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) कहते है। इसे काला अष्टमी इसलिए कहते हैं क्योंकि इस तिथि के दिन भगवान काल भैरव प्रकट हुए थे। इसे काल भैरव जयंती के रूप में भी जाना जाता है। यह तिथि भगवान् काल भैरव से असीम शक्ति व समृद्धि प्राप्त करने का समय मानी जाती है। अतः इस दिन भगवान् भैरव की पूजा-अर्चना व व्रत करने का विशेष महत्व है।

मासिक काला अष्टमी

कब है मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) की शुभ तिथि ?

काला अष्टमी हर माह कृष्ण पक्ष के अष्टमी के दिन होती है। ज्येष्ठ माह में काला अष्टमी की शुभ तिथि १३ को है।
ज्येष्ठा माह 13, 2023 काला अष्टमी
अष्टमी तिथि प्रारम्भ: 12 मई 2023 सुबह 9:7 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त : 13 मई ,2023 सुबह 6 बजकर 51मिनट पर

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) व्रत व पूजा का महत्व

ऐसी मान्यता है की काल भैरव भगवान शिव शंकर के क्रोध से उत्पन्न हुए है। भगवान शंकर का यह अवतार महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता है । भगवान काल भैरव की पूजा व्रत करने से भय, पाप, कष्ट, बाधा, नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं। अकाल मृत्यु का कोप समाप्त हो जाता है।

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) पूजा विधि

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) के दिन सुबह ब्रम्हा मुहूर्त में स्नान आदि करके भगवान शिव के मंदिर जाके भगवान शिव और पार्वती जी की आस्था के साथ पूजा प्रार्थना करनी चाहिए। यदि आप किसी कारण वश मंदिर नहीं जा पाते है तो घर पर ही काला आसन बिछाकर उस पर भगवान शिव और पार्वती जी की मूर्ति स्थापित करके पूजा करनी चाहिए। साथ में यदि भगवान गणेश जी की मूर्ति भी स्थापित कर दें तो भगवान काल भैरव और भी प्रसन्न हो जाते है।

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) पूजा का लाभ

ऐसी मान्यता है की मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) के दिन भगवान काल भैरव की यथा शक्ति पूजा आराधना करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। पाप, कष्ट आदि दूर हो जाते है। कहा जाता है की इस तिथि के दिन पूजन से शत्रुओं का भय समाप्त हो जाता है व शत्रुओ का विनाश हो जाता है। शत्रुओ से शत्रुता भी समाप्त हो जाती है।

बनारस में काल भैरव और मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) का महत्व

ऐसा कहा जाता है की काशी में भगवान शिव की पूजा से पहले भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है।
ये भी कहा जाता है की भगवान काल भैरव काशी के कोतवाल कहे जाते हैं। और भगवान काल भैरव को बनारस वासियो को सजा देने का भी अधिकार है। ऐसी मान्यता है की बिना भगवान काल भैरव के दर्शन के काशी धाम दर्शन अधूरा मन जाता है। चूँकि भगवान् काल भैरव का वाहन काला कुत्ता है इसलिए बनारस में काला अष्टमी तिथि पर कुत्ते को दही, दूध, मक्खन आदि खिलाना अत्यंत शुभ माना जाता है।

भगवान काल भैरव की उत्पति

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रम्हा जी के अहम का विनाश करने के लिए भगवान शिव जी को काल भैरव का रूप धारण करना पड़ा। एक बार की बात है सभी देवतागण साथ में बैठकर धरती का राज काज देख रहे थे तभी अचानक कौन सबसे सर्वोच्च है की बहस छिड़ गयी। कुछ देवता के अनुसार ब्रम्हा सर्वोच्च है तो कुछ के अनुसार भगवान विष्णु तो कुछ देवताओ और तथ्यों के अनुसार भगवान शिव ही सर्वोच्च है का बोध हो रहा था। बहस इतनी बढ़ गयी की बात ऋषियों एवं विद्वानों तक पहुंच गयी और सभी तथ्यों और प्रमाणों के बाद भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ है का ज्ञान हुआ किन्तु भगवान ब्रम्हा किसी भी हाल में पीछे नहीं हट रहे थे और क्रोध में आकर उन्होंने भगवान शिव को अपशब्द कह डाला। जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने उग्र रूप भगवान काल भैरव का रूप धारण कर लिया जिसे महाकालेश्वर अवतार कहा जाता है। और क्रोधी रूप में भगवान शिव ने काले भयानक कुत्ते पर सवार होकर ब्रम्हा जी का ५वां सर काट दिया। इसलिए भैरव अष्टकम अहंकार व क्रोध को नियंत्रण करता है। भैरव अष्टकम का जाप करने से भगवान काल भैरव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। काल भैरव की और अधिक कृपा प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन सुबह स्नान आदि करके भगवान काल भैरव की मूर्ति के सामने काल भैरव अष्टकम पाठ करना चाहिए। भगवान काल भैरव को और अधिक प्रसन्न करने के लिए नियमित रूप से अष्टकम पाठ यथावत करना चाहिए।

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) पर करे काल भैरव अष्टकम् पाठ

देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥॥

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥॥

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम्।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम्।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥॥

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥॥

भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥॥

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) पर बनारस में काल भैरव की पूजा

ऐसी मान्यता है की बनारस में सबसे पहले भगवन काल भैरव की पूजा होती है। भगवान् काल भैरव कहे जाते हैं काशी के कोतवाल। काशी में कुछ भी शुभ काम करने से पहले भगवान् काल भैरव की आज्ञा लेनी होती है।
यहाँ तक की भगवान् शिव की पूजा से पहले भगवान् काल भैरव की पूजा होती है।

क्या है काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) पूजा के चरण

कलश स्थापना ,पंचांग स्थापना ,६४ योगिनी पूजन,क्षेत्रपाल पूजन ,स्वस्ति वचन,संकल्प ,गणेश पूजन और अबगीशेक ,नवग्रह पूजन और प्रत्येक गृह मंत्र का १०८ जप ,प्रमुख देवताओं का आह्वान और आरती तथा पुष्पांजलि।

काशी के राजा बाबा विश्वनाथ और कोतवाल भगवान् काल भैरव

ऐसी मान्यता है की धार्मिक नगरी काशी के राजा बाबा विश्वनाथ को कहा और माना जाता है जबकि काशी के कोतवाल के रूप में भगवान् काल भैरव जी को जाना जाता है। ऐसी मान्यता है की बिना बाबा भैरव की मर्जी के काशी में कोई काम नहीं हो सकता काशी नगरी की पूरी देख रेख उन्ही के हाथो में है। ऐसी मान्यता है की बाबा विश्वनाथ की रक्षा के लिए भगवान काल भैरव कोतवाल का रूप धारण किये हुए है। जिसका स्पष्ट उल्लेख महाभारत और उपनिषदों में दिखाई देता है।

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) की शुभ तिथि पर अनुष्ठान

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) भगवन शिव के भक्तो के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है इस दिन के दौरान कई तरह के अनुष्ठान किये जाते हैं। इस दिन की शुरुआत उपासक सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि करके भगवान् भैरव की पूजा करते हैं। भक्तगण भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए एक विशिष्ट प्रकार की पूजा करते हैं और कृपा प्राप्त करते हैं।
भगवान् काल भैरव के भक्तगण संध्या काल में एक विशिष्ठ तरह की पूजा करते है। आमतौर पर यह माना जाता है की भगवन का शिव का यह रूप व्यभिचारी रूप है। ब्रह्मा जी से अपमान का बदला लेने के लिए शिव जी ने उनका ५वां सर काट दिया था।
मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) के दिन भोर में विशेष प्रकार की पूजा होती है। पूर्वजो के सम्मान में एक विशेष पूजा और अन्य अनुष्ठान किये जाते हैं।
इसके अलावा उपासक दिन में खाने पिने का बहुत अच्छे तरीके से परहेज करते है। कुछ उपासक रात्रि का समय भी भगवान् की चर्चा सुनकर ही व्यतीत करते हैं। इस व्रत को रखने वालो को मन की शांति, संतोष और भय आदि से मुक्ति मिलने के साथ साथ शत्रुओ के भय से भी मुक्ति मिलती है।
भगवन भैरव को समर्पित पाठ और भगवन शिव को समर्पित मंत्रों से सौभाग्य की प्राप्ति होती है
इस दिन काले कुत्तों को भोजन कराना अत्यंत लाभदायक होता है ऐसा मानना है की काला कुत्ता भगवन की सवारी है इसलिए मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) के दिन दूध दही मिठाई कुत्तों को खिलाने का प्रमुख भोजन है।

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) का महत्व

ऐसा “आदिपुराण” में उल्लखित है की मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) एक बहुत ही महत्वूर्ण त्यौहार है। इसमें भगवान काल भैरव के रूप में जाने जाने वाली भगवन शिव की अभिव्यक्ति त्यौहार के दौरान पूजा की प्राथमिक वस्तु के रूप में प्रतिष्ठित है। भगवन काल भैरव समय के देवता के रूप में जाने जाते हैं और भगवन शिव के अनुआयी पूर्ण समर्पण के साथ उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) में कैसे करे काल भैरव की पूजा

मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) के दिन भक्तगण सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करके भगवन शिव की आराधना करते हैं और एक अनूठी पूजा के दौरान उनका आशीर्वाद और सुरक्षा मांगते हैं जिस पर इनका विशिष्ट अधिकार है। लोग शाम को मंदिर जाकर अपने किये गलत कार्यों का क्षमा मांगते हैं और अपना सम्मान व्यक्त करते है।
मासिक काला अष्टमी (Masik Kala Ashtami) के दिन भगवन शिव की उग्र अवतार में उनकी पाने के लिए एक विशेष प्रकार का अनुष्ठान किया जाता है। ये काला अष्टमी उत्सव के हिस्से के रूप में किये जाते हैं।
उपासक अपने घरों में भगवन काल भैरव की मूर्ति को ला सकते हैं। वे दिन में उपवास के दौरान ऐसा करते हैं रात्रि मे जागरण या दिन में भी जागरण करते हैं। पाठ करते हैं , जाप करते हैं , शास्त्र पढ़ते हैं मंत्र उच्चारण करते हैं। कुत्तों को भी भोजन खिलाते हैं क्योंकि भगवन का वाहक कुत्ता है।
काशी और नासिक जैसे शहरों में इस दिन दान इत्यादि करने का विशेष महत्व है।

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