तर्पिताः पितरो येन सम्प्राप्य मणिकर्णिकाम्
सप्त सप्त तथा सप्त पूर्वजास्तेन तारिता:
स्कंद पुराण काशी खंड, अध्याय 34, श्लोक 33
उपरोक्त श्लोक स्कंद पुराण काशी खंड, अध्याय 34, श्लोक 33 से लिया गया है जिसका अर्थ है कि “एक भक्त जो मणिकर्णिका (Manikarnika Ghat) में जाकर पितृ तर्पण करता है, वह अपने से पहले की सात पीढ़ियों और उसके बाद की सात पीढ़ियों को अपने परिवार सहित मोक्ष देता है”।

वाराणसी के 84 मुख्य घाट हैं और दशाश्वमेध घाट यदि जन्म और जीवन से जुड़ा है तो वही परी मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) मृत्यु और मोक्ष से जुड़ा है। काशी को हमेशा से ऐसी जगह के रूप में जाना जाता है जहां मृत्यु भी उत्सव की तरह मनाई जाती है, और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग यहां मरने के लिए आते हैं |
उनके मनोकामना के इसी कड़ी में मणिकर्णिका घाट उनके जीवन के अंतिम गंतव्य का गवाह बन जाता है। वास्तव में मणिकर्णिका घाट न जाने कितने रहस्यों को अपने अंदर दबाए हुए आध्यात्म का एक विचित्र नमूना प्रस्तुत करता है।
मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) का इतिहास:
मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) वाराणसी के सबसे पुराने घाटों में से एक है और हिंदू धर्म में पवित्र शास्त्रों द्वारा इसे अन्य घाटों में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। इतिहास की बात करें तो मणिकर्णिका घाट का उल्लेख 5वीं शताब्दी के एक गुप्त अभिलेख में भी मिलता है।

ऐसा माना जाता है कि जब देवी आदि शक्ति जिन्होंने देवी सती के रूप में अवतरण लिया था, अपने पिता के अपमान की वजह से वह अग्नि में कूद गईं थीं और उस समय भगवान शिव उनके जलते शरीर को हिमालय तक ले गए। उस समय भगवान विष्णु ने भगवान शिव की दुर्दशा को देखकर अपना सुदर्शन चक्र देवी आदि शक्ति के जलते हुए शरीर पर फेंका जिससे उनके शरीर के 51 टुकड़े हो गए।
प्रत्येक स्थान जहां उनके शरीर के टुकड़े पृथ्वी पर गिरे उन्हें शक्तिपीठ घोषित किया गया था। उसी समय मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) पर माता सती की कान की बालियां गिरीं, इसलिए इसे एक शक्ति पीठ के रूप में स्थापित किया गया और इसका नाम मणिकर्णिका रखा गया क्योंकि संस्कृत में मणिकर्ण का अर्थ है कान की बाली। उसी समय से यह स्थान विशेष महत्व रखता है।
माँ विशालाक्षी देवी का शक्ति पीठ मंदिर आज तक एक जीवंत वास्तविकता है जहाँ हजारों भक्त दैनिक आधार पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार एक कथा ये भी है कि मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) का स्वामी वही चाण्डाल था, जिसने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। उसने राजा को अपना दास बना कर उस घाट पर अन्त्येष्टि करने आने वाले लोगों से कर वसूलने का काम दे दिया था। यहीं पर राजा ने अपने पुत्र की अंतिम क्रिया के लिए अपनी पत्नी से भी कर मांग कर अपनी कर्तव्य और सत्यनिष्ठा प्रमाणित की थी।
मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) का धार्मिक महत्व हिंदू वेदों और शास्त्रों के अनुसार :
जलैकामपि गायत्री सम्प्राप्य मणिकर्णिकाम् लभेदयुतगायत्री जपनस्य फलं स्फुटं
स्कंद पुराण, काशी खंड – अध्याय 61, श्लोक 69
उपरोक्त श्लोक स्कंद पुराण, काशी खंड – अध्याय 61, श्लोक 69 से लिया गया है जिसका अर्थ है “मणिकर्णिका (काशी) में एक बार गायत्री मंत्र का जाप करने से गायत्री मंत्र का 10,000 बार जाप करने का पुण्य लाभ मिलेगा।
हिंदुओं के लिए इस घाट को अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। बताया जाता है कि मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) को भगवान शिव ने अनंत शांति का वरदान दिया है। इस घाट पर पहुंचकर ही जीवन की असलियत के बारे में पता चलता है। इस घाट की विशेषता है कि यहां चिता की आग कभी शांत नहीं होती है, यानी यहां हर समय किसी ना किसी का शवदाह हो रहा होता है। हर रोज यहां 200 से 300 शव का अंतिम संस्कार किया जाता है।

मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) वह स्थान है जहां होती है मोक्ष की प्राप्ति : कहा जाता है कि भगवान शिव ने मणिकर्णिका घाट को अनंत शांति का वरदान दिया है। लोगों का यह भी मानना है कि यहां हजारों साल तक भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना की थी और ये प्रार्थना की थी कि सृष्टि के विनाश के समय भी काशी (जिसे पहले वाराणसी कहा जाता था) को नष्ट न किया जाए।
श्री विष्णु की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ काशी आए और उन्होंने भगवान विष्णु की मनोकामना पूरी की। तभी से यह मान्यता है कि वाराणसी में अंतिम संस्कार करने से मोक्ष (अर्थात व्यक्ति को जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है) की प्राप्ति होती है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदुओं में मणिकर्णिका घाटो अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र माना जाता है।
शिव महापुराण के एक लोकप्रिय श्लोक के अनुसार :
“न विश्वेश्वर समो लिंगम्, न काशी सदृशी पुरी
न मणिकर्णिका सँमो तीर्थम्, नास्ति ब्रह्माण्ड गोलके” ॥
शिव महापुराण
मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) के संदर्भ में उपरोक्त श्लोक का अर्थ बहुत महत्वपूर्ण है, मणिकर्णिका घाट के समान पवित्र स्थान और कोई नहीं है, यहां तक कि चार धाम यात्रा भी नहीं है। अर्थात पूरे ब्रह्मांड में मणिकर्णिका घाट जैसा कोई स्थान नहीं है | यही वजह है कि ज्यादातर आस्थावान लोग इस घाट को स्वर्ग का द्वार मानते हैं।

मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) की एक और मान्यता यह है कि भगवान शंकरजी द्वारा माता सती के पार्थिव शरीर का अग्नि संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया गया था जिस कारण से इसे महाश्मशान भी कहते हैं। मोक्ष की चाह रखने वाला इंसान जीवन के अंतिम पड़ाव में यहां आने की कामना करता है।
ऐसा माना जाता है कि इस घाट पर भगवान शिव स्वयं दिवंगत आत्माओं के कानों में तारक मंत्र की कामना करते हैं और इस प्रकार उन्हें जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति देते हैं।
मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) के कुएं का रहस्य :
मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) पर एक कुआं है, जिसे मणिकर्णिका कुंड के नाम से जाना जाता है। इसे भगवान विष्णु ने बनवाया था। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव पार्वती के साथ विष्णु के सामने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए एक बार वाराणसी आए थे। विष्णु ने दंपत्ति के स्नान के लिए गंगा तट पर एक कुआं खोदा। जब भगवान शिव स्नान कर रहे थे, तो उनके कान की बाली से एक मणि कुएं में गिर गयी, इसलिए इस स्थान के लिए मणिकर्णिका नाम चुना गया (मणि यानि कुंडल और कर्णम मतलब कान) |
इस घाट पे मौजुद कुंआ से संबंधित एक और बात प्रचलित है कि भगवान शिव के कान का मणि उस समय नीचे गिर गया, जब वह उग्र रूप में तांडव कर रहे थे और उसी से इस घाट का निर्माण हुआ।

मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) का स्थान कहा है और यहाँ कैसे पहुँचे ?
मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) शहर के मध्य में स्थित है, जो असामान्य है क्योंकि अधिकांश शहरों में श्मशान घाट शहर के बाहरी इलाके में स्थित होते हैं। मणिकर्णिका घाट पवित्र शहर काशी की सबसे उत्तरी सीमा है, यह ललिता घाट के निकट स्थित है जो काशी विश्वनाथ गलियारे में प्रवेश कराता है |

- रेलवे स्टेशन से: मणिकर्णिका घाट कैंट रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर की दूरी पर है जहा से आप मणिकर्णिका घाट ऑटो रिक्शा, ई-रिक्शा, कैब सर्विस से बड़े ही आसानी से 15-20 मिनट में पहुंच सकते है लेकिन सस्ता सुर सुगम साधन ऑटो रिक्शा ही है वाराणसी शहर के लगभग हर हिस्से से आपको मणिकर्णिका घाट के लिए बड़ी ही आसानी से ऑटो रिक्शा मिल सकता है

- एयरपोर्ट से: यदि आप हवाई यात्रा के दवारा वाराणसी में प्रवेश कर रहे है तो आप को यह पता होना बेहद ज़रूरी है कि वाराणसी का लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जोकि बाबतपुर में है यह हवाई अड्डा वाराणसी के मुख्य स्थानो से लगभग 30 – 35 किलोमीटर की दूरी पर है वही बात की गए मणिकर्णिका घाट की तो वाराणसी हवाई अड्डा मणिकर्णिका घाट से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है यहाँ से मणिकर्णिका घाट पहुंचने के लिए आप वाराणसी सिटी बस का सहारा ले सकते है और प्राइवेट कैब सर्विस और ऑटो सर्विस भी यहाँ से आप ले सकते है मणिकर्णिका घाट पहुंचने के लिए

- बस स्टेशन से: आपको जानकार खुशी होगी कि वाराणसी का बस स्टेशन और वाराणसी का मुख्य रेलवे स्टेशन (कैंट रेलवे स्टेशन) दोनों अगल बगल ही है और आप यहाँ से ऑटो रिक्शा, इ-रिक्शा, प्राइवेट कैब और वाराणसी सिटी बस की मदद से मणिकर्णिका घाट बड़े ही आसानी से पहुंच सकते है

- नाव के माध्यम से: यदि आप वाराणसी की किसी अन्य घाट से मणिकर्णिका घाट आना चाहते है तो सबसे अच्छा साधन नाव ही है अपनी नाव यात्रा के दौरान आप वाराणसी के अन्य घाटों की सुंदरता भी देख सकते है
कौन सी चीजें हैं जो मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) को अन्य श्मशान घाटों से अलग करती हैं :

मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) की एक और हैरान कर देने वाली बात ये है कि यहां पर साल में एक दिन ऐसा भी होता है जब नगर बधु पैर में घुंघरू बांधकर यहां नृत्य करती हैं, ये कार्यक्रम चैत्र नवरात्र की सप्तमी की रात में होता है।
महाश्मशान पर अनूठी साधना की परंपरा श्मशान नाथ महोत्सव का हिस्सा है। मौत के मातम के बीच वे नाचती-गाती हैं। और नाचते हुए वे ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि उनको अगले जन्म में ऐसा जीवन ना मिले। ये परंपरा अकबर काल में आमेर के राजा सवाई मान सिंह के समय से शुरू होकर अब तक चली आ रही है। मान सिंह ने ही 1585 में मणिकर्णिका घाट पर मंदिर का निर्माण करवाया था।
रंगभरी एकादशी अवसर पर, जो होली से कुछ दिन पहले आती है, यह काशी शहर में एक विशेष त्योहार की तरह मान्या जाता है, जो वाराणसी शहर में होली के त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है।
इस दिन काशी के अघोरी साधु शवों की राख से होली खेलते हैं और इसी दिन काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का भी शमशान के राख के साथ श्रृंगार किया जाता है |
मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) के आस-पास के प्रसिद्ध स्थान
- काशी विश्वनाथ मंदिर: 750 मीटर दूरी पर स्थित है
- विशालाक्षी शक्तिपीठ मंदिर: 1.2 किलोमीटर दूरी पर स्थित है
- दशाश्वमेध घाट: 1.2 किलोमीटर दूरी पर स्थित है )
- काल भैरव मंदिर: 1.1 किलोमीटर दूरी पर स्थित है
- ललिता घाट: 1.4 किलोमीटर दूरी पर स्थित है