महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) का पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। वैसे तो हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शिवरात्रि (Mahashivaratri)आती है, लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) कहा जाता है।
माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।

साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है| कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में ‘हेराथ’ या ‘हेरथ’ भी कहा जाता हैं।
महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) व्रत कथा :
इस दिन शिव का विवाह हुआ था, इसलिए रात्रि में भगवान शिव की बारात निकाली जाती है। पौराणिक कथा के मुताबिक माता पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।

गरुड़ पुराण के मुताबिक इस दिन एक निषाद अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया, लेकिन उसे कोई शिकार नहीं मिला। इसके बाद वह भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया। वहां बेल वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जिसमें से कुछ शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ करने के लिए उसने तालाब का पानी छिड़का, जिसकी कुछ बूंदें शिवलिंग पर भी जा गिरीं। इस क्रम में उसका एक तीर नीचे गिर गया, जिसे उठाने के लिए वह झुका, वहां सामने ही शिव लिंग था।
इस तरह शिवरात्रि (Mahashivaratri) के दिन अनजाने में ही उसने शिव-पूजन की प्रक्रिया पूरी कर ली। उसकी मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया।

महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) की दूसरी कथा का प्रचलन दक्षिण भारत में है :
ऐसा माना जाता है की इस ब्रह्माण्ड में अनेकों पृथ्वी हैं, और हर पृथ्वी में एक ब्रह्मा एक शिव और एक विष्णु हैं। ऐसा माना जाता है की इन सभी ब्रह्मा, विष्णु और ब्रह्मा के परे एक महा विष्णु, महा ब्रह्मा और सदा शिव हैं, जैसे जैसे पृथ्वी का अंत होता है, उनके ब्रह्मा, विष्णु और शिव महा विष्णु, महाब्रह्मा और सदा शिव में लीन हो जाते हैं।
ऐसा कहा जाता है एक बार ब्रह्मा और विष्णु में द्वन्द हुआ कि दोनों में से कौन महान है? अभी दोनों अपनी बातों में लीन ही थे कि अचानक एक बड़ा सा स्तम्भ दोनों के बीच में आ गया। दोनों ने अपनी महानता को सिद्ध करने के लिए उस स्तम्भ का आदि और अंत देखने का विचार किया,
परन्तु दोनों में से कोई भी न ही उस स्तम्भ का आदि ढूंढ पाया ना अंत। कहते हैं इसी दिन से महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) मनाई जाती है।

कब मनयी जाएगी 2023 वर्ष में महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) ?
महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है, जो फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। वर्ष 2023 में महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) का पर्व 18 फ़रवरी को मनाया जाएगा।
इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव, तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं, इसीलिए इसे महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) अथवा कालरात्रि कहा गया है। इस दिन शिव पूजन से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।

भगवान शिव चतुर्दशी तिथि के स्वामी हैं। ऐसे में ज्योतिष शास्त्रों में इसे शुभफलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने आती है, लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) कहा गया है।
इस समय तक सूर्यदेव भी उत्तरायण हो जाते हैं और ऋतु परिवर्तन भी होता है। ऐसे में इस शुभ समय में महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) पर शिव पूजन से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमजोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण कर रखा है। ऐसे में शिव पूजन से व्यक्ति का चंद्र मजबूत होता है।

कब करना चाहिए महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) व्रत ?
चतुर्दशी के पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) मनाया जाता है। रात्रि का आठवां मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो और रात का आठवां मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि मनानी चाहिए।
चतुर्दशी दूसरे दिन निशिथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशिथ में व्याप्त रहे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) का आयोजन किया जाता है।

उपर्युक्त दो स्थितियों को छोड़कर हर स्थिति में व्रत अगले दिन किया जाता है।
महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) पर्व तिथि और मुहूर्त 2023
18 फ़रवरी 2023
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ | 18 फरवरी, 2023 को 08:02 PM बजे। |
चतुर्दशी तिथि समाप्त | 18 फरवरी, 2023 को 04:18 PM बजे। |
निशिथ काल पूजा | 12:09 AM से 1 AM फरवरी 19 |
19 फरवरी को, शिवरात्रि पारण समय | 06:56 AM से 03:24 PM |
महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) पर रात्रि जागरण का क्या है महत्व?
शिवरात्रि शब्द का अगर शाब्दिक अर्थ भी देखे तो इसका मतलब होता है शिव की रात्रि | ये महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) वर्ष में केवल एक बार आती है और आध्यात्मिक ऊर्जा और मानसिक ऊर्जा देने के लिए सबसे अनुकूल होती है |
इस दिन रात्रि भजन संध्या, शिव तांडव स्तोत्र पाठ और रुद्र सूतक मंत्र के साथ हवन को सबसे शुभ और शक्तिशाली माना जाता है। ये रात्री काल का समय शिव तथा देवी साधना के लिए सबसे अनुकूल होता है |

किस स्थान पर महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) का है सबसे ज्यादा महत्व? कौन से उपाय करने चाहिए इस दिन?
12 ज्योतिर्लिंग में सबसे महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग काशी में है महाशिवरात्रि का सबसे ज्यादा महत्व कैलाश पर्वत से उतर के भगवान शिव माँ पार्वती के साथ काशी पधारे थे, जहां उन्होंने अपने गृहस्थ जीवन का एक लंबा समय बिताया |
भगवान शिव कहते हैं कि वो काशी में वास करते हैं ऐसा नहीं है, बल्कि काशी ही स्वयं उनके हृदय के अंदर वास करती है |महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) पे काशी में रुद्राभिषेक, जलाअभिषेक, बिल्व अर्चन, कमल अर्चना, और महा मृत्युंजय जाप करने का अधिक महत्व है और बहुत ही शुभ माना जाता है |

भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों की पूजा करना महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) पर क्यों माना जाता है अति शुभ ?
माना जाता है भगवन शिव से 64 ज्योतिर्लिंग उत्पन्न हुए थे, जिनमें से 12 का ही प्रमाण मिलता है| बारह ज्योतिर्लिंग जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है “स्वयं उत्पन्न”। बारह स्थानों पर बारह ज्योर्तिलिंग स्थापित हैं।

- सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है।
- श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।
- महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
- ॐकारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देने यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
- नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
- बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
- भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
- त्र्यंम्बकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
- घुमेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग।
- केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है।
- काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
- रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।