महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) जो भगवान शिव की नगरी काशी में स्थित है, काशी भगवान् शिव की नगरी कही जाती है यहाँ भक्त अपनी मुरदो को पूरा करने की उम्मीद में आया करते है और अपने प्रिय प्रभु भगवान शिव को अपनी आस्था समर्पित करते है। काशी में भगवान शिव के साथ साथ और भी अनेको मंदिर है जहा भक्तो की मनोकामनाएं पूरी होती है उन्ही मंदिरो में से एक है महालक्ष्मी माता मंदिर (Mahalaxmi Temple)।
देवी भागवत के अनुसार कहा जाता है कि संसार को उत्पन्न करने वाली शक्ति माता महालक्ष्मी है (Mahalaxmi Temple), माता सरस्वती, माता लक्ष्मी और माता काली यह सभी इन्हीं के स्वरूप से उत्पन्न हुई हैं। कहते है काशी में आकर जो भी व्यक्ति महालक्ष्मी कि पूजा सच्चे मन से करता है उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है और उन पर माता महालक्ष्मी कि असीम अनुकम्पा होती है।

पुत्र प्राप्ति के लिए महिलाये करती है महालक्ष्मी माता (Mahalaxmi Temple) का व्रत
काशी के इस माता महालक्ष्मी मदिर (Mahalaxmi Temple) में सभी कि मनोकामनाएं पूरी होती है महिलाये व्रत करके माता से पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगती है तो उनकी यह इच्छा माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) की कृपा से जरूर पूरी होती है। कहते है माता पार्वती ने भी इस मंदिर में पूजा कर माता से पुत्र प्राप्ति का वरदान का वरदान मांगा था। शुक्ल पच्छ अस्टमी के दिन इस व्रत की शुरुवात होती है
काशी के इस माता महालक्ष्मी के मंदिर (Mahalaxmi Temple) कि खास मान्यता यह भी है कि भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक जो भी व्यक्ति सच्ची भक्ति से माता का पूजन करता है उसकी मनोकामना माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) पूरी करती है, इसी कारण श्राद्घ के दिनों में यहां काफी संख्या में श्रद्घालु आया करते है।

महालक्ष्मी माता मंदिर (Mahalaxmi Temple) में सोरैया मेले का है खास महत्व
काशी के इस महालक्ष्मी माता मंदिर (Mahalaxmi Temple) में सोरैया मेले का खाश महत्व होता है महालक्ष्मी के पूजन और व्रत का नाम सोरहिया पड़ा क्योंकि यहां 16 अंक का विशेष महत्व है। यहाँ महिलाये 16 दिन तक निरंतर व्रत कर के पूजा पाठ करती है। कहते है माता लक्ष्मी स्वाम यहाँ भगवान् शिव कि तपस्या कर के 16 दिनों तक व्रत किया था और इसी कारण सोरैया मेले का भी आयोजन किया जाता है |
कहते है सोरैया बाबा नमक एक बाबा यहाँ निवास करते थे जिनके नाम पर यहाँ इस मेले का आयोजन किया जाने लगा हलाकि कहा यह भी जाता है कि 16 दिन तक लगातार चलने के कारण इस मेले का नाम सोरैया मेला पड़ा।

कैसे हुआ काशी में माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) का आगमन
स्कन्द पुराण के अनुसार माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) भगवान शिव कि तपस्या करने के लिए इस स्थान पर आयी थी।
कहते है जब माता सती ने अपने प्राण त्याग दिए थे तब भगवान शिव भी कैलाश छोड़कर काशी में निवास करने के लिए आ गए थे। भगवान् शिव के काशी में आ जाने के कारण सभी देवी देवता काशी में भगवान् शिव के दर्शन और मिलाप के लिए काशी में आया करते थे, यह सब देख कर माता लक्ष्मी जी कि भी काशी को देखने कि इच्छा हुई। जब माता लक्ष्मी काशी आयी तो वे यहाँ पर सभी देवी देवताओ और भगवान शिव के साथ काशी कि महिमा को देखकर मंत्रमुग्ध हो गयी और यही पर भगवान् कि तपस्या करने लगी।

क्यों है नवरात्री में महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) का खाश महत्व
महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) काशी के अनेको खाश मंदिरो में से एक है परन्तु नवरात्री के दिनों में माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) का महत्व और भी बढ़ जाता है। नवरात्री के नवो दिन इस महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) में खाश अनुष्ठान होता है।
वासंतिक नवरात्र की नवमी तिथि पर महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) गौरी का दर्शन पूजन कर भक्त देवी से समृद्धि की कामना करते है और इसी समय कन्या पूजन कर गौरी की विदाई भी की जाती है
नौ गौरी दर्शन के क्रम में अंतिम दिन लक्ष्मीकुंड स्थित महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) में दर्शन पूजन के लिए भक्तों का हुजूम उमड़ता है , नवरात्री का अंतिम दिन होने के कारण माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) में अधिक भीड़ होती है शास्त्रों में कहा गया है कि किसी भी नवमी तिथि पर देवी के दर्शन का फल कई गुना बढ़ जाता है। इस कारण से नवरात्री के दिनों में महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) का खाश महत्व होता है।

क्यों है महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) में धागा बांधने का खास महत्व
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) में महिलाये सोलह गांठ का धागा बांधती है, प्राचीन काल में महिलाये ये सोलह गांठ का धागा अपने आप बनाते थी परन्तु आज के समय में काशी के महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) के पास आपको ये धागा और प्रसाद दुकानों पर भी मिल जाता है। सोलह गांठ का धागा बांधने का अर्थ एक प्रकार का संकल्प होता है माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) में सोलह दिन तक पूजा और व्रत करने का।
महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) में सभी चीजे सोलह गांठ के धागे के साथ साथ बाकि सभी चीजे जैसे सोलह चावल, सोलह दूर्वा, सोलह दीपक, सोलह बेलपत्र, सोलह प्रकार के अन्न और सोलह प्रकार के फल और फूल भी अर्पित किये जाते है। महिलाये लगातार सोलह दिन तक व्रत रखती है और आखिरी दिन निराजल व्रत रखकर पुत्र प्राप्ति, और संतान के सुख समृद्धि का व्रत रखती है।

क्यों है महालक्ष्मी माता मंदिर (Mahalaxmi Temple) में अनेको मूर्तियां
माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) में महालक्ष्मी के अलावा मयूरी माता और काली माता की प्रतिमा भी स्थापित है भक्त माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) के साथ माँ काली और माता मयूरी के भी दर्शन करते है। माता मयूरी को महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) की अदिसार्त्री देवी मानी जाती है। कहते है भगवान शिव ने अगस्त मुनि को आदेश दिया था की वे तीनो देवियो की प्रतिमा को एक साथ स्थापित करे , भगवान् शिव की प्रेरणा से अगस्त मुनि ने यहाँ तीनो देवियो की प्रतिमा एक साथ स्थापित किया।
इसके साथ माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) में संतोषी माता, जीवत्पुत्रिका माता, संकठा माता, शीतला माता और भैरव नाथ बाबा स्थापित है।

कौड़िया देवी के रूप में भी प्रसिद्ध है माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple)
वाराणसी यानि काशी में माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) कौड़िया देवी के रूप में विराजमान हैं। काशी के खोजवा मोहल्ले में माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) के इस मंदिर में कौड़िया चढ़ाने से व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है।
माना जाता है की इस मंदिर का इतिहास 13 हजार साल पुराना है। ऐसी मान्यता है की दक्षिण भारत से माता कौड़िया देवी बाबा विस्वनाथ के दर्शन के लिए आयी थी। कहते है की छुदरों की बस्ती में भ्रमण के दौरान छुदरों के स्पर्श की वजह से माता कौड़िया ने भोजन त्याग दिया था, उसी समय माता अन्नपूर्णा ने माता कौड़िया को दर्शन दिया और उन्हें कौड़ी देवी के रूप में माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) में विराजमान कर दिया कहते है माता अन्नपूर्णा ने उन्हें यह भी वरदान दिया की आज से तुम माता कौड़िया के रूप में पूजी जाओगी, और तुम्हारी पूजा करने वाले व्यक्ति को कभी भी धन की कमी नहीं होगी।

तभी से इस मंदिर में प्रशाद के रूप ने पांच कौड़िया दान करके पूजा करने का खास महत्व है , जो भी व्यक्ति पांच कौड़ी चढ़ा कर माता की पूजा करता है उसे धन की कमी कभी नहीं होती है। कहते है की घर में कितनी भी गरीबी और दरिद्रता हो माता के इस मंदिर में आकर कौड़िया चढाने से उसकी गरीबी दूर हो जाती है।
माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) का पूजन एवं उत्सव
भक्ति दायिनी काशी की महिमा केवल मोक्ष की दृष्टि से ही नहीं अपितु जल तीर्थो के कारण भी है। इसका एक नाम अष्ट कूप व नौ बावलियाँ वाला नगर भी है। काशी के जल तीर्थ भी गंगा के समान ही पूज्य हैं। भाद्र मास में लक्ष्मी कुण्ड का मेला सोरहिया मेला के नाम जाना जाता है। सोलह दिनों तक चलने वाले मेले के आखिरी दिन महिलायें जीवित्पुत्रिका का व्रत रखती हैं और इसी कुण्ड पर अपने निर्जला व्रत को तोड़ती हैं। इस दृष्टि से यह कुण्ड अत्यन्त पवित्र रूप से पूजित है। जीवित्पुत्रिका व्रत पर लक्ष्मी कुण्ड के पूजन-अर्चन की प्रथा अति प्राचीन काल से चली आ रही है।

माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) पूजा और श्रृंगार
माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) की इस पूजा की शुरुवात माता पारवती ने किया था। यह पर्व भादो अष्टमी से शुरू होकर कुवार अष्टमी तक मनाया जाता है, 16 दिनों तक चलने वाला सोरहिया मेले में महालक्ष्मी की आराधना की जाती है 16 दिनों तक कमल के फूल से पूजन व अर्चन होता है मौर माता का सोलह श्रृंगार भी चढ़ाया जाता है। व्रत के दिन सुबह माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) का दर्शन मयूरी माता का दर्शन मां काली का दर्शन सतनारायण भगवान का दर्शन के बाद मां की मिट्टी की प्रतिमा को लेकर घाट पर कथा सुना जाता है।
कहा जाता है कि सोरहिया में माता लक्ष्मी का पूजन करने से घर में सुख, शांति, आरोग्य, ऐश्वर्य एवं स्थिर लक्ष्मी का वास होता है

माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) के व्रत की कहानी
माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) के व्रत में पूजा के दौरान माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) की 16 बार परिक्रमा की जाती है , पूजा में 16 प्रकार के फल,फूल,मेवे,मिस्ठान,और श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, आभूषण आदि चढाने का विधान है। साथ ही इस मंदिर में अन्नदान भी किया जाता है।
माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) के इस व्रत में माता के मिट्टी के मूर्ति की सोलह दिनों तक पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओ के अनुसार प्राचीन लक्ष्मी कुंड की स्थापना अगस्त ऋषि ने की थी ।
माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) के इस व्रत से जुडी मान्यता यह है की उस समय के महाराज की कोई संतान नहीं थी , महाराज ने माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) का ध्यान किया तो माता ने उनको दर्शन देकर सोलह दिनों तक व्रत रखने और अनुष्ठान करने को कहा। महाराज ने माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) के निर्देशानुसार ठीक उसी प्रकार सोलह दिनों तक व्रत और पूजा किया तो उनको संतान की प्राप्ति हुई और तभी से इस परंपरा का नाम सोरहिया पड़ा।

लक्ष्मी कुंड का पौराणिक महत्व
कहा जाता है की भगवान शंकर ने काशी में 64 योगिनियों को भेजा, चौसट्टी योगिनी चौसट्टी घाट पर माता चौसट्टी के मंदिर के रूप में स्थापित है। जबकि शिव द्वारा भेजी गई मयूरी योगिनी लक्ष्मी कुण्ड पहुंची। लक्ष्मी कुण्ड के निकट स्थित राम कुण्ड व सीता कुण्ड का भी प्राचीन काल में पौराणिक रहा है। धीरे धीरे बदलती परिस्थितियों के कारण मयूरी योगिनी द्वारा अस्तित्व में आयी राम कुण्ड व सीता कुण्ड, जानकी कुण्ड का लोप हो गया। लेकिन सोरहिया मेला के कारण लक्ष्मी कुण्ड का स्वरूप ज्यों का त्यों सुरक्षित है।

महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) कैसे पहुंचे
माता महालक्ष्मी (Mahalaxmi Temple) मंदिर पहुंचने के लिए अनेको माध्यम है।
रेलवे माध्यम से

यदि आप रेल माध्यम से वाराणसी की यात्रा पर आ रहे है तो वाराणसी रेलवे स्टेशन से आप महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) के लये बस का सहारा ले सकते है , यदि आप चाहे तो रेलेव स्टेशन से आप कैब या ऑटो बुक करके भी आप महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) तक पहुंच सकते है। वाराणसी रेलवे स्टेशन से माता माता महालक्ष्मी मंदिर की दूरी लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर है , लगभग 20 से 25 मिनट में आप वाराणसी रेलवे स्टेशन से माता माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) तक पहुंच सकते है।
हवाई यात्रा के माध्यम से

यदि आप हवाई यात्रा के माध्यम से वाराणसी की यात्रा पर आ रहे है तो लाल बहादुर शास्त्री अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से आप महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) के लिए बस का सहारा ले सकते है ,इसके अलावा लाल बहादुर शास्त्री अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से आप कैब या ऑटो बुक करके भी आप महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) तक पहुंच सकते है। लाल बहादुर शास्त्री अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) की दूरी लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है,लगभग 1 घंटे में आप वाराणसी रेलवे स्टेशन से माता महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) तक पहुंच सकते है।