खरमास (Kharmas) के महीने की शुरुआत होने जा रही है। खरमास (Kharmas) लगते ही सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्यों में कुछ समय के लिए पाबंदी लग जाती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं तो उस समय से लेकर मकर राशि में प्रवेश करने तक खरमास लग जाता है। खरमास (Kharmas) को शुभ नहीं माना जाता है। इस बार खरमास 14 जनवरी तक रहेगा, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे तब जाकर खरमास (Kharmas) खत्म होगा।

क्यो कहते हैं इस माह को खरमास (Kharmas)?
खरमास (Kharmas) को खर मास कहने के पीछे भी पौराणिक कथा है। खर का तात्पर्य गधे से है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सूर्य अपने सात घोड़ों यानी रश्मियों के सहारे इस सृष्टि की यात्रा करते हैं। परिक्रमा के दौरान सूर्य को एक क्षण भी रुकने और धीमा होने का अधिकार नहीं है, लेकिन अनवरत यात्रा के कारण सूर्य के सातों घोडे़ हेमंत ऋतु में थककर एक तालाब के निकट रुक जाते हैं, ताकि पानी पी सकें। सूर्य को अपना दायित्व बोध याद आ जाता है कि वह रुक नहीं सकते, चाहे घोड़ा थककर भले ही रुक जाए।
यात्रा को अनवरत जारी रखने के लिए तथा सृष्टि पर संकट नहीं आए, इसलिए भगवान भास्कर तालाब के समीप खड़े दो गधों को रथ में जोतकर यात्रा को जारी रखते हैं। गधे अपनी मंद गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे, इस कारण सूर्य का तेज बहुत कमजोर हो धरती पर प्रकट होता है।

मकर संक्रांति के दिन पुन: सूर्यदेव अपने घोड़ों को रथ में जोतते हैं, तब उनकी यात्रा पुन: रफ्तार पकड़ लेती है। इसके बाद धरती पर सूर्य का तेजोमय प्रकाश बढ़ने लगता है। ऋषियों ने खरमास (Kharmas) या मलमास इसलिए नाम दिया, ताकि सांसारिक कामों से मुक्त होकर पूरे महीने लोग आध्यात्मिक लाभ के लिए कर्म करें। इस माह में आध्यात्मिक साधना करके चंचल मन पर काबू किया जा सकता है।
खरमास (Kharmas) में प्राकृतिक ऊर्जा से इंद्रिय निग्रह में सहयोग मिलता है। चित सांसारिक वैराग्य की ओर सहज ही उन्मुख हो उठता है। इसी कारण पौष माह में कल्पवास का विधान किया गया है। कल्पवास का अर्थ है कि संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययन और ध्यान तथा साधना करना।

हिंदू धर्म में क्यों है खरमास (Kharmas)का इतना महत्व ?
सूर्य के धनु या मीन राशि में गोचर करने की अवधि को ही खरमास कहते हैं। सूर्यदेव जब भी देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु या मीन पर भ्रमण करते हैं तो उसे प्राणी मात्र के लिए अच्छा नहीं माना जाता और शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं। गुरु सूर्यदेव का गुरु हैं, ऐसे में सूर्यदेव एक महीने तक अपने गुरु की सेवा करते हैं।
खरमास (Kharmas) में खर का अर्थ ‘दुष्ट’ होता है और मास का अर्थ महीना होता है, इसे आप ‘दुष्टमास’ भी कह सकते हैं। इस मास में सूर्य बिलकुल ही क्षीण होकर तेज हीन हो जाते हैं। मार्गशीर्ष और पौष का संधिकाल खरमास (Kharmas) को जन्म देता है, मार्गशीर्ष माह का दूसरा नाम ‘अर्कग्रहण’ भी है जो कालान्तर में अपभ्रंश होकर अर्गहण हो गया।

अर्कग्रहण एवं पौष के मध्य ही यह खरमास (Kharmas) पड़ता है। इन महीनो में सूर्य की किरणें कमज़ोर हो जाती हैं इनके धनु राशि में प्रवेश के साथ ही राशि स्वामी गुरु का तेज भी प्रभावहीन रहता है और उनके स्वभाव में उग्रता आ जाती है।
कब से कब तक है खरमास (Kharmas)2022 में ?
हिन्दू पंचांग के मुताबिक खरमास (Kharmas) 16 दिसंबर से 14 जनवरी 2022 तक रहेगा। मकर संक्रान्ति का त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। मकर संक्रान्ति के दिन से शुभ कार्यों का शुभारंभ हो जाएगा।

खरमास (Kharmas)पर क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य ?
गुरु के स्वभाव को भी उग्र कर देने वाले इस माह को खरमास (Kharmas), दुष्टमास नाम से जाना जाता है। देवगुरु बृहस्पति के उग्र अस्थिर स्वभाव एवं सूर्य की धनु राशि की यात्रा और पौष मास के संयोग से बनने वाले इस मास के मध्य शादी-विवाह, गृह आरंभ, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण आदि मांगलिक कार्य शास्त्रानुसार निषेध कहे गए हैं।
इन दिनों सूर्य के रथ के साथ अंशु तथा भग नाम के दो आदित्य, कश्यप और क्रतु नाम के दो ऋषि, महापद्म और कर्कोटक नाम के दो नाग, चित्रांगद तथा अरणायु नामक दो गन्धर्व सहा तथा सहस्या नाम की दो अप्सराएं, तार्क्ष्य एवं अरिष्टनेमि नामक दो यक्ष आप तथा वात नामक दो राक्षस चलते हैं।

खरमास (Kharmas)में करें ये काम :-
खरमास (Kharmas) में सूर्य का गुरु राशि में गोचर होने की वजह से ये समय पूजा-पाठ और मंत्र जाप के लिए बेहद उपयोगी माना जाता है। इस समय अनुष्ठान से जुड़े कर्म को साथ पितरों से संबंधित श्राद्ध कार्य करना भी अनुकूल माना गया है। खरमास (Kharmas) में जलदान का भी बहुत महत्व माना जाता है। इस समय ब्रह्म मूहूर्त के समय किए गए स्नान को शरीर के लिए बहुत उपयोगी माना गया है।

क्या नहीं करना चाहिए खरमास (Kharmas)में ?
हिंदू शास्त्रों के अनुसार मलमास या खरमास (Kharmas) में सभी तरह के शुभ कार्य जैसे शादी, सगाई, गृह प्रवेश, नए गृह का निर्माण आदि वर्जित होते हैं। इस दौरान सूर्य गुरु की राशियों में रहता है, जिसके कारण गुरु का प्रभाव कम हो जाता है। जबकि शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए गुरु का प्रबल होना बहुत आवश्यक होता है। गुरु जीवन के वैवाहिक सुख और संतान देने वाला होता है।