काल भैरव को प्रसन्न करने के लिये काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja)

काल भैरव (Kaal Bhairav) शब्द का अर्थ ही होता है भरण-पोषण करने वाला, जो भरण शब्द से बना है। काल भैरव की चर्चा रुद्रयामल तंत्र और जैन आगमों में भी विस्तारपूर्वक की गई है।

काल भैरव (Kaal Bhairav) अपनी जटा में गंगा धारण करते है, तीन आंखें है उनकी, तीन गुणों से काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja) की जाती है, हाथ में त्रिशूल धारन करते है, सांप को अपने यज्ञोपवीत के रूप में पहनते है | बाबा काल भैरव साक्षात भगवान शिव के ही अवतार है |

शास्त्रों के अनुसार कलियुग में काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja) शीघ्र फल देने वाली होती है। उनके दर्शन मात्र से शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों का भी कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। काल भैरव की सात्त्विक, राजसिक और तामसी तीनों विधियों में उपासना की जाती है।

मोक्ष दयानी काशी से क्या है बाबा काल भैरव (Kaal Bhairav) का संबंध?

वाराणस्यां भैरवः देव संसार भयं नासंनम!
जनम जन्मस्यः कृताम्पाप दर्शनेन विनश्यति!

काशी बाबा विश्वनाथ की नगरी है, लेकिन यहां बाबा काल भैरव को कोतवाल कहा जाता है। काशी खंड के अनुसार बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को काल भैरव के दर्शन करना जरुरी होता है, अन्यता काशी यात्रा को अधूरा माना जाता है |

भगवान शंकर की नगरी कही जानेवाली काशी को लेकर धार्मिक मान्यता है कि इस शहर के राजा बाबा विश्‍वनाथ हैं। वहीं काशी के कोतवाल काल भैरव को कहा जाता है। मान्यता है कि इस शहर में भैरव बाबा की मर्जी के बिना कुछ भी नहीं होता है और पूरी नगरी की देख रेख उन्ही के हाथों में है।

इसलिए कहते है काल भैरव (Kaal Bhairav) को काशी कोतवाल

कथाओं के अनुसार, काल भैरव ने ब्रह्म हत्या के पापा से मुक्ति के लिए काशी में रहकर तप किया था।

जब भगवान विश्वनाथ कैलाश जाने के लिए काशी छोड़ रहे थे तो उन्होंने शहर काशी की सभी प्रशासनिक जिम्मेदारियों को भगवान काल भैरव के हाथों में सौंप दिया। बाबा विश्वनाथ ने बाबा काल भैरव को ये संकेत आशीर्वाद दिया की वो यू हमेशा शिव भक्तों के कल्याण के हेतु काशी नगरी में ही रहेंगे |

शिवजी ने काल भैरव को आशीर्वाद दिया कि तुम इस नगर के कोतवाल कहलाओगे और इसी रूप में तुम्हारी युगों-युगों तक पूजा होगी। शिव प्रेरणा से जिस स्थान पर काल भैरव रह गए, बाद में वहां काल भैरव का मंदिर स्‍थापित कर दिया गया।

काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja) के लिए कौन से दिन शुभ हैं ?

काशी खण्ड, अध्याय 31 श्लोक 147
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां रविभूमिजवासरे
यात्रा च भैरवीं कृत्वा कृतैः पापैः प्रमुच्यते

काशी खण्ड, अध्याय 31 श्लोक 147

उपरोक्त श्लोक स्कंद पुराण काशी खंड से लिया गया है जिसका मतलब है ‘रवि और मंगलवार तथा अष्टमी एवं चतुर्दशी तिथि को कालभैरव की यात्रा करने से (भक्त) समस्त पापों से छूट जाता है ।

काल भैरव समय के स्वामी हैं, वह लोगों को अच्छे कर्मों का आशीर्वाद देने और लोगों को बुरे कर्मों की सजा देने के लिए अपने हाथ में एक दंड रखते हैं। इसलिए काशी में काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja) करने के लिए किसी शुभ समय की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि काल भैरव की उपस्थिति हर समय शुभ बनाती है।

काल भैरव का रूप भगवान शिव ने मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जिसे काल भैरव महा अष्टमी या काल भैरव जयंती के रूप में भी पूरे विश्व में माना जाता है |
हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि भी किसी भी काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja) के लिए बहुत ही शक्तिशाली और शुभ होती है।

शीघ्र फल देने वाली हैं काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja) :

शास्त्रों के अनुसार, कलियुग में काल भैरव, हनुमान जी और काली मां की पूजा-उपासना करने से शीघ्र फल प्राप्त होता है। माना जाता है कि जिन व्यक्तियों की जन्मकुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हो तो वे किसी माह के कृष्ण पक्ष के अष्टमी से पूजा प्रारंभ कर इस मंत्र ‘ऊँ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं‘ का जप करे या करवाए तो उसका प्रभाव कम हो जाता है।

Kaal Bhairav Puja

काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja) के शुभ फल :-

  • रुकावटों के कारण असफल कार्यों की पूर्ति होती है।
  • नकारात्मक शक्ति व दोष का विनाश होता है।
  • वित्तीय क्षेत्र में लाभ प्रमाणित होतें है।
  • कष्ट व पाप का निवारण होता है।
  • आय व संसाधनों की प्राप्ति होती है।
  • स्वास्थ्य में सुधार और किसी भी स्वास्थ्य संकट की स्थिति से बचना |
  • पारिवारिक और वैवाहिक संबंधों में सुधार
  • कानूनी लड़ाई और अदालती मामलों में जीत |

किस पूजन विधि से होगी भगवान काल भैरव (Kaal Bhairav) की विशेष कृपा ?

काशी में बाबा काल भैरव का अभिषेक कारवाने से सभी गृहों की शांति होती है तथा राहु केतु अनुकूल हो जाते हैं |
बाबा काल भैरव के बीज मंत्र को हर समस्या का राम बाण इलाज माना जाता है, भगवान काल भैरव को फूलमाला, नारियल, दही वड़ा, इमरती, पान, मदिरा, गेरुआ सिन्दूर, चांदी वर्क और धूप-दीप अर्पित करें।

काल भैरव जी के 108 नाम माला का जाप करने से मनोकामना पूरी होती है। किसी भी प्रकार का अनिष्ट होने की सम्भावना हो या भयंकर आर्थिक समस्या, काल भैरव सहस्रनाम नाम का पाठ करने से और हवन करने से कष्ट दिन प्रतिदिन दूर जाता है। नित्य भैरव चालीसा के पाठ से बड़े से बड़ा कष्ट भी समाप्त हो जाता है। कोर्ट-कचहरी के मामलों से भी मुक्ति मिलती है और प्रेत बाधा की भी मुक्ति मिलती है।

श्री कालभैरव अष्टकम् का पाठ करने से ज्ञान, पुण्य, सद्मार्ग, ग्रह बाधा से मुक्ति, पर्याप्त लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
श्री काल भैरव यंत्र की पूजा एवं स्थापना से घर के कष्ट-क्लेश समाप्त होते हैं एवं भूत/प्रेत बाधा भी शांत होती है।
काले श्वान/कुत्ते को दूध पिलाने से और भोजन कराने से योग्य संतान प्राप्त होती है और संतान से जुड़ी समस्याओं का अंत होता है। ऐसा करने से केतु की भी शांति होती है।

काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja) में शराब, मांस ठीक नहीं :

काशी के काल भैरव मंदिर में तीन तरह से काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja) की प्रथा रही है। राजसिक, सात्त्विक और तामसिक।
हमारे देश में वामपंथी तामसिक उपासना का प्रचलन हुआ, तब मांस और शराब का प्रयोग कुछ उपासक करने लगे। ऐसे उपासक विशेष रूप से श्मशान घाट में जाकर मांस और शराब से भैरव को खुश कर लाभ उठाने लगे।

लेकिन भैरव बाबा की उपासना में शराब, मांस की भेंट जैसा कोई विधान नहीं है। शराब, मांस आदि का प्रयोग राक्षस या असुर किया करते थे। किसी देवी-देवता के नाम के साथ ऐसी चीजों को जोड़ना उचित नहीं है।

गृहस्थ के लिए इन दोनों चीजों का पूजा में प्रयोग वर्जित है। गृहस्थों के लिए काल भैरवाष्टक स्तोत्र का नियमित पाठ सर्वोत्तम है, जो अनेक बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। काल भैरव तंत्र के अधिष्ठाता माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि तंत्र उनके मुख से प्रकट होकर उनके चरणों में समा जाता है। लेकिन, भैरव की तांत्रिक साधना गुरुगम्य है। योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही यह साधना की जानी चाहिए।

काल भैरव पूजा (Kaal Bhairav Puja) में किस चीज का भोग लगाना है फलदाई?

भगवान काल भैरव को काली उड़द की दाल से बने पकवानों का प्रसाद चढ़ाया जाता है | काली उड़द की दाल से बनी हर चीज को सरसों के तेल में ही तला जाता है | उड़द दाल से बने दही बड़े, गुलगुले, इमरती, कचौड़ी, पकौड़े, आदि का भोग लगाने से भैरव प्रसन्न होते हैं।

Preeti Gupta
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