साल 2023 में कब है होली(Holi) ?
कब है काशी में मनाये जाने वाली प्रचलित रंगभरी एकादशी तथा मसान की होली(Holi) ?
क्या समय रहेगा काशी विश्वनाथ मंदिर का होली (Holi) के वक्त में?
सर्वविदित है कि होली (Holi) रंगों का त्योहार है और इसे प्राचीन भारतीय परंपरा में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसका आनंद सभी वर्गों के लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ लेते हैं।

होली (Holi) का महत्व :
रंगों के इस त्योहार को न सिर्फ भारत देश में बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, यह मस्ती और आनंद का पर्व है। इस त्योहार से जुड़ी कई परंपराएं है, जो दो दिनों तक जारी रहती है। इस दिन लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं।
यह आपसी मतभेद मिटाने का सबसे अच्छा त्योहार है। इस दिन सब लोग सारे गिले शिकवे भूलकर प्रेम और भाईचारे के रंग में रंग जाते हैं। इस दिन पर रंगों का भी विशेष महत्व है, लोग एक दूसरे को रंग लगाकर, और व्यंजन खिलाकर प्यार बांटते हैं। साथ ही कई जगहों पर संगीत का भी आयोजन किया जाता है।

प्राचीन कथाओं के अनुसार यह माना गया है कि होली (Holi) उत्सव का पहला दिन श्रीहरि विष्णु के भक्त प्रह्लाद की होलिका पर जीत की याद में मनाया जाता है, जो राक्षस राज हिरण्यकश्यप की बहन और भक्त प्रह्लाद की बुआ थी। इस दिन होलिका की चिता को जला जाता है।
इसके अगले दिन रंग और गुलाल के साथ विशेष व्यंजनों का आनंद लिया जाता है। यह परंपराएं होली (Holi) पर सबसे महत्वपूर्ण है।
कब है वर्ष 2023 मे होली (Holi) ?
साल 2023 में होली (Holi) का त्योहार 7 मार्च, दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। अगर हिंदू कैलेंडर की बात की जाए, तो यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह अक्सर मार्च के महीने या अप्रैल के महीने में पड़ती है।

होली (Holi) पूजा का समय तथा त्त्योहार मुहूर्त :
होलिका दहन | 7 मार्च, 2023 को रात 06:24 से रात 08:51 तक |
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ | 6 मार्च, 2023 को दोपहर 4:17 बजे से |
पूर्णिमा तिथि समाप्त | 7 मार्च 2023 को शाम 06:09 बजे तक |
होली | 8 मार्च 2023 |
होलिका दहन कौन सी दिशा में है?
होलिका दहन पर लोगो की कई मनाता है। होलिका दहन करते समय लो पूर्व दिशा की ओर उठे तो रोजगार और स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है और होलिका दहन पश्चिम दिशा में उठे तो आर्थिक स्थिति में सुधार आ सकता है और अच्छा रहता है उत्तर की ओर जाए तो सुख शांति बनी रहती है और कोई चीज का टेंशन उतना नहीं रहता है वहीं दक्षिण की ओर जाए तो अच्छा नहीं माना जाता है हानि ही करता है।

होली (Holi) से पहले क्यों मनाया जाता है होलिका दहन :
होली (Holi) से पहले होलिका दहन किस लिए मनाया जाता है धार्मिक महत्व बुराई पर अच्छाई का प्रतीक का संकेत है पर उसके पुत्र प्रह्लाद आस्था भगवान विष्णु मेथी इसी तरह प्रह्लाद की जान बचाई गई और उसकी जगह होली का उस आग में जल गई यही कारण है होली का यह त्यौहार होली (Holi) का दहन के नाम पर जाना जाता है और बुराइयों पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

होली (Holi) से जुड़ी कथा :
होली (Holi) के त्योहार से जुड़ी कई कथाएं पौराणिक ग्रंथों में मिलती है, लेकिन एक ऐसी कथा है जो सबसे ज्यादा प्रचलित है। इसी कथा के अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का दैत्य राजा था। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान श्रीहरि विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की कई कोशिश की, लेकिन हर बार प्रभु की कृपा से वह बच जाता था। तब उसने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रह्लाद को जलाने की योजना बनाई।

लेकिन वह भी असफल रही। उसमें प्रह्लाद तो बच गए, लेकिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जल गई। तभी से होलिका दहन किया जाता है। एक अन्य किंवदंती में कहा गया है कि भगवान शिव को कामदेव ने गहन साधना से भटका दिया था, जिसके परिणामस्वरूप शिव का पार्वती के साथ विवाह हुआ था। कामदेव को शिव ने वसंत पंचमी के चालीस दिनों के बाद बहाल किया था, जिसे होली के रूप में मनाया जाता है। ब्रज के क्षेत्रों में, राधा और कृष्ण के दिव्य संबंधों को मनाने के लिए होली (Holi) मनाई जाती है।
होली (Holi) का ज्योतिषीय महत्व :
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होली उत्सव के दौरान सूर्य और चंद्रमा आकाश में एक दूसरे के विपरीत छोर पर होते हैं। सिंह और कन्या राशि के भावों में चंद्रमा जिस स्थान पर स्थित होता है, वह स्थिति शुभ होती है। जबकि सूर्य मीन और कुंभ राशि में स्थित होता है। राहु अक्सर धनु राशि में गोचर करता है।
साथ ही, वास्तु विशेषज्ञ इसे वास्तु पूजा करने के लिए एक बहुत ही शुभ दिन मानते हैं। होलिका दहन और धुलेंडी यानी प्रतिपदा के दिन अपने घर, संपत्ति और वाहनों की वास्तु पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है। इससे स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने में मदद मिल सकती है।

होली (Holi) एक ऐसा रंग रंग बिरंग पर्व है जिस हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मौज मस्ती के साथ मनाए जाते हैं प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर तरफ समुदाय जाति के बंधन खोलकर भाईचारे का संदेश देता है |
इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूलकर गले लगते हैं और एक दूसरे को गुलाब लगाते हैं रंग लगाते हैं बच्चे और युवा रंगों से खेलते हैं फागुन मास की पूर्णिमा को यह त्यौहार मनाया जाता है होली (Holi) के साथ अनेक कथाएं जुड़ी है होली (Holi) मनाने के एक रात पहले होलिका दहन किए जाते हैं। उस दिन छोटा होली (Holi) के नाम से जाना जाता है।
क्या है रंगभरी एकादशी का त्योहार कब मनायी जाएगी ये साल 2023 में?
काशी में शिव विवाह का त्योहार महाशिवरात्रि के पहले से ही शूरू हो जाता है | वसंत पंचमी के तिथि पर भगवान का तिलक उत्सव काशी नगरी में बहुत धूम धाम से मनया जाता है | मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का हल्दी तथा तिलक चढ़ा था |

शिवरात्रि के इस पर्व की शुरुआत 26 जनवरी 2023 पे आने वाली वाली बसंत पंचमी से ही शुरू हो जाएगी |
तीनो लोको से न्यारी भगवान शिव की प्रिय नगरी काशी में महाशिवरात्रि के बाद भी नहीं रुकता है शिव भक्तो का उत्सव | होले के ठीक पड़ने वाली एकादशी को कहा जाता है रंगभरी एकादशी |
रंगभरी एकादशी का पौराणिक महत्व :
भगवान शिव कैलाश पे वास करते है पर विवाह होने के बाद माता पार्वती जब वाहा रहने के लिए गई तो वहा का ठंडा मौसम उनको भाया नहीं | भगवान शिव ने तब नारद जी को धरती पे उनके लिए अनुकुलन स्थान का चयन करने को भेजा |
नारद जी को धरती पर आए एक महीने से ज्यादा हो गया था पर वो वापस नहीं आए, उसी वक्त भगवान शिव की आज्ञा से अन्य देवता गण भी नारद जी को बुलाने के लिए गए परंतु वो भी वापस नहीं आये |तभी भगवान शिव ने तीव्र इच्छा से नारद जी का ध्यान किया और नारद जी को भगवान शिव के सामने उपस्थित होना पड़ा। जब भगवान शिव, नारद जी से पूछे कि इतने दिनों में उन्हें कौन कौन से स्थान को देखा तो उसके जवाब में नारद जी ने कहा कि बस एक देखा और वहां से फिर आने का मन नहीं हुआ |

नारद जी ने तब भगवान शिव को काशी शहर और उसके पवित्र वातावरण के बारे में बताया, जिसे तब आनंद के जंगल के रूप में भी जाना जाता था। स्तुति के ऊंचे शब्द सुनकर भगवान शिव ने अपनी शाश्वत पत्नी मां पार्वती के साथ काशी जाने का फैसला किया |
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव माता पार्वती के साथ अपनी प्रिय नगरी काशी में पहली बार विवाह के उपरान्त इसी रंगभरी एकादशी तिथि पर आए थे | इसे उत्सव को मनाने के लिए सभी काशी वासियों ने अभीर और गुलाल से भगवान विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा का स्वागत सत्कार काशी में किया था |
तब से हर वर्ष काशी विश्वनाथ मंदिर में रंग भरी एकादशी में भगवान शिव की माता पार्वती के साथ एक स्वर्णमयी प्रतिमा निकाली जाती है जिसे पूरी काशी नगर में घुमाया जाता है और इस दौरन सभी काशी वाशी रंग और गुलाल से होली (Holi) खेल अपने शहर के अनन्त राजा काशी विश्वनाथ और महारानी अन्नपूर्णा का स्वागत करते हैं |

काशी में होली (Holi) की शुरुआत यह दिन यानी रंग भारी एकादशी से ही हो जाति है और होली तक 5 दिन की अवधि के लिए जारी रहता है |
इस साल कब मनाई जाएगी रंगभरी एकादशी ?
इस वर्ष रंगभरी एकादशी का पर्व 3 मार्च 2023 को मनाया जाएगा |
पवित्र काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा उत्तर भारत में विष्णु मंदिर भी इस दिन को बहुत खुशी और रंगों के साथ उत्सव करते है
काशी की विश्व प्रसिद्ध मशान की होली (Holi) से जुड़े कुछ रोचक ज्ञान ?
होली (Holi) त्यौहार के काई रंग है तथा कई विविध रूप | महादेव के प्रिय नगरी काशी में रंगभरी एकादशी के दिन ही महा श्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की राख से होली (Holi) खेलने की रस्म है |
यह त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है और स्थानीय निवासी भगवान शिव के औघड़ रूप में तैयार होते हैं | जिस्मे की भगवान शिव भूत प्रेत तथा पिशाच के साथ होली खेलते है |
भस्म भगवान शंकर को अति प्रिय है इसली मणिकर्णिका घाट स्थित मशान नाथ महादेव को भस्म चढ़ा कर सभी भक्त होली (Holi) मनाते है | मशान की होली को मोक्ष दायिनी होली के रूप में जाना गया है |

वेदों के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन भगवान विश्वनाथ अपनी सनातन पत्नी मां अन्नपूर्णा के साथ काशी में अवतरित हुए थे, इसलिए सभी स्थानीय लोगों ने इस दिन को रंगों से जश्न मनाया।
लेकिन भूत प्रेत पिशाच और अदृश्य ऊर्जाएं उनके साथ जश्न मनाने के लिए शामिल नहीं हो सकीं, इसलिए भगवान विश्वनाथ अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर अपने पसंदीदा शिव गण के साथ चिता भस्म और राख के साथ होली (Holi) मनाने गए थे।
इस वर्ष 2023 में मणिकर्णिका घाट और हरिश्चन्द्र घाट दोनों जगहों पर 3 मार्च 2022 को मशान की होली (Holi) मनाई जाएगी।
होली (Holi) और इन त्योहार के दिनों में क्या रहेगा काशी विश्वनाथ के मंदिर में दर्शन करने का सही समय ?
इस होली (Holi) त्योहार के समय काशी विश्वनाथ मंदिर में उत्सव में भाग लेने और भगवान विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए भारी भीड़ होती है। और इस बड़ी भीड़ के साथ एक बड़ा भ्रम भी आ जाता है कि होली (Holi) के दिन काशी विश्वनाथ मंदिर खुला रहेगा या नहीं और यदि खुला रहेगा तो होली (Holi) के दिन काशी विश्वनाथ मंदिर का समय क्या होगा ? इस विवरण में हम होली के उत्सव पर काशी विश्वनाथ मंदिर के समय से संबंधित शंकाओं को दूर करेंगे।
काशी विश्वनाथ मंदिर भक्तों के दर्शन के लिए सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक खुला रहता है। भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर सुबह के समय भी खुला रहता है |

काशी में इस समय भारी भीड़ के कारण सभी होटल और दर्शन टिकट महीनों पहले से बुक रहते हैं इसलिए यदि आप होली (Holi) के समय या उसके बाद सप्ताहांत में काशी आने की योजना बना रहे हैं तो आपको अपनी अग्रिम बुकिंग के साथ एक आरामदायक स्थिति में रहने के लिए तैयार रहना चाहिए।
श्री काशी विश्वनाथ के दर्शन टिकट और गंगा आरती में विशेष भागीदारी के टिकट भी इस अवधि के दौरान अग्रिम रूप से बुक रहते हैं |