हिंदू परंपराओं और शास्त्रों में बसंत पंचमी (Basant Panchami) को ”श्री पंचमी” के नाम से भी उल्लेखित किया गया है। माघ माह की शुक्ल पंचमी को मनाए जाने वाले इस महत्वपूर्ण त्योहार “बसंत पंचमी” (Basant Panchami) को और भी कई नामों से जाना जाता है। जिसमें श्री पंचमी, वागीश्वरी जयंती, मदनोत्सव और सरस्वती पूजा उत्सव शामिल है।
बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती की उपासना की जाती है, यह मां सरस्वती का आविर्भाव दिवस है। मां सरस्वती को विद्या और बुद्धि की प्रदाता कहा गया है। वहीं इनकी उत्पत्ती के दौरान इनके हाथों में वीणा थी। इस वजह से इन्हें संगीत की देवी भी कहा गया है। इस बात का उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है।

ऋग्वेद में लिखा है: ‘प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।’ अर्थात् ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।
यह ज्ञान की देवी को समर्पित दिन है, कुछ माता-पिता अपने बच्चों के साथ बैठते हैं, उन्हें अध्ययन करने या अपना पहला शब्द लिखने और सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए एक बिंदु बनाते हैं। इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान को अक्षराभ्यासम या विद्यारम्भम कहा जाता है।
बसंत पंचमी (Basant Panchami) की पौराणिक कथा :
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना की, तो उन्हें अपने सर्जन से संतुष्टी नहीं मिली। उन्हें कुछ कमी लगने लगी, जिसकी वजह से हर तरफ मौन छाया हुआ था। इसके बाद उन्होंने श्रीहरि विष्णु से अनुमति लेकर अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा।
इसके बाद पृथ्वी पर हर तरफ हरियाली छा गई, वृक्ष और पौधे लग गए। इसी के बीच एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। वह एक चतुर्भूजी सुंदर स्त्री थी। उनके एक हाथ में वीणा, तो दूसरा हाथ वरमुद्रा में था। बाकी दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। यह देखकर ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती से वीणा बजाने का अनुरोध किया।

ब्रह्मा जी के अनुरोध पर माता सरस्वती ने मधुर वीणा बजाई, जिससे संसार के समस्त जीव जंतुओं को वाणी की प्राप्ती हुई। साथ ही अथाह जल में कोलाहल उठा, पवन चलने लगी। यह सब देखकर भगवान ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती के नाम से पुकारा।
यह बसंत पंचमी (Basant Panchami) की ही पावन तिथि थी। इसी कारण इसे देवी सरस्वती के प्रकटोत्सव के रूप मे जाना जाता है। उनके हाथ में पुस्तक और वीणा होने के कारण वह बुद्धि और संगीत की देवी कहलाई।

बसंत पंचमी (Basant Panchami) 2023 में कब है?
बसंत पंचमी (Basant Panchami) 25 जनवरी 2023 दिन शनिवार को मनायी जाएगी |

बसंत पंचमी (Basant Panchami) सरस्वती पूजा मुहूर्त :-
सुबह 07:12 से दोपहर 12:34 बजे तक, अवधि 5 घंटे 21 मिनट
बसंत पंचमी मध्याह्न का क्षण 12:34 PM
पंचमी तिथि प्रारम्भ 25 जनवरी 2023 अपराह्न 12:34 बजे
पंचमी तिथि समाप्त 26 जनवरी 2023
माना जाता है कि पीला रंग सरस्वती मां का पसंदीदा रंग है, इसलिए लोग इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीले व्यंजन और मिठाइयां तैयार करते हैं। वसंत पंचमी पर देश के कई हिस्सों में केसर के साथ पके हुए पीले चावल पारंपरिक दावत होती है।
शिक्षण संस्थानों में देवी सरस्वती की प्रतिमा को पीले रंग में सजाया जाता है और फिर सरस्वती पूजा की जाती है जहाँ शिक्षकों और छात्रों द्वारा सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है।

किन मंत्रों से करें मां सरस्वती की बसंत पंचमी (Basant Panchami) पर उपासना?
राशि के अनुसार मंत्र :
- मेष राशि- ऊँ वाग्देवी वागीश्वरी नम:
- वृषभ राशि- ऊँ कौमुदी ज्ञानदायनी नम:
- मिथुन राशि- ऊँ मां भुवनेश्वरी सरस्वत्यै नम:
- कर्क राशि- ऊँ मां चन्द्रिका दैव्यै नम:
- सिंह राशि- ऊँ मां कमलहास विकासिनी नम:
- कन्या राशि- ऊँ मां प्रणवनाद विकासिनी नम:
- तुला राशि- ऊँ मां हंससुवाहिनी नम:
- वृश्चिक राशि- ऊँ शारदै दैव्यै चंद्रकांति नम:
- धनु राशि- ऊँ जगती वीणावादिनी नम:
- मकर राशि- ऊँ बुद्धिदात्री सुधामूर्ति नम:
- कुंभ राशि- ऊँ ज्ञानप्रकाशिनी ब्रह्मचारिणी नम:
- मीन राशि- ऊँ वरदायिनी मां भारती नम:

नीचे दिया हुआ श्लोक मां सरस्वती की उपासना के लिये सबसे लोकप्रिया है और हर किसी को बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन पर इसका ध्यान जरूर करना चाहिए |
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
देश के अलग अलग प्रांतो में किस तरह मनया जाता है बसंत पंचमी (Basant Panchami) का पर्व?

भारत में कई क्षेत्रों में कुछ अनोखी परंपराएं और तरीके हैं, जिनमें वे बसंत पंचमी मनाते हैं। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है।

राजस्थान में भक्तों द्वारा चमेली की माला पहनना एक अनोखी प्रथा प्रचलित है। नवविवाहित जोड़ों के लिए महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में अपनी पहली बसंत पंचमी (Basant Panchami) पर पूजा करने के लिए पीले कपड़े पहनना और मंदिर जाना अनिवार्य है।

पंजाब में यह त्योहार वसंत के मौसम की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। वे इसे पीली पगड़ी और पीले रंग की पोशाक पहनकर बहुत उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं। इस दिन पंजाब में मनाई जाने वाली एक और दिलचस्प परंपरा है पतंगबाजी।