काशी विश्वनाथ मंदिर नहीं बल्कि अन्नपूर्णा मंदिर (Annapurna Temple) में अन्नदान का है अधिक महत्व

 श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के रेड जोन में स्थित मां अन्नपूर्णा (Annapurna Temple) का अनूठा दरबार है। स्वर्णमयी अन्नपूर्णेश्वरी अपने भक्तों पर दोनों हाथों से अन्न और धन की बरसात करती हैं। नवरात्र में अष्टम महागौरी के स्वरूप में विराजने वाली मां अन्नपूर्णा अन्नकूट पर भक्तों को श्री समृद्धि का आशीष भी देती हैं।

देवाधिदेव महादेव के आंगन में सजे मां अन्नपूर्णेश्वरी के दरबार की प्रतिष्ठा का अंदाजा इससे ही लगा सकते हैं कि इसमें बाबा स्वयं याचक के रूप में खड़े हैं। मान्यता है बाबा अपनी नगरी के पोषण के लिए मां की कृपा पर आश्रित हैं। उपलब्ध इतिहास पर गौर करें तो बाबा विश्वनाथ के यहां वास से पहले ही देवी अन्नपूर्णा विराजमान हो चुकी थीं।

(Annapurna Temple)
Annapurna Temple

कैसे आयी धरती पर माँ अन्नपूर्णा (Annapurna Temple)

 मान्यता है कि जब धरती पर पानी और अन्न खत्म होने लगा तब हर तरफ हाहाकार होने लगा। तब इंसानों ने अन्न की समस्या से छुटकारा पाने के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी की पूजा की। तब शिवजी ने धरती का भ्रमण किया और इसके बाद माता पार्वती ने अन्नपूर्णा रूप और भगवान शिव ने भिक्षु का रूप बनाया। भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा (Annapurna Temple) से भिक्षा लेकर धरती पर बसे लोगों को बांटा।

Annapurna Temple

अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे। ज्ञानवैराग्यसिद्धड्ढर्थं भिक्षां देहि च पार्वति।।

माँ अन्नपूर्णा ( Annapurna Temple) ही ‘धान्य’ की अधिष्ठात्री हैं

अन्न में प्राण बसते हैं। जीवनी शक्ति वास्तव में प्राणमय शक्ति ही है, जिसका निवर्हन अन्न से होता है तथा उसकी शक्ति धारा अन्नपूर्णा है। जो मां जगदम्बा का ही एक रूप है। जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। संसार का भरण पोषण होता है। अन्नपूर्णा ही ‘धान्य’ की अधिष्ठात्री हैं। घर-परिवार में अक्षय भण्डार भरा रहे, परमात्मा की कृपा रहे, आरोग्य मिले, इसके लिये समस्त प्राणियों को भोजन कराने का विधान है। अन्नपूर्णा की कृपा व नियंत्रण में ही सम्पूर्ण जगत है।

Annapurna Temple

( Annapurna Temple) मां अन्नपूर्णा की कृपा से कोई भूखा

मां अन्नपूर्णा की कृपा से कोई भूखा नहीं सोता है। उनकी उपासना से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वे अपने भक्त की सभी विपत्तियों से रक्षा करती हैं। आदि गुरु भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी की संचालिका हैं। ब्रह्मैवर्त्तपुराण’ के अनुसार यह भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। अन्नपूर्णा में यह सामर्थ्य है कि अनेक जन्मों की दरिद्रता का निवारण होता है। सद्गुरु, संत महापुरुष, अपने शिष्यों-भक्तों के कल्याण हेतु अपने आश्रमों में मां अन्नपूर्णा की प्रतिष्ठा भण्डारे रूप में करते हैं।

Annapurna Temple
Annapurna Temple

इसीलिये ऋषि-मुनि इनकी स्तुति में सदैव तत्पर रहते हैं शोषिणीसर्वपापानांमोचनी सकलापदामं दारिद्रड्ढदमनीनित्यंसुख-मोक्ष-प्रदायिनी

अन्न हमारे जीवन स्वास्थ्य से सीधे जुड़ा है। अतः हमेशा हाथ, पैर और मुंह धोने के पश्चात ही भोजन करें। भोजन करने से पूर्व अन्न देवता, अन्नपूर्णा माता का स्मरण कर उन्हें धन्यवाद देने का विधान है। शास्त्र में वर्णन है कि रसोई घर में बने भोजन में से गाय, कुत्ते, चींटी और पक्षियों को भोजन खिलाने से पितृ तृप्त होते हैं। यही नहीं चींटियों को भोजन देने से कर्ज से मुक्ति मिलती हैं, प्रतिदिन कुत्ते को रोटी खिलाने से संकट दूर होते हैं। ब्रह्मचारी, वृद्ध, गाय, गुरुकुल के विद्यार्थियो को भोजन खिलाने से सर्वमंगल होता है। जैन परम्परा अनुसार कार्तिक भानु प्रेक्षा में कहा गया है-भोयण दाणे दिण्ण्ेतिण्ण्दिि दाणाणिहोंति दिण्णणि। मुक्ख तिसाए बाहीदिणे हिणेहोंति देहीणं। अर्थात् भोजन दान देने पर तीन दान स्वतः सफल होते हैं। जैसे प्राणियों की भूख व प्यास रूपी व्याधि दूर होती है और विद्या, धर्म, तप, ज्ञान, मोक्ष सभी नियम सधते हैं। कहते हैं यह शरीर आहार मय है, आहार न मिलने से यह टिक नहीं सकता, अतः जिसने हमें आहार दिया, उसने हमें शरीर दिया यही जानो। अर्थात् अन्नदान करके हम उस अन्न ग्रहण करने वाले सद्पुरुष का शरीर उस दिन के लिये पालते हैं और उसके द्वारा किया तप का अंश हमें भी मिलता है।

भोयण बलेणसाहू सत्थंसेवेदिरत्तिदिवसंपि।

भोयण दाणेदिण्णे पाणवि य रक्ख्यिा होंति।।

नवग्रह विज्ञान की दृष्टि से देखें तो गुरु ग्रह एक ऐसा ग्रह है जो धन वंश वृद्धि और पुण्य बढ़ाता है। अतः यदि लोगों की निष्काम सेवा भाव से हम गुरु आश्रम में यदि अन्नदान करते हैं, तो पुण्य, बरकत और लाभ स्वतः प्राप्त होता है। काम बनना शुरु होते है।

वैसे भी अन्नदान पुण्य वृद्धि और कर्ज नाश का सबसे अच्छा उपाय है। इसीलिये सामर्थ्य अनुसार भूखे प्राणी को भोजन कराने का विधान है।

अन्नदानं परं दानं विद्ययादानमतः परम्।

अन्नेन क्षणिका तृप्तिर्यावज्जीवं च विद्यया।।

दान से यश, अंहिसा से आरोग्य तथा सेवा से राज्य तथा ब्रह्मत्व की प्राप्ति होती है। इसीप्रकार जलदान करने से मनुष्य को अक्षय कीर्ति प्राप्त होती है। अन्नदान करने से मनुष्य को पूर्ण तृप्ति मिलती है। शरीर जीवन का आधार है, अन्न प्राण है, इसलिये अन्न दान प्राणदान के समान है। यह दान धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। अतः अन्न दीनों, नेत्रहीनों और दूसरे जरूरतमंदों में बांट देना चाहिये। क्योंकि यह अन्नदान अमृत बनकर मुक्ति देता है।

सात धातुएं अन्न से पैदा होने के कारण इन्द्र आदि देवता भी अन्न की उपासना करते हैं। वेद में अन्न को ब्रह्मा कहा गया है। सुख की कामना से ऋषियों ने पहले अन्न का ही दान किया था। आज भी जो श्रद्धालु विधि विधान से अन्नदान करता है, उसे पुण्य मिलता है।

Preeti Gupta
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