हिन्दू पंचांग के अनुसार जिस तिथि को हमे चन्द्रमा दिखाई न दे उस तिथि को मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) के रूप में जाना जाता है। चन्द्रमा 28 दिनों में पृथ्वी का एक चक्कर पूर्ण करता है। 15 दिनों के चक्कर में चन्द्रमा पृथ्वी की दूसरी ओर होता है और भारतवर्ष से उसको देखा नहीं जा सकता है । वही जिस दिन, चन्द्रमा भारतवर्ष से पूर्ण रूप से दिखाई नहीं देता उसे ही अमावस्या कहते हैं। मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) के दिवस को हिन्दू पुराणों में विशेष महत्व प्राप्त है ऐसा माना जाता है की यह दिन पित्रों अर्थात गुजर गए पूर्वजों का दिन माना जाता है। ऐसा माना जाता है की इस दिन स्नान और पूजा करके प्रभु का ध्यान करना चाहिए। बुरे व्यसनों से दूर रहना चाहिए और हो सके तो गरीबों, असहायों और जरूरतमंदों को भोजन कराना चाहिए। जैसा की मान्यता है की यह तिथि पित्रों की तिथि है तो एक तरह से हम इस दिन किसी असहाय को भोजन कराकर एक तरह से अपने पित्रों को भोजन कराते हैं और हमारे द्वारा किया गया शुभ कार्य हमारे पूर्वजों तक भी पहुँचती है।
अमावस्या के और भी नाम —
अमावस्या के और भी नाम हैं। अमावस्या,चंद्र-सूर्य संगम,अमावसी,पंचदशी, अमावासी ,अमामासी
मुख्य अमावस्या —
भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या,दिवाली अमावस्या,सोमवती,अमावस्या
सर्वपितृ अमावस्या

मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) के दिन क्या होता है?
मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) तिथि पर किसी भी नदी में स्नान, ध्यान, दान और पित्रों के तर्पण करने की मान्यता है। ऐसी मान्यता है की सोमवती अमावस्या के दिन पूजा अर्चना करे और दान पुण्य आदि करे तो भगवान् के साथ साथ उनके पित्रों का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है इस दिन दान ,धर्म कर्म करने और पित्रों का तर्पण करने से जीवन से कष्ट इत्यादि दूर हो जाते हैं।

मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) का रहस्य
जैसा की आप सभी जानते हैं की मासिक अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता है। अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता उसे अमावस्या कहते हैं। अमावस्या माह में एक बार ही आती है। शास्त्रों में अमावस्या के देवता पितृदेव को ही माना गया है। अमावस्या सूर्य और चंद्र के मिलन का काल होता है।

कैसे करें मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) के दिन पूजा
पित्रों के तर्पण के लिए अमावस्या सबसे शुभ तिथि मानी गयी है। इस दिन पित्रों की पूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। मान्यता है की जो कोई भी व्यक्ति यह व्रत रखता है तो उसके जीवन से कष्ट, मुसीबत,समस्या परेशानी इत्यादि दूर हो जाती है। पारिवारिक और आर्थिक वृद्धि भी होती है।

मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) के दिन क्या न खाये
मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) के दिन भूल कर भी मांसाहार नहीं करना चाहिए। मदिरा जैसी अपशिष्ट वस्तु का सेवन हरगिज नहीं करना चाहिए। प्याज,लहसुन इत्यादि तामसी पदार्थों का सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित है। यदि इन वस्तुओं का सेवन कोई गलती से भी कर लेता तो ऐसा कहा जाता है की पितृगण नाराज जाते हैं और अनिष्ट होना प्रारम्भ हो जाता है। आप अमावस्या के दिन लौकी,खीरा, लाल साग,चना का भी सेवन नहीं कर सकते हैं। मान्यता है की पुरुष भी यह व्रत रख सकते है।

अमावस्या के दिन मन्दिर जाना होता है लाभदायक
अमावस्या के दिन चूँकि पूर्णिमा नहीं होती है इसलिए नकारात्मक शक्तियां और नकारात्मक विचार भावी हो जाते हैं। इन बुरी शक्तियों और बुरे विचारों से बचने के लिए शास्त्रों में बताया गया है की मन्दिर जाना अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। मन्दिर जाकर अपने आराध्य व पितृदेव की पूजा अर्चना करने से मन को शांति के साथ साथ पित्रों व देवताओं से असीम आशीर्वाद की प्राप्ति भी होती है। जो भक्त व्रत रखते हैं उन्हें तो अवश्य ही मंदिर जाकर आराधना करनी चाहिए।

मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) अच्छी या बुरी
कहते हैं नया चाँद नई शुरुआत ,अमावस्या का चरण बहुत बिश्लेषी समय है और नई शुरुआत का प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि हम भविष्य के लिए बीज बोते हैं। अमावस्या, आने वाले महीने के लिए स्पष्ट इरादे करने , नई चेष्टा उत्पन्न करने का शुभ दिन माना जाता है। नई योजनाओं की शुरुआत करने और पिछली अमावस्या से हुयी वृद्धि का योग बताने का सही समय अमावस्या के दिन होता है।

मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) को अशुभ दिन क्यों माना जाता है ?
चूँकि अमावस्या के दिन नकारात्मक शक्तियां प्रभावी होती है , दानवी शक्ति अपने चरम सीमा पर होती है। और यह काली और असुरी शक्तियां मनुष्य जीवन को प्रभावित करती हैं अतः इस दिन मनुष्यों को पूजा-पाठ, मन्दिर,धर्म -कर्म में लगाकर इन सबसे बचाया जा सकता है। ऐसी मान्यता है की इस दिन भूत,पिशाच,पितृ,असुरी निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रियऔर उन्मुक्त रहते है। इन सबसे बचने के लिए पूजा और भगवान में ह्रदय और मन लगाना चाहिए। मान्यता है की अमावस्या के दिन खिड़की या फिर किसी भी छोटी वास्तु से या सामान्यतः चाँद को नहीं देखना चाहिए अन्यथा कुप्रभाव के शिकार हो जाते हैं।

मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) पर क्या नहीं खरीदना चाहिए
मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) के दिन पूजा का सामान कतई नहीं खरीदना चाहिए। एक दिन पहले ही पूजा का सामान खरीद लेना चाहिए। नशे व मादक पदार्थों को बिलकुल नहीं खरीदना चाहिए। और यदि आप ऐसा करते हैं तो आपके जीवन से कभी कष्ट दूर नहीं होगा और तमाम तरह के दुःख और तकलीफे सदैव आपको घेरे रहेंगी।

मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) के दिन क्या नहीं करनी चाहिए
हिन्दू धर्म में अमावस्या का बड़ा ही धार्मिक महत्व है। यह पूर्वजों एवं परिवार की दिवंगत आत्मओं को याद करने और पूजा अर्चना करने का सही समय माना जाता है। ऐसा माना जाता है की जब चन्द्रमा की छाया नहीं पड़ती तब सूर्य की रोशनी उन तक पहुँच जाती है।
मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) के देवता कौन है
अमावस्या के देवता अर्यमा हैं तो पित्रों के मुख्य देवता हैं। अमावस्या में पितृगण पूजा करने से वे सदैव प्रसन्न होकर प्रजावृद्धि, धन-रक्षा ,आयु तथा बल-शक्ति प्रदान करते हैं।

सबसे शुभ मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya)
वैसे तो प्रायः हर अमावस्या शुभ होती है लेकिन ऐसा माना जाता है की मौनी अमावस्या सबसे शुभ होती है। क्योंकि मौनी अमावस्या के दिन गंगा का जल अमृत (दिव्य जल) में परिवर्तित हो जाता है। इसलिए माघी यानि माघ मास के अमावस्या को गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप दूर हो जाते है। कष्ट,तकलीफ,सभी प्रकार की बीमारी दूर हो जाती है। अतः इस दिन हम सबको गंगा स्नान करना चाहिये।

मासिक अमावस्या (Maasik Amawasya) पूजा विधि
अमावस्या के दिन पीपल के जड़ में जल और दूध चढ़ाना चाहिए। फिर फूल अक्षत ,चन्दन आदि से पूजा करनी चाहिये। पीपल की परिक्रमा 108 बार धागे के साथ करना चाहिए। पीपल के नीचे दीपक भी जलाएं। संध्या काल में सरसों के तेल के दीपक जलाएं और अपने पूर्वजों को यादकर उनकी आराधना करें। पितृदेव अर्यमा का आह्वान करें और पूजा अर्चना करें। और इसके बाद अन्नदान करें तो अत्यधिक शुभ होता है।

अमावस्या के दिन पित्रों को कैसे खुश करें
यदि आप क्षमतावान और संपन्न हैं तो पित्रों को प्रसन्न करने के लिए अमावस्या या पितृ पक्ष में भूमि का दान कर सकते हैं। भूमिदान को महा दान माना जाता है। कुछ और अन्य दान भी प्रमुख हैं –
वस्त्र दान
चांदी की वस्तु दान
दूध और चावल का दान
काले तिल का दान
भूमि दान

अमावस्या के दिन पैदा हुए व्यक्ति कैसे होते हैं?
अमावस्या यानी काली रात यानी असुरी शक्तियां , नकारात्मक शक्तियों की जड़। इस दिन नकारात्मक शक्तियां सक्रिय रहती हैं तो इसका प्रभाव हर जन्मे शिशु पर पड़ जाती है। अमावस्या के दिन पैदा हुए लोग बहुत भारी कष्ट से गुज़रते हैं। शनि दोष, गृह दोष, कुंडली दोष इत्यादि इनकी किस्मत में लिखा होता है। लेकिन अमावस्या के दिन व्रत व पूजा करने से उनके सभी कष्ट और दोष समाप्त हो जाते है।

उद्यापन कब,और कैसे करें?

मान्यता है की जिस भी व्यक्ति को कुंडली दोष होता है उसे अमावस्या का व्रत रखना चाहिए। 12 वर्षों का लगातार व्रत रखने के बाद उद्यापन अत्यधिक आवश्यक है। यदि कोई चाहे तो 6 वर्ष के बाद भी उद्यापन कर सकता है। यदि कोई व्रत रखने में असक्षम है तो उसके सिर्फ पूजा और दान इत्यादि से भी कुंडली दोष समाप्त हो जाता है। उद्यापन करने के लिए पीपल के पेड़ पर धागा बांधें, दीपक जलाएं। तुलसी के पौधे को धागे और चुनरी से बांधें और गंगा जल छिड़क कर घर और पूजा स्थल भी पवित्र कर लें और विधि-विधान से पूजा अर्चना करें। इसके पश्चात् ,जो कुछ भी यथाशक्ति संभव हो दान करें और पित्रों को मना कर उनक आशीर्वाद प्राप्त करें। और सबसे आखिरी में गरीबों, भूखों, जरूरतमंदों, व ब्राह्मण , सन्यासियों को भोजन कराएं। पक्षियों जानवरों को भी भोजन कराएं। अन्नदान सबसे शुभ माना जाता है।