शनि जयंती (Shani Jayanti) क्या है ?

शनि जयंती (Shani Jayanti), शनि देव के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है। हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष वैसाख माह के कृष्णा पक्ष के अमावस्या के दिन शनि जयंती (Shani Jayanti) मनाई जाती है। शनि जयंती को शक्तिशाली भगवान शनि के जयंती के रूप में आयोजित किया जाता है क्योंकि इस दिन को शनिदेव का जन्म दिवस माना जाता है। शनिवार के दिन न्याय के देवता शनिदेव की पूजा की जाती है। शनिदेव को खुश करने के लिए कई उपाय किये जाते है। शनिदेव जिन पर खुश हो जाते हैं फिर उनके काम में कोई बाधा नहीं आती है। शनिदेव कर्मप्रधान देवता माने जाते है क्योंकि यह सभी व्यक्तियों के जीवन पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं।
हिन्दू धर्म में कौन हैं शनि ?

हिन्दू पुराणों में एक पुरुष हिन्दू देवता भी हैं जिनकी प्रतिमा में एक तलवार लेकर या डंडा ( राजदंड ) की काले रंग की आकृति होती है और एक कौवे या हंस पर बैठी होती है। वह कर्म न्याय और प्रतिशोध के देवता हैं और किसी के कर्म, वचन और वाणी के आधार पर फल देने वाले हैं। भगवान शनिदेव सूर्यदेव और उनकी दूसरी पत्नी छाया के पुत्र है। भगवान सूर्य ने अपने ही पुत्र को श्राप देकर उनका घर जला दिया था। इस घटना के पश्चात् अपने पिता यानि सूर्यदेव को खुश करने के लिए शनि महाराज ने तिल के तेल से पूजा की जिसके बाद सूर्यदेव प्रसन्न हो गए। और तब से ही भगवान शनि और सूर्य देवता की पूजा तिल के तेल से होनी प्रारम्भ हुई।
शनि जयंती (Shani Jayanti) की शुभ तिथि

प्रत्येक वर्ष वैसाख माह के कृष्णा पक्ष के अमावस्या के दिन शनि जयंती (Shani Jayanti) मनाई जाती है। इस बार 2023में शनि जयंती 19 मई को मनायी जाएगी।
प्रारम्भ तिथि : 19 मई 2023 सुबह 11 :23
समाप्त तिथि : 20 मई 2023 सुबह :41
शनिदेव की वास्तविक कहानी

शनिदेव को सबसे क्रूर ग्रहों में से एक माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं की उनके क्रूर होने के पीछे की कहानी क्या है? आइये जानते है उनके इस व्यवहार की कहानी और सच्चाई
शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशी खंड में एक कहानी का उल्लेख है। राजा दक्ष की की पुत्री संज्ञा का विवाह भगवान सूर्यदेव के साथ हुआ था। चूँकि सूर्यदेव का तेज बहुत अधिक था जिसके कारण संज्ञा परेशान रहती थीं। वह सूर्यदेव की अग्नि यानि तेज को कम करना चाहती थी। कुछ समय पश्चात् सूर्य और संज्ञा की तीन संताने हुईं यमराज, मनु, यमुना। लेकिन इसके बाद भी सूर्य का तेज काम नहीं हुआ। एक दिन की बात हैं माता संज्ञा अपना हमशक़्ल बनायीं और उनका नाम छाया (संवर्णा ) रखा। और वह घर छोड़कर अपने पिता के घर चली गयीं किन्तु उनके पिता राजा दक्ष उनको अपने घर रखने को तैयार नहीं हुए। इसलिए माता संज्ञा एक जंगल में जाकर घोड़ी का रूप धारण करके तप करने लगीं।
इधर, चूँकि संवर्णा माता संज्ञा की छाया थी अतः उनको सूर्यदेव के तेज से कभी कोई परेशानी नहीं हुयी। सूर्य और संवारना के मिलन से तीन संताने मनु, शनिदेव और भद्रा पैदा हुए। ब्रम्हपुराण के अनुसार शनि के क्रोध की कथा इस प्रकार है- एक दिन भगवान सूर्य माता छाया से मिलने आये और उन्हें संदेह हुआ की शनि काले हैं तो ये मेरे पुत्र नहीं हो सकते। और यह संदेह उन्होंने छाया जी को कह डाला। जिससे क्रोधित होकर शनिदेव ने सूर्य की तरफ देखा तो सूर्य भी काले हो गए। जिससे उन्हें यानि सूर्यदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ और बाद में उन्होंने शनिदेव से माफ़ी भी मांगी।
शनिदेव की पत्नी

ब्रम्हापुराण के अनुसार शनिदेव भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और प्रायः वह शिव की तपस्या में ही लीन रहते थे। जब शनिदेव विवाह योग्य हो गए तो उनका विवाह चित्ररथ नाम की एक कन्या के साथ हुआ। चित्ररथ बहुत सती, साध्वी और तेजस्विनी थीं। शनिदेव की हर क्षण की पूजा और तपस्या से चित्ररथ काफी परेशान रहती थीं किन्तु इन सबसे भी उनका प्रेम शनिदेव के प्रति कभी कम नहीं हुआ। एक दिन की बात है माता चित्ररथ ऋतू स्नान करके शनिदेव के पास पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए गयीं किन्तु हमेशा की तरह शनिदेव भगवान शिव की उपासना में लीन थे और उनकी प्रतीक्षा के उपरांत भी उनके पास नहीं आये। और चित्ररथ का ऋतुकाल समाप्त हो गया। जिससे क्रोधित होकर उन्होंने शनिदेव यानि अपने पति को श्राप दिया की वे जिसके तरफ भी दृष्टि उठाकर देखेंगे वह व्यक्ति भस्म हो जायेगा। बाद में तपस्या से उठने के बाद शनिदेव ने चिरथ से माफ़ी मांगी किन्तु कोई लाभ नहीं प्राप्त नहीं हुआ। तभी से भगवान शनिदेव की दृष्टि से बचने की बात कही गयी है।
शनिदेव की अन्य पत्नियां —
ध्वजिनी,दामिनी,कलहप्रिया, कंकाली,कंटकी,तुरंगी, अजा और महिषी का नाम ब्रम्हपुराण में उल्लखित है।
शनि जयंती (Shani Jayanti) पर क्या करें ?

सर्वप्रथम शनि जयंती के दिन प्रातः काल ही उठना चाहिए। स्नान आदि से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए और फिर शनिदेव के मंदिर जाकर सरसो के तेल का दियां जलाना चाहिये। यदि आप शनि मंदिर जाने में सक्षम नहीं हैं तो आप शमी के पेड़ के पास भी दिया जला सकते हैं।
माना जाता है की इस दिन भगवान शनि को खुश करने के लिए शनि यन्त्र की पूजा की जाती है। कुछ भक्त इस दिन शनिदेव को खुश करने के लिए व्रत-उपवास भी रखते हैं। शनिदेव को खुश करने के लिए शनिवार के दिन काली गाय को उरद की दाल खिलाना चाहिए। गरीबों व भूखों को भोजन कराने से भी शनिदेव खुश हो जाते हैं।
शनि जयंती (Shani Jayanti) पर क्या न करें ?

शनि जयंती (Shani Jayanti) के दिन गलती से भी गलत कार्य नहीं करना चाहिए। छल-कपट, मिथ्या आदि त्याग देना चाहिए। इस दिन झूठ बिलकुल नहीं बोलना चाहिए। शनि जयंती के दिन शराब मांस इत्यादि का त्याग करना चाहिए। इस दिन गलत कार्य न करने से रुके हुए अच्छे कार्य स्वतः ही होने लगते हैं और सभी जायज इच्छाओं की पूर्ति होती है। शनि जयंती के दिन भूलकर भी लोहे और कांच का सामान नहीं खरीदना चाहिए।
शनिदेव को कौन सा रंग पसंद है ?

भगवान शनिदेव को काला रंग अत्यधिक प्रिय है। इस दिन इस रंग के वस्त्र पहनने से शनिदेव की अत्यधिक कृपा होती है। शनिवार के दिन या शनि जयंती के दिन गलती से भी लाल अथवा गाढ़े रंग के वस्त्र नहीं धारण करने चाहिए। शनि जयंती या शनिवार के दिन काले रंग या नीले रंग के कपडे नहीं खरीदने चाहिए।
शनिदेव को कौन सा दिन अत्यधिक प्रिय होता है ?

शनिदेव को शनिवार का दिन अत्यधिक प्रिय है इस दिन भगवान शनि देव् की पूजा व व्रत रखने से सभी कार्य हो जाते हैं और शनिदेव की कृपा बनी रहती है। परन्तु हिन्दू पंचांग के अनुसार ऐसी मान्यता है की यह दिन शुभ नहीं होता है। कहा जाता है की जिसका शनि अच्छा होता है उसे राज्य पद का भार मिलता है और जिसका शनि ख़राब होता है उसे तमाम तरह के दुःख भोगने पड़ते हैं। लेकिन शनिवार के दिन विधि विधान से शनि देव की पूजा करने से उनका कोप शांत हो जाता है।
शनिवार या शनि जयंती (Shani Jayanti) के दिन के उपाय

शनिवार या शनि जयंती (Shani Jayanti) की रात को अनार की कलम से रक्त चन्दन पर “ॐ ह्वीं’ ” मंत्र लिखें और इसका 108 बार जाप करें। और इसकी नित्य पूजा करें। शनिवार के दिन किसी काले कुत्ते या काली गाय को रोटी खिलाएं। इसके अलावा काली चिड़िया को दाना चुगाएं। जिससे शनि देव खुश होते हैं शनि की कुदृष्टि समाप्त हो जाती है।
शनिवार या शनि जयंती (Shani Jayanti)का भोग

वैसे तो प्रायः सभी भगवान को मीठी वस्तुओं का ही भोग लगता है। जैसे फल मिठाई दूध दही इत्यादि किन्तु शनिदेव को काले तिल और खिचड़ी का ही भोग लगाया जाता है।
भूल कर भी न लगाए शनिदेव को ये भोग

कहते हैं की शनिदेव को शांत और शीतल पदार्थ ही अत्यंत प्रिय है अतः इसके अतिरिक्त कुछ भी खाना वर्जित ही है। कहते है की शनिवार के दिन मसूर की दाल खाने से क्रोध में बढ़ोत्तरी होती है अतः इस दिन इसका उपयोग वर्जित है। यदि आप भगवान शनिदेव की कृपा के लालायित है तो इस लाल मिर्च का उपयोग बिलकुल न करें।
शनिदेव का वाहन क्या है ?
हंस पक्षी को शनि देव का वाहन माना जाता है। शनिदेव को हंस प्रिय है। हंस बुद्धि,परिश्रम और saubhagya के सूचक होते हैं। शनि हंस पर सवारहो तो शुभ फल देते हैं।
शनिदेव को प्रिय अप्रिय राशियां

कौन सी राशि शनिदेव को प्रिय है
शनिदेव को सबसे प्रिय राशि मकर राशि है। शनिदेव स्वयं इस राशि के वाहक हैं। वैदिक शास्त्र के अनुसार जब भगवान शनि गोचर करते हैं तो सभी रशियों पर साढ़े सती शुरू हो जाती है। किन्तु मकर राशि पर इनका प्रभाव लगभग न के बराबर होता है। मकर राशि पर साढ़े साती का प्रभाव होने से भी शनिदेव इनको ज्यादा कष्ट नहीं देते हैं।
कौन सी राशि शनिदेव को अप्रिय है ?
मेष,वृश्चिक,कर्क और सिंह ये चार राशियां शनिदेव की दुश्मन राशियां हैं। जब साढ़े साती की शुरुआत होती है तो सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव इस राशियों पर पड़ता है। लेकिन यदि विधि विधान से पूजा और व्रत किया जाये तो इस दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। शनिदेव का क्रोध बहुत है किन्तु उतना ही उनके अंदर कोमलता भी है। यदि भक्त उनके सामने दुःख व्यक्त कर दें और उनका आभार जतायें तो शनिदेव खुश हो जाते हैं और साढ़े साती का कुप्रभाव समाप्त हो जाता है।
घर में नहीं रखनी चाहिए शनिदेव की तस्वीर अथवा मूर्ति

शनिदेव की आराधना व पूजा से सभी ग्रहों का कुप्रभाव समाप्त हो जाते हैं। इनकी आराधना से व्यक्ति रंक से राजा बन सकता है। किन्तु शनिदेव की तस्वीर व मूर्ति हरगिज घर में स्थापना नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसी मान्यता है की भगवान शनि की दृष्टि से बचना चाहिए। और यदि हम उनको अपने घर में स्थापित करते हैं तो उनकी दृष्टि यदि हम पर पड़ गयी तो साढ़े सटी समस्त कई गृह की अशांति सुरु हो जाती यही। अतः शनिदेव की तस्वीर घर में स्थापित नहीं करनी चाहिए।
क्या महिलाएं कर सकती हैं शनिदेव की पूजा अथवा जा सकती हैं मंदिर ?

महिलाएं कर सकती हैं शनिदेव की पूजा
यदि किसी महिला की कुंडली में शनि दोष या साढ़े साती जैसी दुष्प्रभाव हों तो महिलाएं भी शनिदेव की पूजा आराधना कर सकती हैं। शनि दोष से निजात पाने के लिए महिलाएं शनिदेव की आराधना अवश्य करें। लेकिन ध्यान रखें शनिदेव की आराधना करते समय शनिदेव की मूर्ति को स्पर्श न करे।
महिलाओं का शनि मंदिर जाना वर्जित क्यों ?
ऐसी मान्यता है की महिलाएं शनि मंदिर नहीं जा सकती हैं क्योंकि शनि महाराज की पत्नी के श्राप के कारन कोई भी स्त्री उनके पास नहीं जा सकती है। परन्तु ये हर जगह वास्तविक नहीं हैं। यदि कोई महिला शनि दोष से पीड़ित है तो वह मंदिर भी जा सकती है और शनिदेव की पूजा अर्चना भी कर सकती है। परन्तु ध्यान रहे शनिदेव की मूर्ति को स्पर्श न करे। अन्यथा शनिदेव खुश होने की जगह उल्टा हो सकते है और अधिक नाराज।
शनिदेव के सामने दियां जलाने का और पीपल ले पेड़ पर जल चढ़ाने का महत्व

यह शुभता, धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है। शनिदेव के सामने दीपक प्रज्वलित करने से सभी नकारात्मक भावनाएं समाप्त हो जाती हैं। ऐसा माना जाता है की भगवान के सामने दीपक जलाने का मतलब उनकी नजर में खुद को उनके सामने दिखाना है। शनिदेव के सामने शनिवार और शनि जयंती के दिन दीपक जलाने से साढ़े साती समाप्त हो जाती है और ग्रहों का दुष्प्रभाव कम होता है। सभी नकारात्मक विचार और प्रभाव भी समाप्त हो जाता है। मन में सकारात्मक विचार आता है और ईश्वरीय शक्ति का प्रभाव बढ़ता है। और यदि आप शनिवार की सुबह पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाते हैं तो मन को शांति प्राप्त होती है। और यदि आप पीपल के पेड़ की परिक्रमा भी करते हैं तो इससे सभी ग्रहों का कोप शांत होता है। शनिदेव की असीम कृपा होती है और साढ़े साती समाप्त होने की भी संभावना हो जाती है।
शनि के और भी नाम हैं

1-कोनष्ट 2 -पिंगल ३3- बभ्रु 4 -कृष्णा 5- रौद्रान्तक 6- यम 7-सौरि 8-शनैश्चर 9-मंद 10पिप्पलाद। इन दस नामों से भी शनि का स्मरण करने से पाप कष्ट आदि दूर होते हैं।
शनि की आंखों में नहीं देखना चाहिए

ऐसी मान्यता हैं की शनिदेव की पूजा आराधना के समय उनकी आंखों में नहीं देखना चाहिए। क्योंकि शनिदेव की आँखों में बहुत तेज होता है उनकी आंख में देखने से ग्रहों का प्रभाव बढ़ सकता है। क्रोध में आकर शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव को देखा था तो वे भी कुछ समय के लिए काले पड़ गए थे तो हम मानव जाती तो बहुत ही तुच्छ प्राणियों में से एक हैं हमारा क्या ही अस्तित्व। यदि शनिदेव की दृष्टि पड़ जाती है तो उस व्यक्ति का अनिष्ट होना तय है। इसलिए शनिदेव की जब भी पूजा करिये तो नजरें झुका के करिये।
शनिदेव का प्रिय पौधा
शनिदेव का प्रिय पौधा शमी का होता है।
शनिदेव के प्रसिद्ध पांच मंदिर

१-सिंगाणपुर ( महाराष्ट्र )
२-शनिधाम ( दिल्ली )
३-थिरुनल्लार (तमिलनाडु)
४-शनिचरा ( मध्य प्रदेश )
५-शनि मंदिर ( इंदौर)